________________
धर्म आविष्कार है--स्वयं का
उपलब्ध होगा? यह शरण तो गुलामी है।
सम्हलकर अपनी वृत्तियों का परीक्षण-निरीक्षण करना, अशरण-भावना—महावीर का सूत्र है। अशरण--भावना।। विश्लेषण करना। अपने रस की धार को पहचानना। ज्यादा देर कोई शरण नहीं! कहीं कोई शरण नहीं है-अपने ही पैर पर खड़े न लगेगी, थोड़े प्रयोग करने से साफ हो जायेगा कि कौन-सी होना है।
बात जमती है। कौन-सा भोजन तुम्हें रास आता है, यह तुम्हें दोनों ठीक हैं। मगर दोनों एक साथ तुम्हारे लिए ठीक नहीं हो जल्दी ही पता चल जायेगा। जो भोजन रास आयेगा, उसे पाकर सकते। दोनों एक साथ मेरे लिए ठीक हैं। तुम्हें दो में से कोई एक प्रफुल्लता मालूम होगी। जो भोजन रास न आयेगा, उसे ले लेने चुनना पड़ेगा। अन्यथा
के बाद बोझ मालूम होगा; जैसे पेट पर पत्थर डाल दिये; मतली काबे से दैर, दैर से काबा
होगी। शरीर उसे बाहर फेंक देना चाहेगा। व्यवस्था उसे मार डालेगी राह की गर्दिश।
स्वीकार न करेगी। धुआं, धूल, राह की आपाधापी में ही तुम नष्ट हो जाओगे | ठीक ऐसा ही आत्मिक भोजन है। जब तुम्हें कोई मार्ग रास आ समय ही न बचेगा मंदिर में प्रवेश करने का कि मस्जिद में प्रवेश जाता है, तत्क्षण सब तरफ फूल खिलने लगते हैं। तुम प्रसन्न हो करने का। प्रार्थना करनी है तो कहीं तो चुनना ही होगा। लेकिन जाते हो। तुम प्रफुल्लित हो जाते हो। वह लक्षण है। अगर तुम चुनाव का ध्यान रखना-'मेरे' कारण चुन रहा हूं; उनमें कौन सूख जाओ, उदास हो जाओ, दीन हो जाओ, तो बस बात खराब श्रेष्ठ है, इस कारण नहीं। सापेक्षता अपनी तरफ रखना। यह मैं | हो गई। दोनों को साथ नहीं चुन सकता। इतना बड़ा मेरे पास हृदय नहीं। मैंने सुना है, एक पादरी, एक ईसाई धर्मगुरु, एक रास्ते से गुजर इतनी विराट मेरी दृष्टि नहीं कि दोनों को साथ-साथ सम्हालूं! रहा था। अचानक बादल उठे, जोर की आंधी आई, बिजलियां इतना मेरे घर में स्थान नहीं कि दोनों को साथ-साथ मेहमान बना चमकी, वर्षा मूसलाधार होने लगी। तो वह भागकर पास के एक लू! यह मजबूरी मानकर चुनना कि घर छोटा है और एक को ही | झाड़ के नीचे खड़ा हो गया। घनी छाया थी। झाड़ के नीचे एक बुला सकता हूं।
बूढ़ा भी बैठा हुआ था। वह बूढ़ा प्रार्थना कर रहा था। उस जिस दिन तुम जागोगे, उस दिन तो तुम पाओगेः दोनों एक ही | धर्मगुरु ने खुद भी जिंदगीभर हजारों लोगों को प्रार्थना करवाई सत्य के दो भिन्न चेहरे हैं। लेकिन तब तक तुम्हें निर्णय करना थी, खुद भी हजारों बार प्रार्थना की थी, लेकिन प्रार्थना में कभी जरूरी है। और यह निर्णय बहुत जागरूक रहकर करना। यह रस न पाया था। करता था एक औपचारिक क्रिया-कांड। ईसाई निर्णय जन्म पर मत छोड़ देना कि तुम जैन घर में पैदा हुए तो घर में पैदा हुआ था, फिर ईसाई पादरी की तरह शिक्षित हो गया, महावीर तुम्हें श्रेष्ठ होने ही चाहिए। काश! चीजें इतनी आसान तो दूसरों को भी करवाता था; लेकिन मन में कभी तरंग न उठी होती! कि तुम हिंदू घर में पैदा हुए, इसलिए कृष्ण तुम्हें श्रेष्ठ होने | थी। इस बूढ़े को डोलते देखा। इस बूढ़े के टूटे-फूटे शब्द! ही चाहिए। काश! जन्म ने इतना तय कर दिया होता तो मार्ग लेकिन उसकी आंखों की मस्ती! उसके चेहरे पर एक बड़ा सुगम हो जाता। लेकिन ऐसा कुछ भी तय नहीं होता। ऐसा आभामंडल! उसे पहली दफे लगा : अरे! तो प्रार्थना मैंने अब कुछ भी तय होने का उपाय नहीं है।
तक जानी नहीं! ऐसी शांत! ऐसी उपस्थिति! ऐसी पवित्र जीसस यहूदी घर में पैदा हुए लेकिन यहूदियों का मार्ग न उपस्थिति उसने कभी अनुभव न की थी। जमा। मुहम्मद मूर्ति-पूजक घर में पैदा हुए थे, लेकिन मूर्ति-पूजा उस बूढ़े के चेहरे पर झुर्रियां पड़ गई थीं। बड़ा बूढ़ा था, काफी का मार्ग न जमा। महावीर पैदा हुए थे तो राज-घर में, क्षत्रिय थे, | उम्र हो गई थी, नब्बे के करीब उम्र होगी। लकड़हारा था, युद्ध का ही शिक्षण मिला था, लेकिन युद्ध की भाषा, राजमहल, लकड़ियों का ढेर बगल में रखा था। लौटता होगा शहर, वर्षा क्षत्रिय, राजनीति, न जमी। छोड़ सब, संन्यासी हो गये। आ गई तो रुक गया। समय प्रार्थना का हो गया, तो प्रार्थना कर
क्या तुम्हें जमेगा? जन्म से मत पूछना कि कहां हम पैदा हुए। रहा था। जब प्रार्थना पूरी हो गई, तो पादरी ने बड़े अहोभाव से वहां पूछा तो भटकाव का डर है। क्या तुम्हें जमेगा? थोड़ा पूछा कि तुम्हारा ईश्वर से बड़ा प्रेम है! उस बूढ़े ने कहा, 'हां,
397
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrar org