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धर्म की मूल भित्तिः अभयः
आधार है। तो वह कहते हैं, शुद्ध स्वरूप को जाननेवाला ऐसा जायेगी कि यह आदमी इस गाय के पीछे जायेगा? उन्होंने कहा, कौन ज्ञानी होगा, जो यह कहेगा 'यह मेरा है?' 'मेरा' अज्ञान अगर रस्सी काट दी तो गाय तो इस आदमी के पीछे जानेवाली है-घनीभूत अज्ञान! कहो, मेरा मकान। कहो, मेरी दुकान। नहीं; यह तो रस्सी में भी मुश्किल से जाती मालूम पड़ रही है। या कहो, मेरा मंदिर। या कहो, मेरा धर्म। कहो, मेरा बेटा! या यह आदमी ही गाय के पीछे जायेगा। कहो, मेरा गुरु। लेकिन जहां भी 'मेरा' है और जोर 'मेरे' पर तो उस फकीर ने कहा, रस्सी के धोखे में मत पड़ो! इस गाय है, वहां-वहां अज्ञान है। 'मेरे' का दावा ही अज्ञान का है। को इस आदमी से कुछ लेना-देना नहीं है। इस गाय ने कोई कुछ भी तुम्हारा नहीं है-सिवाय तुम्हारे।
तादात्म्य इस आदमी से नहीं बनाया है; इस आदमी ने तादात्म्य महावीर इस संबंध में बड़े आत्यंतिक हैं और साफ हैं। सिवाय बनाया है गाय से। तो गुलाम यह आदमी है, गाय नहीं। तुम्हारे और कोई भी तुम्हारा नहीं है। तुम्हारा होना ही बस तुम्हारा जब तुम कहते हो, 'यह मेरा मकान', तो तुम यह मत सोचना है। उसी को लेकर तुम आये, उसी को लेकर तुम जाओगे। कि मकान भी कहता है कि 'तुम मेरे मालिक।' मकान ऐसी बाकी तो खेल है। कोई पत्नी है, कोई पति है; कोई मित्र है, कोई भूल-चूक नहीं करेगा। मकान इतने अज्ञानी नहीं हैं। मकान को शत्रु है; कोई अपना है, कोई पराया है लेकिन बाकी सब खेल | मतलब ही नहीं है। अगर मकान को थोड़ा होश होता तो वह है। जहां तुम ठहरे हो, यहां 'मेरा' कुछ भी नहीं है। हंसता। वह मुस्कुराता तुम्हारी नासमझी पर। वह शायद तुम्हें
धर्मशाला है। रात रुक गये, ठीक। सुबह चलना है, चल क्षमा कर देता कि ठीक है, अज्ञानी हो, चलेगा। लेकिन मकान पड़ना है। तो महावीर कहते हैं, 'मेरा' जिसने छोड़ दिया उसका को तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। तुम नहीं थे, तब भी यह अज्ञान गिर जायेगा।
मकान बना रह सकता था। तुम नहीं रहोगे, तब भी बना रहेगा। _ 'मेरा' का अर्थ हआ कि आत्मा को हम किसी चीज से जोड़ते इब्राहीम सम्राट था बल्ख का। एक फकीर उसके द्वार पर हैं। जब तुम कहते हो, 'मेरा मकान', तो कौन-सी घटना घटती आया और झंझट करने लगा कि मुझे इस महल में ठहरना है। है। मकान को तो कुछ परिवर्तन नहीं होता, यह तो जाहिर है। लेकिन वह 'महल' नहीं कह रहा था। वह कहता था, यह तुम मर जाओगे, मकान रोयेगा नहीं। मकान गिर जायेगा तो तुम | 'सराय' में मुझे ठहरना है। बड़े जोर-जोर से लड़ रहा था वह रोओगे। एक बात पक्की है, जब तुम कहते हो, 'मेरा मकान', पहरेदार से। तो कोई परिवर्तन तुममें होता है, मकान में नहीं होता। मकान तो पहरेदार ने कहा, हजार दफे कह दिया यह धर्मशाला नहीं, वैसा का वैसा बना रहता है।
| सराय नहीं। सराय गांव में दूसरी है। यह राजा का महल है। यह एक सूफी फकीर अपने विद्यार्थियों को लेकर जा रहा था और राजा का खुद का निवास है। तुम होश में हो? तुम क्या बातें कर राह पर उसने देखा कि एक आदमी गाय को रस्सी से बांधे खींचे रहे हो? यह कोई ठहरने की जगह नहीं।। लिये जा रहा है। तो उसने अपने विद्यार्थियों को कहा, घेर लो इस तो उसने कहा, फिर मैं राजा को देखना चाहता हूं। इब्राहीम भी
आदमी को, एक शिक्षा देनी है। वह आदमी भी थोड़ा चौंका, | भीतर से सुन रहा था-बड़े जोर से। और उस फकीर की लेकिन अवाक खड़ा रह गया कि क्या मामला है, क्या शिक्षा है। आवाज में कुछ जादू था, कुछ चोट थी। वह जिस ढंग से कह वह सूफी फकीर ने अपने शिष्यों से कहा, 'मैं तुमसे पूछता हूं कि रहा था, ऐसा नहीं लगता था कि सिर्फ जिद्दी, कोई पागल है। इनमें गुलाम कौन किसका है? यह आदमी इस गाय का गुलाम उसके कहने में कुछ रहस्य मालूम होता था। उसने कहा, उसे है कि गाय इस आदमी की गुलाम?' स्वभावतः शिष्यों ने कहा बुलाओ भीतर। वह फकीर भीतर आया और उसने कहा, 'कौन कि गाय इस आदमी की गुलाम है, क्योंकि इस आदमी के हाथ में राजा है? तुम!' वह सिंहासन पर बैठा था, उसने कहा कि गाय की रस्सी है और यह जहां चाहे वहां ले जा सकता है। सूफी साफ है कि मैं राजा हूं। और यह मेरा निवास है और तुम व्यर्थ फकीर ने कहा, तुमने बहुत ऊपर से देखा। अब ऐसा समझो कि पहरेदार से झंझट कर रहे हो। हम यह रस्सी बीच से काट दें तो गाय इस आदमी के पीछे उसने कहा, बड़ी हैरानी की बात है। मैं पहले भी आया था,
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