________________
AHATTINE
जिन सूत्र भाग: 1HITTERRIT
तब एक दूसरा आदमी इस सिंहासन पर बैठा था और वह भी जाननेवाला है। और जिसने यह जान लिया कि मेरा कुछ भी नहीं यही कहता था।
| है, उसी को पता चलेगा मैं कौन हूं। उस राजा ने कहा, वे मेरे पिता थे, वे अब स्वर्गवासी हो गये। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि कैसे पता चले कि मैं उसने कहा, उनके पहले भी मैं आया था, तब एक तीसरा ही कौन हं। सीधी प्रक्रिया है : 'मेरे' को शिथिल करते जाओ। आदमी बैठा था। और हर बार पहरेदार भी बदल जाते हैं। जहां-जहां 'मेरे' को पाओ, वहां-वहां रस्सी को काटते जाओ। आदमी भी बदल जाते हैं। यह मकान वही है। और हर बार जब कुछ छोड़कर भाग जाने की भी जरूरत नहीं है कि तुम घर मैं आता हूं, तब यही झंझट!
छोड़कर भागो। क्योंकि छोड़कर भागने में तो ऐसा लगता है कि उसने कहा, वे हमारे पिता के पिता थे, वे भी स्वर्गवासी हो | काट न पाये, डरकर भाग गये। डर लगा कि रहे तो कहीं 'मेरा' गये।
हो ही न जाये यह मकान! कहीं लगने न लगे कि मेरा है! तो तो उसने इब्राहीम से पूछा, 'जब मैं चौथी बार आऊंगा, तुम जंगल भाग गये, जंगल में क्या होगा? जिस झाड़ के नीचे मुझे यहां मिलोगे, इस सिंहासन पर, कि फिर कोई और | बैठोगे, वही तुम्हारा हो जायेगा। मिलेगा? जब इतने लोग यहां बदलते जाते हैं, इसलिए तो मैं | तुमने देखा, भिखारी भी जिस जगह पर बैठता है सड़क के, कहता हूं यह सराय है, धर्मशाला है। तुम भी टिके हो थोड़ी देर; वह उसकी हो जाती है। अगर दूसरा भिखारी वहां आ जाये, मेरे टिक जाने में क्या बिगड़ रहा है? सुबह हुई, तुम भी चल झगड़ा हो जाता है, अब कुछ नहीं है। चलती सड़क है, किसी पड़ोगे, हम भी चल पड़ेंगे।
की नहीं है, सार्वजनिक है। मगर भिखारियों के भी अड्डे होते हैं। कहते हैं इब्राहीम को बोध हुआ। वह सिंहासन से नीचे उतर जो भिखारी जिस जगह बैठता है, वह उसकी दुकान है। आया और उसने कहा कि तूने मुझे जगा दिया। अब तू रुक, मैं एक आदमी एक भिखारी के सामने से गुजर रहा था। वह चला। अब यहां रुककर भी क्या करना है। जहां से सुबह जाना | भिखारी चिल्लाया, 'बाबा! कुछ पैसे मिल जायें, सिनेमा देख पड़ेगा, इतनी देर भी क्यों गंवानी!
आऊंगा।' और सामने तख्ती लगा रखी थी कि मैं अंधा हूं। उस इब्राहीम ने छोड़ दिया राजमहल। इब्राहीम सूफियों का एक आदमी ने पूछा, तुम अंधे हो? तो उसने कहा कि नहीं, असल में बड़ा फकीर हो गया।
यह दुकान दूसरे भिखारी की है। वह आज छुट्टी पर है। मैं अंधा मेरा मकान! मेरा बेटा! मेरा धन! मेरा धर्म! जहां-जहां तुम नहीं हूं, मैं लंगड़ा हूं। यह दुकान दूसरे की है, मैं तो सिर्फ आज 'मेरे' को फैलाते हो, वहां-वहां तुम्हारा 'मैं', झूठा 'मैं' खड़ा बैठा हूं, क्योंकि वह छुट्टी पर है। और मौके की दुकान है। तो होता है। जो 'मैं' 'मेरे' के फैलाव से बनता है, उसीको | जब वह छुट्टी पर होता है तो मुझे बिठा जाता है। महावीर अहंकार कहते हैं। और जो 'मैं' सब 'मेरे' के टूट तुम अगर जाओ जंगलों में, हिमालय की गुफाओं में, जहां जाने पर बचता है, उसको महावीर आत्मा कहते हैं। तो अभी तो संसार छोड़कर बैठे हैं संन्यासी, उनकी भी गुफाएं हैं: दूसरा न तुमने जो अपना 'मैं' जाना है, वह 'मैं' नहीं है। वह तो तुम्हारी बैठे। अगर दूसरा बैठ जाये, झगड़ा मच जाता है। तो क्या फर्क
और गाय के बीच में बंधी हुई रस्सी है। वह तुम्हारी अंतरात्मा पड़ेगा? मकान छूटेगा, गुफा अपनी हो जायेगी। गुफा छूटेगी, नहीं है। वह तो तुम्हारे मकान पर लगी हुई तुम्हारे अहंकार की सड़क के किनारे बैठ जाओगे तो वह टुकड़ा अपना हो जायेगा। छाप है।
तुम कहां अपने को लगाते हो, यह थोड़े ही सवाल है। कहीं भी इसलिए महावीर कहते हैं:
तो चिपकाओगे उस 'मैं' को! बस जहां चिपका दोगे, वही को णाम भणिज्ज बुहो, णाउं सव्वे पराइए भावे।
झंझट हो जायेगी। मज्झमिणं ति य वयणं, जाणतो अप्पयं सद्धं ।।
लोग धर्म से भी चिपका देते हैं। मेरा मंदिर! हिंदु कहते हैं, 'ऐसा कौन है जाननेवाला, जो कहेगा यह मेरा है?' | हमारा! मुसलमान की मस्जिद, वे कहते हैं, हमारी! हिंदू को रस तो जिसने यह जान लिया कि मेरा कुछ नहीं है, वही आता है मुसलमान की मस्जिद गिर जाये तो।
1424
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org