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जिन सूत्र भाग: 1
न घबरा जवानी की बेहररवी से
पड़ता है। अब तो न हजार रुपये हैं न दस रुपये हैं। हजार रुपये यह दरिया बना लेगा खुद ही किनारा
का जब ढेर था, तो हजार रुपये की कीमत थी उसकी। पांच रुपये वहीं तक खुदी है, वहीं से खुदा है
का ढेर था, दस रुपये का ढेर था, तो दस रुपये की कीमत थी; जहां बेकसी ढूंढ़ती हो सहारा।
लेकिन दोनों हटा लिये तो जो शून्य पीछे रह जाता है, वह तो घबडाओ मत। यह आज जो जवानी का तफान है, यह जो लगता है एक ही मल्य का है। दस रुपये का शन्य भी उतना ही राग-मोह की उठी आंधी है, यह अपने से ही विदा हो जायेगी। बड़ा है, हजार रुपये का शून्य भी उतना ही बड़ा है। तो तुम तुम जरा पैर को सम्हालकर चलते रहो।
गलती कर रहे हो। जीवन में ऐसा नहीं है। जो आदमी जितना न घबड़ा जवानी की बेहररवी से
गहरा जीया है, जब वह एकांत में जाता है तो उसके एकांत की यह दरिया बना लेगा खुद ही किनारा।
गहराई भी उतनी ही गहरी होती है। जो आदमी समूह में जीया ही हां, जल्दी अगर भाग खड़े हुए तो मुश्किल में पड़ जाओगे। नहीं है, वह एकांत में चला जाता है, तो उसके एकांत की कोई तब न यहां के रहोगे न वहां के।
गहराई ही नहीं होती। इसे तुम अनुभव कर सकते हो कि जो जो प्रेम से भाग गया उसके पास अहंकार के सिवाय कुछ भी आदमी जंगल में ही जीया है, उसे जंगल में कोई सौंदर्य नहीं नहीं बचता। यद्यपि अगर तुम बहुत दूर भाग गये तो तुम्हें पता होता। जो भीड़ में, समूह में, बाजार में बैठा रहा है, जब कभी भी न चलेगा अहंकार का, क्योंकि उसका पता भी साथ-संग में जंगल जाता है तो जो उसे जंगल में दिखाई पड़ता है, वह जंगल चलता है, समूह में चलता है।
के आदमी को दिखाई नहीं पड़ता। तुमने खयाल किया, आदमी का बच्चा पैदा होता है, अगर उसे | वानगाग के जीवन में ऐसा स्मरण है कि वानगाग एक समुद्र संग-साथ न मिले, मां-पिता परिवार न मिले, समूह-समाज न तट पर, फ्रांस के, अपने चित्र बना रहा था। वह सूरज के पीछे मिले, तो बच नहीं सकता, मर जायेगा। तुम कोई कल्पना कर दीवाना था। सूर्योदय, सूर्यास्त–उन पर उसने बड़ी मेहनत सकते हो कि आदमी का बच्चा बच जाये बिना समूह, संग-साथ की। समुद्र के किनारे वह एक दिन सूर्यास्त का चित्र बना रहा के? हां कभी-कभी ऐसा हुआ है कि भेड़िये आदमी के बच्चे को | था। उसके चित्र को देख रही थी एक समुद्र के तट की मछुआ ले गये; लेकिन वह भी समूह था, संग-साथ था। भेड़ियों ने की औरत। वह गौर से देखती रही, गौर से देखती रही। वह फिर बचा लिया। लेकिन अकेला तो आज तक कोई मनुष्य का बच्चा दूसरे दिन देखने आई, फिर तीसरे दिन देखने आई। और सातवें बचा नहीं है। जो मनुष्य के शरीर के संबंध में सच है, वही मैं दिन धीरे-धीरे वानगाग से परिचय भी हो गया। तो जब सूरज तुमसे कहता हूं, आदमी की आत्मा के संबंध में भी सच है। डूबने के करीब आया तो उसने कहा कि आप रुकना, मैं जरा उसका जन्म भी समूह में होता है-संग-साथ में, परिवार में। | अपने पति को, अपने बच्चों को भी ले आऊं। तो वानगाग ने आदमी की आत्मा भी अकेले में नहीं जन्मती। हां, अकेले का पूछा, किसलिए? तो उसने कहा कि वे भी सूर्यास्त देख लें। तो तुम उपयोग कर सकते हो। कभी-कभी अकेले हो जाने में भी | उसने कहा कि वे तो यहीं रहते ही हैं इस समुद्र तट पर, उन्होंने | रस है। कभी-कभी दसरे से दर हट जाने में भी रस है। लेकिन सूर्यास्त नहीं देखा? उस स्त्री ने कहा, नहीं मैंने भी नहीं देखा था, वह फायदा भी दूसरे से दूर हटने के कारण होता है। खयाल जब तक आप न आये थे। यह तो इतना स्वाभाविक था हमारे करना, वह फायदा भी अकेले होने के कारण नहीं होता, दूसरे से जीवन का हिस्सा कि इसका हमें कभी बोध न हुआ था। तुम्हारे दूर हटने के कारण होता है। उसका लाभ भी दूसरे में ही है। आने से हमें पता चला सूर्यास्त का सौंदर्य।
ऐसा समझो कि एक हजार रुपये का ढेर लगा है और एक दस अब यह वानगाग जहां से आ रहा है, वहां सूर्यास्त मुश्किल है रुपये की ढेरी लगी है। जब हम हजार रुपये की ढेरी हटाते हैं, देखना, सूर्योदय देखना मुश्किल; कुहासा घिरा रहता है। इसके
और दस रुपये की ढेरी हटाते हैं, तो दस रुपये का अभाव भी लिए सूर्योदय और सूर्यास्त बड़े महिमापूर्ण हैं।। | वैसा ही मालूम पड़ता है जैसे हजार रुपये का अभाव मालूम पश्चिम में संडे, सूर्य का दिन छुट्टी का दिन है। क्योंकि सूर्य
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