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प्रश्न-सार
बैठे-बैठे दिले-नादां ये खयाल आया है
हम नहीं आए यहां कोई हमें लाया है किसने नन्हा-सा मुहब्बत का ये जला के दिया
दिले-वीरां के अंधेरे पे तरस खाया है। पर दीया तो जलता नजर नहीं आता...?
भगवान, तुम्हारे चरणों में शत-शत प्रणाम !
कल जिस क्षण आपने कहा कि महावीर ने स्वाधीनता को आत्यंतिक मूल्य दिया, उस क्षण मैं आपको निहारता ही रहा। क्या कर दिया आपने?
।
मुझे इतना कुछ मिल रहा था कि अंतर में समाता नहींऔर प्यास भी इतनी ही है।...प्रभु! यह सब क्या हो रहा है?
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