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HARIHARANEE
परमात्मा के मंदिर का द्वार प्रेम
ऐसा प्रगाढ़ होकर दिखाई नहीं देता जैसा पूरब में दिखाई पड़ता दो। लेकिन प्रेमी कहता है, छोड़ो; क्योंकि जिसने छोड़ा है उसीने है; ऐसी महिमा नहीं है सूरज की; सूरज ढका-ढका है, भोगा। तेन त्यक्तेन भुंजीथाः। जिसने दिया उसीने पाया। प्रेमी छिपा-छिपा है।
कहता है, दे दो; क्योंकि बिना दिये पा न सकोगे। तो सूरज का दिन छट्टी का दिन होना ही चाहिए। लोग उत्सव प्रेम की बड़ी अनठी कीमिया हैः तम्हारे पास वही होता है जो मनायें: सूरज निकला है, सूरज का दिन है।
तुम दे देते हो। जो तुम बचा लेते हो, वह तुम्हारे पास कभी नहीं एकांत में उतनी ही गुणवत्ता होगी जितना गहरा तुम्हारे संबंधों होता। दिखता है तुम्हारे पास है, लेकिन तुम उसके मालिक नहीं का जगत था। जिस आदमी ने खूब भरपूर प्रेम किया है, वह जब होते। मालिक तुम उसी के हो जो तुम दे देते हो। जो बांट दिया, हिमालय पर जाकर बैठ जाता है तो उसके हृदय की गहरई पूछो उसी के मालिक हो। मालकियत कब घटती है, तुमने सोचा? मत। लेकिन जिसने कभी प्रेम ही नहीं किया, वह भी हिमालय जब तुम्हारे हाथ से कोई चीज किसी दूसरे हाथ में जाती है, उस की पहाड़ी पर जाकर बैठ जाता है; उसका छिछलापन क्षण। जब तुम्हारे हाथ से हटती है चीज, तुम मालिक होते हो। छिछलापन ही रहनेवाला है।
अगर तुम्हारी मुट्ठी में बंद रहे, तुम मालिक नहीं होते, ज्यादा से ___ मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि तुम्हारे एकांत का भी तभी मूल्य है ज्यादा पहरेदार। तिजोड़ी पर बैठे हैं लट्ठ लिये, बंदूक जब तुम्हारे संबंधों की गहराई हो। अगर हजार रुपये की गहराई। लिये—पर पहरेदार। थी तो तुम्हारा एकांत हजार रुपये के मूल्य का होगा। अगर दस जिस क्षण तुम देते हो, देने से ही पता चलता है कि तुम्हारे पास रुपये की गहराई थी तो दस रुपये के मूल्य का होगा।
था। देने से ही तुम्हें भी पता चलता है कि मैं दे सका-मेरा था! जीवन का गणित मुर्दा गणित नहीं है। यहां तुमने कितनी वही है तुम्हारा जो तुमने दिया। और उसी को तुमने भोगा, जो तीव्रता से, त्वरा से जीवन को जीया है, उतनी ही अनूठी तुमने बांटा। अनुभूतियां एकांत में उठेगी। इसलिए मैं कहता हूं : जाओ प्रेम साझेदारी बढ़ाओ! प्रेम का अर्थ इतना ही होता है : साझेदारी में, क्योंकि तुम्हारे ध्यान की गहराई भी तुम्हारे प्रेम की गहराई पर करो। किसी को दो! किसी को बांटो! और धन्यवाद देना उसे, निर्भर होगी। दूसरे के साथ तो जीकर देख लो, ताकि तुम अपने जो तुम्हारे जीवन में इस भांति आये कि तुम उससे कुछ बांट साथ जीने का राज सीख जाओ।
सको। धन्यवाद देना! दूसरे के माध्यम से हम अपने पास आते हैं। दू
प्रेम की बड़ी कुशलता यह है कि यहां लेनेवाला भी कुछ देता है जिसके द्वारा हम अपने पर वापस आते हैं।
और देनेवाला भी कुछ देता है। जब तुम किसी को कुछ देते हो व्यक्तियों के बीच निकटतम दूरी का नाम प्रेम है। जैसे दो और वह स्वीकार कर लेता है तो उसने भी तुम्हें कुछ बिंदओं के बीच निकटतम दूरी का नाम रेखा, ऐसे दो व्यक्तियों दिया-उसकी स्वीकृति से दिया। उसने तुम्हें मालिक बना के बीच निकटतम दूरी का नाम प्रेम है। अगर थोड़े इरछे-तिरछे दिया। उसने तुम्हें दाता बना दिया। अब और क्या चाहते हो? चलकर जाते हो तो यह प्रेम नहीं है। सीधे-सीधे!
तुमने जो दिया वह कुछ नहीं था। उसने जो दिया वह बहुत ज्यादा प्रेम सिखायेगा सरलता। प्रेम सिखायेगा विनम्रता। प्रेम है। इसलिए हिंदुस्तान में हमारी व्यवस्था है कि पहले दान दो, सिखायेगा निरहंकार। प्रेम सिखायेगा त्याग।
| फिर दक्षिणा दो। दक्षिणा का अर्थ है : उसने दान स्वीकार किया, इसे तुम खयाल रखना, जिसने कभी प्रेम नहीं किया उसका | इसका धन्यवाद भी दो। अकेले दान से काम न चलेगा। पहले त्याग कृपण का त्याग होता है; वह त्याग नहीं है। वह कंजूस तो दो, लेकिन यह जरूरी थोड़े ही है कि वह ले ले। कोई इनकार है। इसलिए मैं सुनता हूं साधुओं को समझाते कि छोड़ दो कर दे, फिर? कोई कह दे नहीं चाहिए, फिर? धन-दौलत, मौत सब छीन लेगी। अब यह जरा सोचने जैसी प्रेम का अर्थ है ऐसा भरोसा कि तुम जिसे देने जा रहे हो, वह बात है कि मौत छीन लेगी, इसलिए छोड़ने को कह रहे हो। | ले लेगा, इनकार न करेगा। बहुत-से लोग इनकार के कारण ही मतलब, यह डर छीने जाने का है। इसलिए बेहतर है, छोड़ ही देने से डरते हैं कि हम देने गये और किसी ने कह दिया, नहीं;
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