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जिन सूत्र भागः1
कंकड़-कंकड़ छोड़ देना, मोती-मोती चुन लेना। प्रेम में बड़े फिर एक ज्ञान है कि तुम किसी व्यक्ति के अंतस्तल में उतरते मोती हैं!
| हो; हृदय से हृदय की गांठ बांधते हो, एक-दूसरे के लिए अपना इसलिए तुमसे फिर-फिर कहता हूं, उसे समस्या मत बनाना। द्वार-दरवाजा खुला छोड़ते हो। हां, उसमें कुछ कंकड़ पड़े हैं, उन्हें निकालना जरूरी है। प्रेम का क्या अर्थ होता है? यही अर्थ होता है कि किसी
जैसे-जैसे प्रेम का अनुभव गहन होता है-प्रेम का गुण व्यक्ति के लिए तुमने अब अपने जीवन के सब दरवाजे खुले बदलता है।
| छोड़ दिये; और किसी व्यक्ति ने तुम्हारे लिए अपने जीवन के अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मगर क्या कीजे
सब दरवाजे खुले छोड़ दिये। प्रेम का यही अर्थ होता है कि दो और भी दुख हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा
व्यक्तियों के बीच अब छुपाने योग्य कोई राज न रहा। प्रेम का राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
यही अर्थ होता है कि अब दो व्यक्तियों के बीच ऐसा कुछ भी मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरी महबूब न मांग।
नहीं है जिसे छिपाया जाये; सब उघाड़ा; दो हृदय अपने आवरण जब कोई व्यक्ति पहली दफा प्रेम में उतरता है, तो प्रेम होता है के बाहर आये; दो हृदयों ने एक-दूसरे को नग्नता में देखा और एक स्वप्न जैसा; जैसे और सब व्यर्थ हो जाता है, प्रेम ही सार्थक | दो हृदय एक-दूसरे में प्रविष्ट हुए। और यह प्रेम के द्वारा ही हो जाता है।
संभव है। लेकिन जैसे-जैसे प्रेम का अनुभव गहन होता है, प्रेम की पीड़ा | अगर तुम बाहर खड़े रहो, जैसा कि वैज्ञानिक खड़ा रहता है, साफ होती है, और भी दुख दिखाई पड़ने शुरू होते हैं। | तटस्थ भाव से दर्शक की तरह देखते रहो. प्रेम में डबोन. तो तम और भी दुख हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा
कभी जान ही न पाओगे। आत्मा को तो न जान पाओगे। राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
इसलिए विज्ञान आत्मा को नहीं जान पाता। विज्ञान कभी भी नहीं अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मगर क्या कीजे
जान पायेगा कि आदमी में आत्मा है। क्योंकि आत्मा का पता तो मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरी महबूब न मांग।
प्रेम के अतिरिक्त और किसी ढंग से चलता ही नहीं। यह कोई और प्रेम बहुत कुछ सिखाता है। प्रेम से बड़ी कोई पाठशाला चीर-फाड़ करके पता नहीं चलेगा। यह कोई डिसेक्शन, सर्जरी नहीं है। क्योंकि प्रेम से ज्यादा तुम किसी मनुष्य के निकट और करके पता नहीं चलेगा। यह कोई औजारों को आदमी के भीतर किसी ढंग से आते नहीं हो। जितने तुम निकट आते हो, उतने ही ले जाकर पहचान नहीं हो सकती कि आत्मा है। तब तो कुछ भी मनुष्य की अंतरात्मा प्रगट होने लगती है। तुम भी झलकते हो, न मिलेगा। हड्डी, मांस-मज्जा मिलेगी। जो बाहर-बाहर है, दुसरा भी झलकता है। जितने तुम करीब आते हो, तुम भी वही पकड़ में आयेगा। जो भीतर-भीतर है, वह छुट जायेगा। उघड़ते हो, दूसरा भी उघड़ता है।
__ तुमने खयाल किया कि जिसे तुम प्रेम करते हो, वह हड्डी, एक तो विज्ञान का ढंग है-दूर खड़े होकर देख लेने का ढंगः | मांस-मज्जा नहीं रह जाता! जिसे तुम प्रेम नहीं करते, वह हड्डी, बाहर से देख लेने का ढंग। फिर एक कवि का ढंग है : भीतर | मांस-मज्जा रह जाता है। जिसे तुम प्रेम नहीं करते, वह मात्र गहरे उतरकर, प्रेम करके देखने का ढंग। अब अगर तुम्हें वृक्ष | शरीर है। जिसे तुम प्रेम करते हो, उसमें पहली दफा आत्मा का को देखना है, चट्टान को देखना है, तो शायद बाहर से भी देख | बोध होना शुरू होता है। लो। मैं कहता हूं शायद; क्योंकि जिन्होंने बहुत गहरा देखा है, वे इसलिए जिन्होंने खूब प्रेम किया, अटूट प्रेम किया, उन्हें सब तो कहते हैं, चट्टान को भी बाहर से देखना अधूरा देखना है। जगह आत्मा दिखाई पड़ गई। अगर महावीर को पत्थरों में भी क्योंकि चट्टान का भी अंतस्तल है। तो बाहर-बाहर से तुम दिखाई पड़ गई तो उसका कारण यह नहीं है कि वे दूर खड़े चट्टान की परिक्रमा कर आओगे, देख लोगे-उस देखने को | वैज्ञानिक की तरह देखते रहे, वे गहरे में अंतस्तल में संबंधित तुम देखना मत मान लेना। बर्टेड रसेल ने कहा है, वह परिचय | हुए, उतरे। तो वृक्ष में भी आत्मा दिख गई। तो महावीर वृक्ष का है-एक्वेंटेंस। उसे ज्ञान मत कहना।
पत्ता तोड़ने में भी चिंता अनुभव करते हैं।
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