Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 474
________________ जिन सूत्र भागः 1 जाओगे? तम परिपूर्ण मुक्त कैसे हो सकोगे? हुआ है, वह किसी परमात्मा के खेल की बात बन जाये तो थोड़ी महावीर के हिसाब में परमात्मा का होना मोक्ष के विपरीत है।। ज्यादती हो गई। जन्मों-जन्मों की चेष्टाओं के बाद जिसे पाया या तो मोक्ष हो सकता है या परमात्मा हो सकता है। अगर | जाता है, उसे पाकर अगर जरा-सी उसकी मर्जी के बदलने से परमात्मा है तो मोक्ष नहीं हो सकता; क्योंकि परमात्मा तो | खोना पड़े, तो वह उपलब्धि उपलब्धि के योग्य न रही। फिर निरंकुश होगा। वह तो नियम के ऊपर होगा। महावीर कहते हैं, जगत एक पागलपन है। नियम के ऊपर किसी का भी होना खतरनाक है, क्योंकि फिर | 'शुद्ध सम्प्रयोग अर्थात भक्ति आदि शुभ भाव से दुख मुक्ति उसकी मर्जी ! जैसा हिंदू कहते हैं, परमात्मा की लीला, इच्छा! होती है, ऐसा अगर कोई मानता हो तो वह गलत मानता है, उसने संसार बनाया। यह महावीर को बर्दाश्त के बाहर है। । क्योंकि वह भी राग का अंश है।' महावीर कहते हैं, इसका तो अर्थ हुआ कि जो लोग मुक्त हो अगर भक्तों की बात सुनें तो लगता भी है कि राग का अंश। गये, अगर परमात्मा की लीला हो जाये, इच्छा हो जाये तो उनको | शुद्ध राग है, बड़ा श्रेष्ठ राग है, जरा भी दूषित नहीं है संसार वापस संसार में भेजा जा सकता है। तो ऐसे मोक्ष का तो कोई से-लेकिन फिर भी राग तो है ही! मूल्य न रहा। अगर परमात्मा की मर्जी से संसार निर्मित होता है | उसके मजकूर के सिवा 'बेदार' तो मोक्ष लेकर भी हम क्या करेंगे? उसकी मर्जी जिस दिन बदल और कुछ बात खुश नहीं आती। जाये, आज्ञा दे दे कि चलो मोक्ष खाली करो, संसार वापस भक्त कहता है, भगवान की याद के सिवाय और कछ बात में लौटो! अगर खेल ही है और वह निरंकुश है और वह नियम के मजा नहीं आता। लेकिन इसका अर्थ तो साफ हुआ कि मजा ऊपर है, तो फिर व्यर्थ बात हो गई। अभी अपना नहीं है-उसकी याद! तो कहीं निर्भर है, पर है, महावीर पूछते हैं कि परमात्मा नियम के ऊपर है, या नियम अपने से बाहर है। परमात्मा के ऊपर है? अगर नियम परमात्मा के ऊपर है तो शाम से आ रही है याद तेरी परमात्मा परमात्मा नहीं। फिर नियम ही परमात्मा है। और अगर जाम छलका रही है याद तेरी परमात्मा नियम के ऊपर है तो नियम सब बकवास है। फिर झनझना-सा रहा है साजे-खयाल नियम का क्या अर्थ? उसकी निरंकुश इच्छा है; जब वह जैसा गीत-से गा रही है याद तेरी। चाहे कर दे। . लेकिन भक्त वैसे ही शब्दों का उपयोग करता है परमात्मा के इसलिए महावीर कहते हैं, अगर जगत में व्यवस्था लिए जो वह प्रेयसी के लिए करता है या प्रेमी के लिए करता है। चाहिए...अब तुम चकित होओगे कि दृष्टियां कितनी मौलिक फर्क नहीं मालूम पड़ता। ऐसा लगता है कि जो हमारा राग रूप से भिन्न हो सकती हैं! हिंदु कहते हैं, अगर जगत में मनुष्यों के प्रति था, उसी राग को हम परमात्मा की तरफ आरोपित व्यवस्था चाहिए तो परमात्मा चाहिए। क्योंकि बिना परमात्मा के कर देते हैं। कौन व्यवस्था करेगा? अराजकता हो जायेगी। और महावीर शाम से आ रही है याद तेरी कहते हैं, अगर परमात्मा हुआ तो अराजकता हो जायेगी। जाम छलका रही है याद तेरी क्योंकि फिर व्यवस्था कैसे सम्हलेगी? अगर नियम के ऊपर झनझना-सा रहा है साजे-खयाल कोई बैठा है जो नियम को भी तोड़-मरोड़ कर सकता है तो गीत-से गा रही है याद तेरी। अव्यवस्था हो जायेगी। महावीर परमात्मा को उसी कारण से | यह हम प्रेयसी के लिए भी कह सकते हैं और परमात्मा के लिए इनकार करते हैं जिस कारण से हिंदू स्वीकार करते हैं। भी कह सकते हैं। का अर्थ ही है कि एक ऐसी चित्त की दशा, एक ऐसे इसलिए सूफियों के वचन दोहरे अर्थ किये जा सकते हैं। या तो | चैतन्य की दशा जिसको फिर वापस न लौटाया जा सके। तुम उनका अर्थ कर लो सांसारिक, तो प्रेयसी के लिए कहे गये अन्यथा इतने श्रम, इतनी तपश्चर्या, इतनी चेष्टा से जो उपलब्ध | हैं; या अर्थ कर लो आध्यात्मिक, तो परमात्मा के लिए कहे गये 464 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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