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जिन-शासन अर्थात आध्यात्मिक ज्यामिति ।
बाधा दूं! तुम फिर सोच लो, सुबह कहीं तुम बदल मत जो सौ में से एक मर जाता है, वह भी ऐसा लगता है कि जाना—सूरज ऊगा देखकर, फिर लोग, भीड़ देखकर-फिर भूल-चूक से सफल हो गया। निन्यानबे तो सफल नहीं होते, तुम मौत की बात मत कर लेना। अब तुम तय कर लो। अगर | क्योंकि वह असफलता का इंतजाम पहले से कर लेते हैं। मरने मरना हो तो मर जाओ। अगर जिंदा रहना है तो जिंदा रहो, फिर की चेष्टा, उनकी कुछ घोषणा है जीवन के बाबत। वे किसी और मरने की बात मत करो।'
तरह का जीवन चाहते हैं लेकिन जीवन नहीं चाहते, ऐसा नहीं है। वह आदमी अभी भी जिंदा है। वह मुझ पर बहुत नाराज है! जीवन तो चाहते ही हैं और तरह का जीवन चाहते हैं। इस उसने शादी भी कर ली किसी दूसरी स्त्री से। अब तो बच्चे भी हैं जीवन से तप्ति नहीं हो रही है। तो वे इस जीवन के प्रति शिकायत उसके। और कभी मैं गया उस गांव दुबारा तो उसको बुलाता हूं कर रहे हैं मरने की कोशिश में। तो वह बड़ी नाराजगी में आता है। वह प्रसन्न नहीं है। जैसे मैंने | लेकिन कौन किसको रोक सकता है? मरना कोई चाहता नहीं, उसका कोई अहित किया। और मैं वही कर रहा था जो वह करना इसलिए कानून चलता है। अन्यथा मैं नहीं देखता कोई उपाय है चाहता था।
कि तुम कैसे किसी आदमी को रोक सकोगे मरने से। जिसको लोग कहते हैं कि मर जायें अब तो। वे यह नहीं कह रहे हैं कि मरना है वह राह खोज लेगा।। मरना चाहते हैं। भूल मत समझ लेना। वे तो सिर्फ यही कह रहे मौत तो व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसको कोई राज्य हैं कि जिंदगी थोड़ी बेहतर होनी चाहिए। यह कोई जिंदगी है। छीन नहीं सकता।
इस मरने की चाह में ही जीवन की आकांक्षा है। इस मरने की लेकिन कोई मरना ही नहीं चाहता, छीनने का सवाल ही नहीं चाह में भी और जीवन को चूस लेने का भाव है। वे यह कह रहे है। कभी-कभी कोई भूल-चूक से सफल हो जाता है। वह भी | हैं कि अब जिंदगी में कुछ सार तो नहीं मालम पड़ता, क्या पछताता होगा मरकर कि 'अरे, यह मैंने क्या कर लिया। यह फायदा जीने से! लेकिन फिर भी भीतर जीने की आकांक्षा है! जरा मैं अति कर गया। जरा दो कदम ज्यादा उठा लिये, जरा दो अन्यथा कौन किसको मरने से रोक सका है? कौन कब रोक कदम कम उठाने थे।' प्रेत होकर वह भी पछताता होगा। सकता है?
महावीर कहते हैं : चूंकि जीवेषणा है, इसलिए मौत तुमसे कुछ दुनिया के सरकारी कानूनों में अगर सबसे मूढ़तापूर्ण कोई है तो छीन पाती है। जिस व्यक्ति की जीवन की आकांक्षा भी न वह आत्महत्या के विपरीत कानून है। वह कुछ समझ के बाहर रही...। इसका यह अर्थ नहीं है कि उसको मरने की आकांक्षा है। सरकारों को ऐसे कानून नहीं बनाने चाहिए जिनको वह पूरा न | पैदा हो जाती है। क्योंकि जिसको जीवन की आकांक्षा न रही, करवा सकती हों। आत्महत्या का कानून कोई सरकार पूरा नहीं उसे मरने की आकांक्षा कैसे पैदा होगी? वह तो जो है उसे करवा सकती। जिसको मरना है, उसे कोई कैसे रोक सकता है, स्वीकार कर लेता है। जीवन तो जीवन, मौत तो मौत। उसने थोड़ा सोचो तो! सौ में निन्यानबे लोग जो मरने की चेष्टा करते | अपनी आकांक्षाओं को आरोपित करना बंद कर दिया। जो तथ्य हैं, वे सिर्फ दिखावा करते हैं, मरना नहीं चाहते सौ में से है, स्वीकार कर लेता है। अभी जी रहा है, तो जी रहा है; क्षणभर निन्यानबे मरने की चेष्टा करके बच जाते हैं। वे बचने का पहले बाद सांस बंद हो गई तो वह चुपचाप बंद कर लेगा। वह एक ही इंतजाम कर लेते हैं। आकांक्षा जीने की इतनी प्रगाढ़ है! और दफा ज्यादा सांस लेने की चेष्टा न करेगा। हां! मरने के महले | वह जो एक आदमी मर जाता है, वह भी मरना चाहता था, इसमें मरेगा भी नहीं; क्योंकि उसमें भी जीवेषणा, आकांक्षा, चाह का
संदेह है। मर गया, यह दूसरी बात है। कुछ जरा जरूरत से | हिस्सा होता है। ज्यादा इंतजाम कर गया। कुछ समझ न पाया। दस गोलियां मुक्तपुरुष वही है जिसके भीतर से अब जीवन की भी आकांक्षा लेनी थीं, बीस ले लीं। कुछ भूल-चूक गणित में हो गई। नहीं रही। फिर मौत कोई परिणाम नहीं ला पाती। सोचती थी पत्नी कि पति सांझ घर आ जायेंगे, वे दो दिन तक | और जहां मौत व्यर्थ हो जाती है, वही कसौटी है कि तुमने परम नहीं आये और वह रात पड़ी-पड़ी मर गई।
जीवन को जाना। उस परम जीवन का नाम महावीर मोक्ष रखते हैं
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