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जिन सत्र भार
इसलिए अकसर मैं देखता हूं कि लोग दुख की सीमाएं और सौभाग्य से मिलता है। अब मिल गया है तो इसे खराब मत स्थितियों को भी छोड़ते नहीं। अगर किसी पत्नी से तुम्हारा करो। अब तो इस शून्य में डूबो। यद्यपि प्राथमिक चरण पर जीवन सतत कलह में गुजर रहा है तो भी तुम अलग नहीं होते। डूबना ऐसा ही लगेगा, जैसा मरे, मौत हुई। या किसी पति के साथ जीवन एक नारकीय स्थिति बन गई है, तो और एक अर्थ में ठीक भी है, तुम तो मरोगे ही। तुम जैसे अब भी अलग नहीं होते। क्यों? हजार बहाने तुम खोजते हो, | तक रहे हो, इस शून्य में डूबोगे, मिट जाओगे। नये का जन्म लेकिन वह सब बहाने हैं। मौलिक बात यह है कि अब इस दुख होगा, आविर्भाव होगा। की भी आदत हो गई है।
'क्या करूं? मैं बावरी-सी हो गई हैं।' । और एक बड़ा अनुभव पश्चिम में आना शुरू हुआ है, जहां कि | पागलपन जैसा ही लगेगा। भीतर जाओ तो शून्यता; बाहर लोग काफी पति-पत्नियां तीव्रता से बदलते हैं। एक अनुभव आओ तो व्यर्थ के विचारों का ऊहापोह है। बाहर आओ तो कोई आना शुरू हुआ है कि जो आदमी एक पत्नी को छोड़कर दूसरी | सार नहीं है और भीतर जाओ तो घबड़ाहट! एक अनंत शून्य पत्नी को खोजता है, वह फिर करीब-करीब वैसी ही स्त्री को मुंह-बाए खड़ा है। तो पागलपन मालूम पड़ेगा। यह पागलपन खोज लेता है जैसी उसने छोड़ी। उसी तरह की कर्कशा या उसी तभी तक मालूम होगा जब तक शून्य से रस नहीं बैठता। तरह की उपद्रवी! छोड़ा नहीं है अभी एक को, और वह दूसरी | शून्य में रस लो, पहचान बनाओ! शून्य को गुनगुनाओ। को फिर वैसा का वैसा खोज लेता है! क्या कारण होगा? अब शून्य को नाचो! जब शून्य आ जाये तो अहोभाव अनुभव करो। तो उसको उसी तरह की स्त्री में रस आने लगा। तो अब वह फिर परमात्मा को धन्यवाद दो। यह उसकी अनुकंपा है। खोज लेता है। उसकी चाह का ढंग रुग्ण हो गया। अब वह शून्य इस जगत में परमात्मा की सबसे बड़ी देन है, प्रसाद है। गलत की तरफ उत्सुक हो जाता है। वह फिर वैसी ही थोड़े-से सौभाग्यशाली लोगों को मिलता है। और जिनको व्यक्तित्ववाली स्त्री को खोज लायेगा, जो फिर कहानी को मिलता है, वे भी सभी सम्हाल नहीं पाते। बहुत-से तो उसे नष्ट दोहरायेगी। फिर त्याग करेगा।
कर देते हैं। क्योंकि वह देन इतनी बड़ी है कि तुम्हारी पात्रता एक आदमी के बाबत मनोवैज्ञानिकों ने अध्ययन किया। उसने छोटी पड़ जाती है। आठ तलाक किये और हर बार वैसी ही पत्नी खोज लाया। _ 'मैं अपने को बहुत असहाय, अकेली, असुरक्षित पा रही
आदमी तो वही है-खोजनेवाला वही है तो फिर वही | हूं...।' खोज लायेगा।
कोई हर्जा नहीं। मन कहेगा, कोई सुरक्षा खोज लो। मन तुम जरा खयाल करना अपने जीवन में, तुमने बहुत-से दुख | कहेगा, किसी तरह किसी को अपने इस एकांत में ले आओ। पकड़ तो नहीं रखे हैं जो कि जाना चाहते हैं, लेकिन तम नहीं जाने वह अगर भूल की तो शून्य की शुद्धता नष्ट हो जायेगी। फिर दे रहे हो!
संसार निर्मित हो जायेगा। ऐसे ही तो हम बहुत बार वापिस तो जब व्यक्ति को सन्नाटा होगा तो वह पुराने विचारों को | कोल्ह के बैल बन जाते हैं। आमंत्रित करेगा, बुलायेगा। वह आक्रमण नहीं है, तुम्हारा ___ अब यह एक खिड़की खुली है, इसे बंद मत कर देना। बुलावा है। क्योंकि उस भांति थोड़ी देर को भीतर की रिक्तता भर असहाय मालूम होते हो, असहाय सही। स्वीकार करो! जाती है। उथल-पुथल मच जाती है।
असुरक्षित मालूम होते हो, असुरक्षित सही। स्वीकार करो। यह विचार है, क्रोध है, झगड़ा है, कोई सपना है, कोई योजना जो तथ्य सामने प्रगट हो रहा है, इसे इनकार मत करो और है-उतनी देर को तुम अपने भीतर के आकाश को भर लेते हो। बदलने की चेष्टा मत करो। इसे भरपूर नजर देखो, अहोभाव से उतनी देर को शून्य भूल जाता है।
दखो, कृतज्ञता से देखो। कहो कि प्रभु ने यही चाहा कि शून्य शन्य में रस लो, तो धीरे-धीरे ये विचार समाप्त हो जायेंगे। होना है, जरूर शन्य से ही जन्म होता होगा। यह मेरी राह शन्य यह शून्य बड़ा महिमाशाली है। शून्य को ही तो ध्यान कहा है। के मंदिर से ही गुजरती है, तो इससे गुजर जाना है।
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