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धर्म आविष्कार है-स्वयं का
इस कारण अपने पर नियंत्रण मत रखना। नहीं, जब पूर आये तो में पड़ने का, उसे लड़ने देना। वह लड़-लड़कर ही पड़ेगा। आने देना।
अपने-अपने ढंग होते हैं, अपनी-अपनी शैली होती है। जब्त की काशिशें बजा लेकिन
चमक उसकी बिजली में, तारे में है क्या छुपे शौके-बेपनाह का राज
यह चांदी में, सोने में, पारे में है हर किसी को सुनाई देती है
उसी की बयाबां, उसी के बबूल मेरी आवाज में तेरी आवाज।
उसी के हैं कांटे, उसी के हैं फूल। जिन्होंने मुझे चाहा है, प्रेम किया है, जो सच में मेरे पास आये तो अगर कोई कांटा जैसा भी मालूम पड़े तो भी समझना, उसी हैं, सारे आवरण छोड़कर, वे अगर 'जब्त' भी करना चाहेंगे, का है; नाराज मत हो जाना। फूल पर बहुत प्रसन्न मत हो जाना, रोकना भी चाहेंगे
कांटे पर बहुत नाराज मत हो जाना। एक बात स्मरण रखना कि जब्त की कोशिशें बजा लेकिन
तुमने निवेदन कर दिया था, बात समाप्त हो गई। तुमने छिपाया -वे अगर चाहेंगे भी कि किसी को कैसे बतायें, क्या बतायें, नहीं, तुम्हें कुछ पता था, कह दिया। जो तुम कहो, उसमें आग्रह संकोच भी करेंगे तो भी कुछ फर्क न पड़ेगा।
भी मत रखना कि उसे मानना ही चाहिए। क्योंकि आग्रह सत्य क्या छुपे शौके-बेपनाह का राज!
को नष्ट कर देता है; प्रेम को दूषित कर देता है, धूमिल कर देता – अथाह प्रेम प्रगट होने ही लगता है।
है। तुम तो बिना किसी आग्रह के अनाग्रह भाव से कह देना कि हर किसी को सुनाई देती है
कुछ हमें भी सुनाई पड़ी है आवाज, शायद तुम्हारे काम आ जाये, मेरी आवाज में तेरी आवाज।
कहीं हम गये हैं, हमारी कुछ प्यास बुझी है-हो सकता है, यह जिन्होंने मुझे चाहा है, उनकी आवाज में मेरी आवाज सुनाई। जल तुम्हारी भी प्यास को तृप्त करने में काम आ जाये। मगर पड़ने ही लगेगी।
कहना, 'हो सकता है, जरूरी नहीं। तुम्हारी प्यास अलग हो, और हर स्थिति में...क्योंकि यह तो एक स्थिति है जो | तुम्हें किसी और जल की जरूरत हो। और शायद अभी तुम्हें 'प्रतिभा' ने पूछी है कि किसी को ले आती है, फिर वह डूब प्यास ही न हो और जल की जरूरत ही न हो।' तो निवेदन कर जाता है। मगर बहुत बार तो ऐसा होगा, तुम किसी को लाना | देना और भूल जाना। चाहोगे और न ला पाओगे। तुम लाख कोशिश करोगे, तुम | अगर तुमने अनाग्रहपूर्वक निवेदन किया है, तो बहुत लोगों को जितनी कोशिश करोगे उतना ही वह प्रतिरोध करेगा और न तुम खबर पहुंचाने में सफल हो जाओगे। यह खबर कुछ ऐसी है आयेगा। तब भी बेचैन मत होना। तब भी यह मत सोचना कि कि अत्यंत विनम्रता में, अत्यंत प्रेम में, अत्यंत सरलता में ही यह कुछ गलत हो रहा है। तब भी ठीक ही हो रहा है। अभी पहुंचाई जा सकती है। उसकी यही जरूरत होगी। उस पर नाराज मत होना और यह मत मेरे पास किसी को ले आना कोई मिशनरी काम नहीं है कि टूट सोचना कि जिद्दी है, कि अहंकारी है, कि अज्ञानी है, कि पापी पड़े उस पर और उसको तर्क देने लगे, और समझाने लगे, और है। क्योंकि ऐसे जल्दी ही मन में भाव उठते हैं। तुम्हारी कोई न सिद्ध करने लगे, और उसको गलत सिद्ध करने लगे। नहीं, यह माने तो नाराज होने की इच्छा हो जाती है। नर्क भेजने के भाव कुछ काम इतना क्षुद्र नहीं है। धर्म मिशन तो बन ही नहीं सकता। उठने में देर नहीं लगती, कि तुम तो इतनी कोशिश कर रहे हो, | मिशन तो सब राजनीति के होते हैं। तुम तो सिर्फ मेरी सुगंध इसके ही शुभ के लिए, और इस मूढ़ को देखो, मतांध! सुनता थोड़ी-सी फैला सको, फैला देना। वही सुगंध अगर खींच ही नहीं, बहरा है! नहीं, तब समझना कि परमात्मा अभी यही सकेगी तो खींच लायेगी। और अगर उस आदमी के जीवन में चाहता है कि वह न आये। उसके राज सभी जाहिर नहीं होते। जरूरत आ गई होगी तो खिंच आयेगा; या वह सुगंध उसकी होने भी नहीं चाहिए। कभी किसी को प्रतिरोध की ही जरूरत स्मृति में पड़ी रह जायेगी, कभी जरूरत आयेगी तो उसे याद आ होती है। कभी कोई तुमसे लड़ता है, वही उसका ढंग है मेरे प्रेम जायेगी। तुम्हारा काम पूरा हो गया।
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