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जिन सूत्र भाग : 1
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देखता हूं उन्हें गुजरते, क्योंकि तुम्हारा सिर उन्हें टिकने नहीं | स्त्रियों को थोड़े भक्ति के रास्ते पर खोजबीन करनी चाहिए। देता। जो बातें तुम्हारे काम की हैं और हृदय तक पहुंचनी चाहिए पुरुषों को थोड़े संकल्प के रास्ते पर खोजबीन करनी चाहिए। तो थीं, वह सिर उन्हें भीतर प्रवेश नहीं होने देता। वह द्वार से ही पति हिंदू हो, तो जरूरी नहीं है कि पत्नी भी हिंदु हो। जिस दिन लौटा देता है, द्वारपाल ही उन्हें अलग कर देता है। और जिन्हें भली दुनिया होगी, उस दिन पत्नी अपना धर्म चुनेगी, पति अपना तुम्हारा सिर प्रवेश होने देता है वह तुम्हारे काम की नहीं। क्योंकि धर्म चुनेगा। और बेटे-बेटियों के लिए खुला अवसर छोड़ा तुम्हारे सिर के पास अपने संस्कार हैं।
जायेगा कि जब वह बड़े हो जायें तो अपना धर्म चुनें। अच्छी अगर जैन मुझे सुनने आता है तो वह उतनी बातों को भीतर दुनिया होगी तो एक-एक घर में करीब-करीब आठ-आठ जाने देता है, जितनी उसके जैन धर्म से मेल खाती हैं; बाकी को दस-दस धर्म होंगे, एक-एक परिवार में। होने ही चाहिए; बाहर रोक देता है कि ठहरो, कहां जा रहे हो? जैन नहीं हो। हिंदू क्योंकि जिसको जो रास पड़ जायेगा। कपड़े मैं तुम जिद्द नहीं सुनने आता है, उतनी को भीतर जाने देता है जितनी हिंदू धर्म से करते; किसी को सफेद पहनना है, सफेद पहनता है; किसी को मेल खाती हैं; बाकी को कह देता है, भीतर मत आना। हरा पहनना है, हरा पहनता है। भोजन में तुम जिद्द नहीं करते;
तो तुम सुनते वही हो, जो तुम्हारा सिर तुम्हें आज्ञा देता है। तुम किसी को चावल ठीक रास आते हैं, चावल खाता है; किसी को मुझे थोड़े ही सुनते हो। जो मुझे सुनता है, उसमें रूपांतरण गेहूं रास आते हैं, गेहूं खाता है। धर्म के संबंध में क्यों जिद्द करते निश्चित है।
हो कि सभी पर एक ही धर्म थोपा जाये? यह पहरेदार को विदा करो, इसे छुट्टी दे दो। तो जो अभी सिर पत्नी को अगर भक्त होना हो, भक्त हो जाये; कृष्ण के मंदिर के ऊपर से जा रही हैं, वह सिर की गहराई में भी उतरेंगी। और में पूजा चढ़ाये। पति को अगर जैन रहना है, जैन रहे; महावीर सिर में ही न उतरें तो हृदय में कैसे उतरेंगी? सिर तो द्वार है। जब के प्रकाश को लेकर चले। बेटे को अगर ठीक लगे कि बुद्ध हो सिर में कोई बात उतर जाती है तो धीरे-धीरे हृदय में डूबती है, जाना है, तो किसी को रोकने का कोई कारण नहीं होना चाहिए। तलहटी में बैठती है और वहां से क्रांति घटित होती है। क्योंकि असली सवाल धार्मिक होने का है। अगर बुद्ध होने से,
'आप परमात्मा से बिछड़न की जिस पीड़ा की बात कहते हैं, बुद्ध के मार्ग पर चलने से कोई धार्मिक होता है तो शुभ है। वह पीड़ा मुझे कभी हुई नहीं।'
इस दुनिया में निन्यानबे प्रतिशत लोग अधार्मिक हैं, क्योंकि परमात्मा का खयाल ही नहीं है! पीड़ा तो तब हो न जब हमें। | उनको ठीक धर्म चुनने का मौका नहीं मिला है। नास्तिकों के खयाल हो कि परमात्मा है! परमात्मा की धारणा का ही खंडन | कारण दुनिया अधार्मिक नहीं है, तथाकथित धार्मिकों के कारण है। जब धारणा का ही खंडन है तो प्यास तो कैसे उठेगी? उठेगी | अधार्मिक है। जो मुझे रुचिकर है वह खाने न दिया जाये, तो जो भी, तो तुम कोई और चीज ही समझोगे—किसी और चीज की मुझे खाने दिया जाता है उसे मैं जबर्दस्ती ढोता हूं, क्योंकि उसमें प्यास है। परमात्मा की तो हो ही नहीं सकती। कभी सोचोगे धन | मेरी कोई रुचि नहीं है। की प्यास है; कभी सोचोगे प्रेम की प्यास है; कभी सोचोगे पद धर्म स्वतंत्रता है; स्वेच्छा का चुनाव है। की प्यास है लेकिन 'परमात्मा' शब्द है ही नहीं तुम्हारे पास, 'परमात्मा की प्यास का मुझे कुछ पता नहीं है, फिर मैं क्यों तो प्यास को परमात्मा की तरफ उन्मुख होने का उपाय नहीं है। यहां हं? और यह ध्यान-साधना वगैरह क्या कर रही हं?'
और आत्मा की तरफ जाने के लिए जैसा पुरुषार्थ चाहिए, जैसा अड़चन अपने हृदय को ढांक लेने की है, दबा लेने की है। पौरुषिक उद्दाम संकल्प चाहिए, वह तुम्हारे पास नहीं है। कुछ सिर को हटाओ, हृदय को प्रगट करो। तब यह प्रश्न साफ हो हर्जा नहीं है। कुछ दुर्गुण नहीं है।
जायेगा। स्थिति बिलकुल साफ हो जायेगी। द्वार खुल जायेगा। दुनिया में आधे लोग संकल्प से ही पहुंचेंगे, आधे लोग गणित नहीं है जीवन। और जीवन किसी लक्ष्य की तरफ प्रेरित समर्पण से ही पहुंचेंगे। लेकिन हमारी तकलीफ है: हम सभी को नहीं है। कोई ऐसा नहीं है कि जीवन किसी लक्ष्य की तरफ चला एक ही घेरे में बंद कर देते हैं।
जा रहा है। यहां प्रतिपल प्रफुल्लता से होना लक्ष्य है। यहां
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