________________
म जिन सूत्र भागः1 TARA
R
भाषाओं के लोक में जी रहे हैं। महावीर के लिए निम वह है तरह सब तरफ बहने लगती है; अब कोई कूल-किनारा नहीं रह जिसे ममत्व नहीं; जिसके पास से 'मेरा' समाप्त हो गया; जाता। तो महावीर की निर्ममता में करुणा है और हमारे ममत्व में जिसके लिए अब कोई चीज 'मेरी' नहीं, बस। तुम्हें तो दोनों भी कठोरता है। बातें एक लगती हैं; जैसे
'शरीर-रहित, निरालंब...।' एक घर में आग लगी। मालिक छाती पीटकर रोने लगा। कोई आलंबन नहीं है आत्मा का। कोई आधार नहीं है आत्मा किसी ने कहा, 'घबड़ाओ मत, चिल्लाओ मत, परेशान मत | का। आत्मा परम आधार है। उसके आगे फिर कोई आधार नहीं होओ। मैंने तुम्हारे बेटे को कल ही तो किसी से बात करते देखा | है। होना अपने कारण है, स्वयंभू है। था। मकान बेचने का सब तय हो गया है। पैसे भी दे दिये गये | तो जैसा उपनिषद ब्रह्म के लिए कहते हैं-परम आधार, हैं। यह तो मकान बिक चका, तुम्हारा नहीं है।'
निरालंब-वैसा ही महावीर आत्मा के लिए कहते हैं। जिसको उस आदमी के आंसू सूख गये। वह स्वस्थ हो गया। उसने | उपनिषदों ने ब्रह्म कहा है, उसी को महावीर ने आत्मा कहा है। कहा, 'अरे! मुझे इसका पता ही नहीं था।'
ब्रह्म या आत्मा कहने से फर्क नहीं होता। मकान जल रहा है। मकान वही का वही है, लेकिन 'मेरा' | एक हमें मानना पड़ेगा जो निरालंब है, जिसका कोई आधार नहीं है तो अब क्या फिक्र! तभी बेटा आया घबड़ाया हुआ। नहीं; जो सबका आधार है, लेकिन जिसका कोई आधार नहीं। उसने कहा कि ऐसे खड़े हो, क्या कर रहे हो? यह मकान जला अन्यथा अस्तित्व बेबूझ हो जायेगा। जा रहा है! बात हुई थी, लेकिन पैसे लिये-दिये नहीं गये थे। वैज्ञानिक कहता है: पानी बना है हाइड्रोजन-आक्सीजन से; मकान अपना ही जल रहा है।
आक्सीजन बनी है इलेक्ट्रान, न्यूट्रान, पोजिट्रान से; इलेक्ट्रान, फिर बाप रोने लगा, फिर छाती पीटने लगा। मकान वही का | न्यूट्रान, पोजिट्रान बने हैं विद्युत से, विद्युत-ऊर्जा से। वही है; 'मेरे' से जुड़ जाता है तो दुख ले आता है; 'मेरे' से विद्युत-ऊर्जा किससे बनी है? वे कहते हैं, बस विद्युत-ऊर्जा छूट जाता है तो बात खत्म हो गई।
किसी से नहीं बनी है तो विद्युत-ऊर्जा उनके लिए निरालंब हो जिस-जिसको तुमने 'मेरा' माना है, वहीं-वहीं से दुख आता गई। कहीं तो जाकर आधार खोज लेना होगा, जिसके पार कुछ है। जिस-जिस से तुम्हारा कोई संबंध नहीं है, वहां से कोई दुख भी नहीं है। नहीं आता। इसलिए जितना तुम्हारा 'मेरे' का जाल होगा, महावीर उस आधार को आत्मा में खोजते हैं। निश्चित ही उतना ही तुम्हारा दुख होगा। जितना तुम्हारा मेरे का जाल टूट विद्युत की बजाय आत्मा में खोजना ज्यादा गहरा है। क्योंकि जायेगा, उतना ही तुम्हारा दुख समाप्त हो जायेगा।
विद्युत की खोज भी आत्मा ने की है। जब वैज्ञानिक कहता है, . जब महावीर कहते हैं 'निर्मम' तो वे कहते हैं, जिसका मेरा' इलेक्ट्रान, न्यूट्रान और पोजिट्रान, और ये सब विद्युत से बने हैं, भाव गिर गया। इसका यह अर्थ नहीं कि वह कठोर हो गया। तो उसकी चेतना इस गहराई तक पहुंच जाती है। तो जिस गहराई सच तो यह है कि ऐसा आदमी ही करुणावान होता है। मेरे' के तक हम पहुंचते हैं, उस गहराई से ज्यादा गहराई हमारी होनी ही कारण तुम कठोर हो। क्योंकि 'मेरे' के कारण तुम्हारी करुणा चाहिए, अन्यथा हम उस गहराई तक नहीं पहुंच सकते। मुक्त नहीं हो पाती। अगर तुम्हारा बेटा गिरता है तो उठा लेते वैज्ञानिक अपने को छोड़ देता है, बाहर रख लेता है। लेकिन हो; दूसरे का बेटा गिरता है तो आंख बचाकर निकल जाते हो। कुछ भी हम खोज लेंगे, खोजनेवाले से बड़ा वह नहीं होगा जो
'मेरे' के कारण तुम कठोर हो। तुम्हारा बेटा भूखा मरता है तो हम खोजेंगे। इसे थोड़ा खयाल में रखना। इसलिए महावीर तुम परेशान होते हो; दूसरे का बेटा भूखा मरता है, तुम्हें क्या परमात्मा से भी ज्यादा मूल्य आत्मा शब्द को देते हैं। वे कहते हैं, लेना-देना! तुम मेरे' के कारण कठोर हो।
आत्मा ही तो खोजेगी न परमात्मा को! तो जो खोजनेवाला है वह महावीर का 'मेरा' विसर्जित हो जाता है : करुणा मुक्त हो जिसे खोज लेगा उससे बड़ा है। मैं जिसे पा लूं, उससे मैं बड़ा हो जाती है; अब मेरे की ही धाराओं में नहीं बहती; अब तो बाढ़ की गया। तुम जिसे पा लो, तुम उससे बड़े हो गये। अगर तुम
3801
Main Eucation International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org