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आत्मा परम आधार है
गया, अगर लोग खदेड़कर बाहर कर गये तो ये बाहर हो गये। महावीर ने बड़ा अनूठा प्रयोग किया! न दतौन, न स्नान। वर्षों लेकिन ऐसा भी नहीं कि दुबारा उस गांव में न आए हों। फिर राह तक पानी का उपयोग ही नहीं किया। वह तो भक्तों को दया आने में पड़ गया गांव तो फिर आ गये। जो सहज होने लगा वह होने लगी होगी। उनके प्रेमियों को दया आने लगी। इसलिए जैनियों दिया। सहज-स्फूर्त जीवन महावीर का मूलभूत स्वर है। उसमें में अभिषेक शुरू हुआ। साल में एक दिन वे बिठाकर महावीर जरा भी सजावट नहीं है, शृंगार नहीं है। उसमें जरा भी अन्यथा | को, उनके ऊपर पानी डाल देते हैं। अभी भी डालते हैं, मूर्ति पर दिखाई पड़ने का कोई आग्रह नहीं है—जैसे हैं, जो हैं। डालते हैं अब वे। अभिषेक। भक्तों को भी घबड़ाहट होने लगी
कहते हैं, महावीर ने वर्षों तक स्नान नहीं किया; क्योंकि उन्होंने होगी कि इतना आदमी, इतना सरल हो जाना भी ठीक नहीं। कहा कि अब शरीर है और यह तो दुर्गंध-भरा है ही, अब इसको इतना प्राकृतिक, जैसे पशु जीते हैं—निर्मल! धो-धोकर, पोंछ-पोंछकर भी क्या सार? किसको धोखा देना लेकिन तुमने खयाल किया? पशु गंदे मालूम होते हैं? एक है? वर्षों तक उन्होंने दतौन नहीं की। क्योंकि उन्होंने कहा कि आदमी ही कुछ अजीब है, इतनी व्यवस्था के बाद भी गंदा मुंह से तो बास आती ही है। अब किसको समझाना है कि बास | मालूम होता है! पशु सदा ताजे और स्वच्छ मालूम होते हैं। कहीं नहीं आती?
ऐसा तो नहीं है, ताजे स्वच्छ होने की चेष्टा में ही हमने अपने को तुमने कभी खयाल किया? तुम जो भी करते हो, दूसरों को गंदा कर लिया है? कहीं यह अति आग्रह, आरोपण, यह झूठ, दिखाने के लिए करते हो। अगर घर में बैठे हो तो कैसे ही अप्राकृतिक होने की चेष्टा, यह कृत्रिम जीवन-कहीं यही तो उलटे-सीधे कपड़े पहने बैठे रहते हो। बाहर जाना है कि हुए हमारी गंदगी का कारण नहीं? क्योंकि इस पूरी प्रकृति में चारों तैयार! वैसे ही क्यों नहीं निकल आते? बाहर जा रहे हैं। बाहर | तरफ जरा गौर से देखो, पक्षी हैं, पशु हैं-कौन गंदा मालूम जाने का मतलब है : अब लोगों की तरफ ध्यान रखना है; उनकी पड़ता है? कौन स्नान कर रहा है? कौन दतौन कर रहा है? आंख को क्या ठीक लगेगा, क्या ठीक नहीं लगेगा-अपनी लेकिन सब साफ-सुथरे मालूम होते हैं; सारी प्रकृति नहाई हुई प्रतिष्ठा का सवाल है। कुछ दिखलाना है। जैसे तुम नहीं हो, मालूम होती है-एक आदमी को छोड़कर। वैसे दिखलाना है। व्यवसाय शुरू हो गया।
- महावीर ने बड़ा अनूठा प्रयोग किया—प्राकृतिक होने का। स्त्रियों को देखा, घर में कैसी बैठी रहती हैं ! भैरवी के रूप में! | रूसो ने जो बहुत बाद में कहा : बैक टू नेचर, चलो प्रकृति की इसलिए अगर उनके पति उनसे घबड़ा जाते हैं तो कुछ आश्चर्य ओर वापिस। वह तो रूसो ने सिर्फ कहा है-महावीर ने नहीं। बाहर निकली तो सब अप्सरायें हो जाती हैं। इसलिए किया। बड़ी दुर्धर्ष साधना थी। क्योंकि सब भांति यह आकांक्षा अगर दूसरे उन पर आकर्षित हो जाते हैं तो भी कुछ आश्चर्य छोड़ देनी कि दूसरे मेरे संबंध में क्या सोचते हैं, बड़ी कठिन है। नहीं। पतियों को तो भरोसा ही नहीं आता कि उनकी पत्नी को भी अभी जैन मुनि हैं, वे भी वैसा ही कुछ करने की कोशिश करते कोई रास्ते में धक्का दे गया।
हैं, लेकिन वह सच नहीं है। क्योंकि इस कोशिश में बुनियादी मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन पहुंचा पागलखाने। जाकर दस्तक बात खो गई है। वह भी इस फिक्र में लगे हैं कि दूसरे क्या सोचते दी। अधिकारी ने पूछा, कैसे आये आधी रात? उसने कहा, मेरी हैं। जैन मुनि है, वह देख रहा है कि जैन श्रमण की जो पत्नी भाग गई है। उसने कहा, यहां आने का क्या कारण? | जीवन-धारा है, वह ऐसी होनी चाहिए, अनुशासन, यह उसने कहा, मैं यह पूछने आया हूं, कोई पागल तो नहीं निकल व्यवस्था...। महावीर ने सारी व्यवस्था तोड़कर प्रकृति के हाथों भागा यहां से? क्योंकि मेरी पत्नी को कोई और ले भागे इस गांव में छोड़ दी; जैन मुनि ने महावीर ने जो किया उसको अपनी में, यह तो संभव नहीं है। कोई पागल तो नहीं छूटा है आज, यह | व्यवस्था बना लिया है। इन दोनों में बड़ा बुनियादी फर्क है। मैं पूछने आया हूं।
महावीर ने सारा अनुशासन छोड़ दिया; सारी संस्कृति, संस्कार, एक हमारे होने के ढंग हैं, एक हमारे दिखाने के ढंग हैं। एक हैं | समाज, सभ्यता छोड़ दी; हो रहे प्रकृति के हाथ-जैसे पशु दांत हमारे खाने के, एक हैं दिखाने के।
रहते हैं, ऐसे! जैन मुनि उसी में से अपनी व्यवस्था निकाल
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