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BIHARI उठो, जागो—सुबह करीब है
उठा, जागा-सुबह करीब है
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प्रेम जीवंत है। अगर तुम उसे बदलोगे तो इतनी आसानी से न | स्थिति तो करीब-करीब आज भी वही है। प्रेम शब्द गलत बदल पाओगे; शोरगुल मचायेगा। अहिंसा बिलकुल मुर्दा है। समझा जायेगा। लेकिन मेरे साथ भेद है। मैं कोई नया धर्म खड़ा तुम उसे बना लेना, अपने रंग-ढंग में रंग-लेप कर लेना। करने में उत्सुक नहीं हूं। नयी भाषा खड़ी करने में उत्सुक नहीं हूं। अहिंसा के शब्द से आवाज भी न निकलेगी। तुम जो भी बना नया शास्त्र निर्मित करने में उत्सुक नहीं हूं। शास्त्र तो बहुत हैं। लोगे, वही बन जायेगी।
धर्म भी बहुत हैं। भाषाएं भी बहुत हैं। अब तो हमें कुछ खोज नकार हमेशा ही सावधान होने योग्य है। अभाव है नकार। करनी चाहिए कि सभी धर्मों के भीतर जो सार है, वह हमारी अभाव पर इतना जोर मत देना; क्योंकि अभाव से तुम धीरे-धीरे पकड़ में आ जाये। तो मैं यह नहीं...मेरी चेष्टा वही नहीं है जो रसहीन हो जाओगे। अभाव को देखते-देखते तुम भी धीरे-धीरे महावीर की थी। तो महावीर हिंदू से डरे थे; मैं डरा हुआ नहीं बुझ जाओगे।
| हूं। बुद्ध, महावीर से भी डरे हुए थे; मैं डरा हुआ नहीं हूं। मैं न महावीर की मजबूरी थी, उन्होंने चुना; लेकिन उनकी मजबूरी | ईसाई से डरा हुआ हूं, न मुसलमान से डरा हुआ हूं, न हिंदू से, न से मैं बंधा हुआ नहीं हूं। उन्होंने ठीक माना होगा। उनकी | जैन से, न बौद्ध से—किसी से डरे होने का कोई कारण नहीं है। परिस्थिति में जो उन्हें ठीक लगा होगा, किया होगा। लेकिन हां, अगर मुझे कोई नया धर्म स्थापित करना हो तो भय आ उनकी परिस्थिति मेरे ऊपर कोई बंधन नहीं है। यही तो मुझे जायेगा। क्योंकि फिर मुझे खयाल रखना पड़ेगा। सारे बाजार सुविधा है। मेरे ऊपर किसी का बंधन नहीं है। अगर जैन का खयाल रखना पड़ेगा। मेरी चीज कुछ नयी होनी चाहिए, महावीर पर बोलेगा तो उसको अड़चन होगी। वह हिम्मत नहीं | पृथक होनी चाहिए; उसमें गंध, रंग अलग होना चाहिए, जुटा पाता। उसको महावीर का बंधन मानकर चलना पड़ता है। ट्रेडमार्का अलग होना चाहिए, तो ही टिक पायेगी बाजार में, जो महावीर ने कहा, वह हर हालत में ठीक होना ही चाहिए। उस अन्यथा खो जायेगी। दिन के लिए भी ठीक होना चाहिए, आज भी ठीक होना चाहिए। मेरी तो चेष्टा बड़ी भिन्न है। मेरी चेष्टा यह है कि जो अब तक मैं कहता हूं, उस दिन जरूर ठीक रहा होगा; क्योंकि महावीर | जाना गया है और काफी जान लिया गया है-अब उस जैसा बुद्धिशाली व्यक्ति, जब इस शब्द को चुना था तो बहुत | जानने का सार-निचोड़ लोगों को मिलना शुरू हो जाये। सोचकर चुना होगा। लेकिन महावीर कोई सदा के लिए आदमी धर्मों का कोई भविष्य नहीं है। धर्म गये, अतीत की बात हो को बांध नहीं गये। कौन बांध जाता है? कौन बांध सकता है? गये। जैसे विज्ञान एक है, ऐसा ही भविष्य में कभी धर्म भी एक मेरे लिए कोई मजबूरी नहीं है। इसलिए मैं पतंजलि पर भी होगा। हिंदू नहीं होगा, मुसलमान नहीं होगा, ईसाई नहीं होगा। बोलता हूं, तो भी मेरी कोई मजबूरी नहीं है। कोई बंधन नहीं है। इन सबने अपनी-अपनी धाराएं धर्म के सागर में डाल दीं। अब कोई ऐसा नहीं है कि पतंजलि ने जो कहा है, वह ठीक ही कहा | सागर को हम गंगा थोड़े ही कहते हैं, यमुना थोड़े ही कहते है। आज के लिए तो मैं फिक्र नहीं करता। आज के लिए तो मैं हैं-कोई जरूरत नहीं कहने की। सागर यमुना से भी बड़ा है, जो कहूंगा, मैं मानता है, ज्यादा ठीक है। उन्होंने अपने समय के गंगा से भी बड़ा है, ब्रह्मपुत्र से भी बड़ा है-हजारों नदियों को लिए कहा होगा। जैसे वे अपने समय के लिए कहने के हकदार लील जाता है; इंचभर ऊपर नहीं उठता। हजारों नदियां बादलों थे, वैसे अपने समय के लिए कहने के लिए मैं हकदार हूं। में उड़ जाती हैं; इंचभर नीचे नहीं गिरता। अब धर्म का सागर
निश्चित ही, मैं यह नहीं कहता कि मैं जो कह रहा हूं, वह बनना चाहिए; ताल, सरोवर बहुत हो चुके। अब उन्होंने काफी सदा-सदा सही रहेगा; कभी न कभी सड़ जायेगा, मरेगा। तब बोध की सामग्री इकट्ठी कर दी है। अब कोई जरूरत नहीं है कि कोई न कोई उसे बदलेगा-बदलना ही चाहिए। इस जगत में हिंदू मुसलमान से लड़े, कि जैन हिंदू से लड़े। अब तो जरूरत है कोई भी व्यक्ति सभी के लिए सदा के लिए निर्णायक नहीं हो कि जैन, हिंदू और मुसलमान और ईसाई और सिक्ख के बीच जो सकता; नहीं तो मनुष्य की स्वतंत्रता, महिमा मर जायेगी। | सारभूत है, वह प्रगट हो जाये; ताकि धर्म का विज्ञान बने। गुनो, सुनो, समझो, लेकिन कभी भी अंधी लकीरें मत पीटो। अब विज्ञान विज्ञान है; न ईसाई है, न हि
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