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जिन सूत्र भाग: 1
मत, खेले चले जाओ। अभी तुम ठीक से खेल समझे नहीं, अभी खेल का गणित नहीं आया। गणित आ जायेगा तो रस आने लगेगा। और तब इन पत्थरों पर चढ़ने में मजा आने लगेगा। तब तुम धन्यवाद दोगे इन पत्थरों को कि अच्छा किया कि तुम थे, अन्यथा कहां चढ़ते! अच्छा हुआ कि तुम थे, अन्यथा जीवन को जांचने की सुविधा कहां मिलती, अवसर कहां मिलता !
जमाना च-ब- जबीं है तो क्या बात है 'रविश' और अगर जमाना बहुत क्रोध से भरा है और चारों तरफ बड़ी अड़चन और मुसीबत है तो बात क्या है 'रविश'... हम इस अताब पे कुछ और मुस्कुरा 'लेंगे। इस क्रोध पर थोड़ा और मुस्कुरा लेना । यह जो जमाना इतने उपद्रव खड़ा करता है, इस पर थोड़ा मुस्कुराना सीखो।
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परमात्मा का खोजी खेल मानकर चलता है। तुम बड़ी गंभीरता से चल रहे हो, यह अड़चन है। तुम्हारे तथाकथित धार्मिकों ने तुम्हें बड़े गंभीर चेहरे सिखा दिये हैं; जैसे कि प्रार्थना कोई काम है! प्रार्थना खेल है। प्रार्थना रस है, काम नहीं है। इसमें कुछ लाभ और लोभ थोड़े ही है। इसमें तो होने का मजा है। इन पक्षियों से पूछो ! ये जो झींगुर गुनगुनाये जा रहे हैं, इनसे पूछो - किसलिए? वे तुम्हारी बात पर ही आश्चर्य करेंगे कि सवाल भी उठाने योग्य है ? मजा आ रहा है।
तुम्हें जब तक संसार में मजा आ रहा है, दौड़े जाओ; जब तुम्हें परमात्मा में मजा आने लगे, रुक जाना। मजे मजे की बात है।
मैं जो संसार में हैं, उनके विरोध में नहीं हूं। मैं कहता हूं, उन्हें मजा आ रहा है तो मजा लें। तकलीफ तो कब खड़ी होती है कि तुम्हें मजा संसार में आ रहा है और तुम किसी की बात में पड़ गये और उसने कहा कि संसार में क्या रखा है! तुम्हें मजा संसार में आ रहा है। अब तुम एक उलझन में पड़े, एक तनाव पैदा हुआ। किसी ने कह दिया, संसार में क्या रखा है, यह तो सब धूल है, | यह तो सब पड़ा रह जाएगा - यह ठाठ पड़ा रह जायेगा, जब बांध चलेगा बनजारा! उनका बनजारा बांधकर चल रहा हो, लेकिन तुम्हारा तो अभी बिलकुल खेल लग रहा था, तंबू लग रहा था, व्यवस्था तुम जुटा रहे थे। यह बात तुम्हारे कान में पड़ गई, अब तुम अड़चन में पड़े। अब तुम तंबू भी गाड़े जा रहे हो
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और सोच रहे हो, सब ठाठ पड़ा रह जायेगा। अब अड़चन आई। अब तुम इकहरे न रहे। तुम्हारा व्यक्तित्व खंडों में बंट गया । तुम्हारे तथाकथित धर्मों ने तुम्हें विक्षिप्त बना दिया है। मैं तुमसे जो कह रहा हूं वह यह नहीं कह रहा हूं कि तुम छोड़कर चल पड़ो। मैं तुमसे कह रहा हूं, ठीक से तंबू गड़ा लो। भगवान से भटकने का मौका मिला है, ठीक से भटक जाओ। दूर जाने का क्षण आया है, दूर चले जाओ। इसमें भी क्या कंजूसी करनी? क्योंकि मेरे देखे जो जितनी दूर जाता है, जब उसे याद पकड़ती है तो उतनी ही तीव्रता से पास आता है। पास आने और दूर आने में एक अनुपात है। खोने का तो कोई उपाय नहीं है, खेल है। रोकर खेलना हो रोकर खेल लो; हंस के खेलना हो हंसकर खेल लो। जो हंसकर खेलता है, उसको मैं धार्मिक कहता हूं। जो रो-रोकर खेलने लगे, वह कोई खिलाड़ी नहीं है।
है रात तो इसके बाद सहर, अनवार भी लेकर आएगी
सुबह तो शब तारों के चमकते हार भी लेकर आएगी। है रात तो इसके बाद सहर - रात है तो सुबह होने के करीब है, घबड़ाओ मत। रात का मजा ले लो, सुबह तो हो ही जायेगी। सुबह के लिए रोओ, चिल्लाओ- चीखो मत। यह रात सुबह के रास्ते पर ही है। यह रात होनेवाली सुबह ही है। यह रात का ही छिपा हुआ रूप है।
है रात तो इसके बाद सहर अनवार भी लेकर आएगी। सुबह प्रकाश भी लेकर आनेवाली है। अंधेरे को ठीक से तो भोग लो ! क्योंकि अगर आंखें अंधेरे को ठीक से न भोग पायें तो तुम प्रकाश को भोगने के योग्य न बन पाओगे।
तुमने कभी खयाल किया ? जब अंधेरे के बाद तुम प्रकाश को देखते हो तो अंधेरा तुम्हारी आंखों को तैयार करता है; तुम प्रकाश को देखने में समर्थ हो जाते हो । आंख को विश्राम मिलता
है
अंधेरे में; आंख ताजी हो जाती है । फिर से तुम देखने में कुशल हो जाते हो। इसलिए तो आंख झपकती रहती है। तुमने कभी पूछा कि आंख झपकती क्यों रहती है ? यह हर पल अंधेरे को पैदा करती रहती है, ताकि ताजी बनी रहे। इसलिए तुमने देखा फिल्म जाते हो देखने, तो तीन घंटे तुम आंख का झपकना भूल जाते हो। उसी लिए आंख थक जाती है। फिल्म के कारण नहीं, टेलीविजन देखने के कारण नहीं; तुम आंख का झपकना
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