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उठो, जागो-सुबह करीब है
आगे बढ़े हुए हैं हर इक कारवां से हम।
तुम जिसे प्रेम करते हो उसी की गर्दन दबाने लगते हो, इतनी --उसी दिन तुम पाओगे, तुम सबसे ज्यादा आगे बढ़ गये | हिंसा है। प्रेमी अकसर एक-दूसरे को मार डालते हैं। विवाह की हो। प्रेम के अतिरिक्त कोई आगे बढ़ा नहीं है। प्रेम पथ-प्रदर्शक | तिथि अकसर मरण की तिथि सिद्ध होती है। है। प्रेम प्रकाश का दीया है।
एक आदमी का विवाह हो रहा था। राह पर एक मित्र मिल खतरे मुझे मालूम हैं कि प्रेम के हैं, क्योंकि तुमने प्रेम का गलत गया। कल विवाह होनेवाला था। उस मित्र ने कहा, 'बड़ी रूप जाना है। लेकिन तुम्हारे गलत रूप जानने के कारण सत्य | बधाइयां!' उस मित्र ने कहा, 'शायद तुम्हें पता नहीं है, अभी तुमसे न कहूं, तो वह और भी खतरनाक होगा। मैं वही कहूंगा | मेरा विवाह हुआ नहीं, कल होनेवाला है। उसने कहा, जो ठीक है। तुम्हें उसमें से गलत निकालना हो, निकाल लेना। | इसीलिए तो बधाइयां दे रहे हैं, फिर बधाइयां देने का उपाय न वह तुम्हारी जिम्मेवारी है। लेकिन जिम्मेवार तुम्हीं रहोगे। लेकिन | रहेगा। एक दिन और बचा है, जी लो! चल लो मस्ती से, इस कारण कि कहीं तुम कुछ गलती न कर लो, मैं तुम्हें मारना | स्वतंत्रता से।' नहीं चाहता। तुम्हारी जिंदगी तो पूरी-पूरी ऊर्जा से भरी हुई होनी । अगर राह पर तुम स्त्री-पुरुष को चलते देखो तो तुम तत्क्षण चाहिए। कोई हर्जा नहीं, आज गलत जाओगे; जिस ऊर्जा से कह सकते हो कि ये पति-पत्नी हैं या नहीं। पति डरा-डरा चल गलत गये हो, उसी ऊर्जा से वापिस भी आ सकते हो। रहा है, नीचे नजर रखकर चल रहा है, इधर-उधर देखता नहीं;
लेकिन प्रेम को जरा कसना। रोज-रोज ऊपर उठाना। क्योंकि फिर झंझट खड़ी हो जाये! रोज-रोज देखना कि उसके और नये-नये सोपान हैं। यह प्रेम गर्दन को काट जाता है। मधुर-मधुर सोपान हैं! बड़े प्रीति-भरे!
मैं एक ट्रेन में सफर कर रहा था। एक महिला मेरे साथ उस तुम तो जिसे प्रेम कहते हो, वह बड़ी मिश्रित अवस्था है; जैसे | डब्बे में थी। उसका पति भी था, लेकिन वह किसी दूसरे डब्बे में सोने में बहुत कूड़ा-कर्कट मिला हो।
था। पर वह हर स्टेशन पर आता। तो मैंने उससे पूछा कि मुझे इसलिए तुम्हारे प्रेम में घणा भी मिली है। तुम जिसको प्रेम शक होता है, ये पति हो नहीं सकते। उसने कहा, 'क्यों?' वह करते हो उसी को घृणा भी करते हो।
थोड़ी चौंकी। तुमने कभी जांचा अपने मन को कि जरा पत्नी नाराज हो जाती 'कितने दिन हुए शादी हुए?' है कि तुम सोचते हो कि मर ही जाये तो बेहतर। सोचने लगते हो | उसने कहा, 'कोई सात-आठ साल हो गये।' कि हे भगवान, इसको उठाओ! कहां फंस गये इस चक्कर में! 'यह बात उपन्यास में हो सकती है। सात-आठ साल हो गये, बेटा तुम्हारे अनुकूल नहीं चलता तो मां कहने लगती है कि तुम और पति हर स्टेशन पर उतरकर आते हैं इस भीड़-भड़क्का पैदा ही न हुए होते जो अच्छा था। तुम्हारे प्रेम से घृणा बहुत दूर में...!' नहीं है। तुम्हारे आशीर्वाद से तुम्हारा अभिशाप बहुत दूर नहीं है। वह कहने लगी, 'आपने ठीक पहचाना। वे मेरे पति हैं नहीं, पास ही पास बैठे हैं। तुम्हारी मुस्कुराहट तुम्हारे आंसुओं से बहुत लगाव है।' ज्यादा दूर नहीं है।
तब बात ठीक है। लगाव एक बात है। पत्नी तुम किसी और थोड़ा जागो! इसे देखो। तुम्हारा प्रेम क्षण में क्रोध बन जाता | की होओगी। नहीं तो अपना पति हर स्टेशन पर उतरकर आये! है, क्षणभर में क्रोध बन जाता है। अभी जिसके लिए तुम जान | एक दफे जो छटा, तो वह आखिरी स्टेशन पर भी आ जाये तो देने को तैयार थे, क्षणभर में उसी की जान लेने को तैयार हो जाते | काफी है।' हो। जरा सोचो, जरा जागो और देखो।
| प्रेम में बड़ा और बहुत कुछ मिला हुआ है। एक-दूसरे की यह प्रेम बहत गंदगियों से मिला हुआ है। इसमें क्रोध भी है। गर्दन दबा देते हैं। हां, बहाने हम अच्छे खोजते हैं। लेकिन इसमें द्वेष भी है। इसमें ईर्ष्या भी है, मत्सर है, मोह है, राग है, जिसको प्रेम कहें, वह अभी बड़ी दूर है। लेकिन जिसे तुम प्रेम घृणा है, हिंसा है।
कह रहे हो, उसमें भी वह पड़ा है। इसलिए मैं यह न कहूंगा, इस
नागो आरआ
है। इस
है, राग
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