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जिन सूत्र भार
रहे हो? और जिस दुनिया में तुम इतने उलझे हो, वहां तुम क्या शोरगुल मचा रहे थे। तो वह उनसे परेशान था, बाधा पड़ रही खोज रहे हो? मेरे देखे तो सभी लोग परमात्मा को खोज रहे हैं। थी। तो वह खिड़की पर गया। उसने कहा कि तुम यहां क्या कर कुछ लोग गलत जगह खोज रहे हैं, कुछ लोग ठीक जगह खोज रहे हो, पागलो! नदी की खबर है, एक बड़ा राक्षस आया है। रहे हैं। कुछ लोग ऐसे दरवाजों पर खोज रहे हैं जहां दीवालें हैं, बड़ा विकराल है। बड़ा भयंकर है! ऐसा कभी देखा नहीं गया। दरवाजे नहीं हैं, कुछ लोग ठीक दरवाजों पर दस्तक मार रहे हैं। । _मैं तुमसे कहता हूं, वेश्या के घर पर भी जो आदमी दस्तक देता उसका इतना कहना था कि वे बच्चे तो भागे सरपट नदी की है वह भी परमात्मा की खोज में ही वहां गया है। क्योंकि वेश्या तरफ। रबाई ने सोचा कि ठीक, झंझट मिटी। वह अपना आकर के द्वार पर भी वह आनंद की तलाश में गया है और आनंद फिर पढ़ाई-लिखाई में लग गया। लेकिन थोड़ी ही देर में उसने परमात्मा की तलाश है। जिसने शराबघर में शराब पीकर | देखा, सारा गांव नदी की तरफ जा रहा है। उसने खिड़की पर बेहोश...नालियों में गिर पड़ा है, वह भी परमात्मा की ही तलाश खड़े होकर देखा, पूछा, 'भाइयो! कहां जा रहे हो?' लोगों ने में गया था। क्योंकि आनंद की खोज परमात्मा की खोज है। कहा कि 'अरे तुम्हें पता नहीं अभी तक? नदी के किनारे एक लेकिन गलत जगह। कोई और मधुशाला खोजनी थी, जहां राक्षस आया हुआ है। बड़ा विकराल है! हरे रंग का है। अदृश्य अंगूरों की सुरा ढाली जाती है! कहीं और पियक्कड़ होना बड़े-बड़े दांत हैं।' जो रबाई ने बताया भी नहीं था, वह भी सब था, पियक्कड़ ही होना था तो! कहीं किसी रामकृष्ण के पास उन्होंने बताया। रबाई ने कहा, ठहरो। मैं भी आया। रबाई ने डूबना था पीकर!
अपने मन में कहा कि अरे बात तो मैंने ही गढ़ी है। पर उसने कहीं भी तुम खोज रहे हो, तुम्हारी खोज कुछ भी हो, तुम्हारा कहा, कौन जाने, सच ही हो! बहाना कुछ भी हो, अगर तुम गौर से देखोगे तो तुम पाओगे, _दूसरे को धोखा देते-देते आदमी खुद को भी धोखा दे लेता है। आनंद की तलाश में निकले हो। अगर इतना तुम्हें समझ में आ कौन जाने, सच ही हो! कुछ हर्जा भी क्या है जाने में! देख ही जाये तो बहुत कठिनाई न बचेगी। फिर तुम्हारे पास एक कसौटी लेना चाहिए! हो गई कि 'जहां मैं खोज रहा हूं, वहां आनंद मिल सकता है?' तुम कहते कुछ और हो, चाहते कुछ और हो, सोचते कुछ और कितनी बार तो वहां गया हूं, सदा खाली हाथ लौटा हूं। कुछ हो। तुम्हारा जीवन तुम्हारे ही हाथ से पैदा की गई उलझनों में खोकर लौटा हूं, पाकर तो कुछ भी नहीं लौटा। कुछ और दीन उलझ गया है। होकर लौटा हूं। कुछ और दरिद्र होकर लौटा हूं। भिक्षा-पात्र | एक भिखारी मुल्ला नसरुद्दीन को देखकर चिल्लाया, 'बड़े बड़ा भला हो गया हो, हृदय का पात्र भरा तो नहीं।
मियां! भूखा हूं, कुछ पैसे दे दो तो खाना खा लं।' मल्ला ने आनंद खोज रहे हो, यह स्पष्ट हो, तो कसौटी हाथ में रहेगी। दयावश बगल के हलवाई की दुकान पर ले जाकर उसे खाना तो तुम जांच लेना। जैसे सोना जांचता है सुनार, पत्थर पर कस खिलवा दिया। खाना खाकर भिखारी बड़ा नाराज होता बाहर लेता है; आनंद पर कसते जाना, कसते जाना। तुम पाओगे, निकला और बड़बड़ाया, 'अजीब मजाक है! पिक्चर देखने के जिंदगी, जिसको तुम जिंदगी कहते हो, कोई भी उस आनंद के लिए तो दो रुपये चाहिए, वे तो जुटते नहीं, खाना सुबह से पांच पत्थर पर सोना साबित नहीं होती। तभी तुम सुन सकोगे किसी लोग खिला चुके।' जाग्रत पुरुष के वचन, किसी जिन-पुरुष के वचन।
मगर तुम मांगते खाना हो, देखना पिक्चर है! लेकिन तुम अपने को धोखा दे रहे हो। तम मांगते कुछ हो, तुम जिंदगी में जरा गौर से देखना, तुम क्या मांग रहे हो? मांगना कुछ और चाहा था, करते कुछ हो, बताते कुछ हो। दूसरों | क्योंकि तुम जो मांग रहे हो, वह मिल जायेगा। तब तुम को ही धोखा देते हो, ऐसा नहीं है; खुद को भी धोखा दे लेते हो। पछताओगे। न मिला तो पछताओगे। मिल गया तो मैंने सुना है, एक यहूदी रबाई दूसरे दिन के सुबह के लिए पछताओगे। क्योंकि मांगा तुमने कुछ और था और चाहा कुछ अपना प्रवचन तैयार कर रहा था और बाहर कुछ आवारा बच्चे और था। फिर उस भिखारी को तो पता भी था अपनी चाह का,
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