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जिन सूत्र भागः1
ऐ काश हो यह जज्बए-तामीर मुस्तकिल
साथ चाहिए। शास्त्र से यह न हो सकेगा। किसी जागे हुए का चौंके तो हैं खराबिए-ख्वाबे-गरां से हम।
साथ चाहिए! तुम सोये हो तो कोई जागा हुआ ही तुम्हें जगा हो सकती है। यह निर्माण की क्षणभर को आई हुई दशा स्थायी सकता है। शास्त्र को तुम रखे रहो, तुम उसका तकिया बना हो सकती है।
| लोगे। शास्त्र क्या करेगा, अगर तुम तकिया बना लोगे? तुम लेकिन तुम्हें स्थायी करनी पड़े। इसे दोहराना पड़े। इसे उस पर ही सिर टेककर और आराम से सो जाओगे, शास्त्र क्या बार-बार आमंत्रित करना पड़े। जब भी समय मिले, अवसर करेगा? कोई तीर्थंकर चाहिए! मिले, फिर-फिर इस भाव-दशा को जगाना पड़े-ताकि इससे महावीर कहते हैं: वही है आचार्य जो जागा हुआ है, जिसका पहचान होने लगे; ताकि इससे संबंध जुड़ने लगे; ताकि आचरण जागृति से निष्पन्न है। जैसे एक दीये से और दीप जल धीरे-धीरे तुम्हारे भीतर यह प्रकाश का स्तंभ खड़ा हो जाये। जाते हैं, सैकड़ों दीप जल जाते हैं; फिर भी जो दीप जल रहा था, 'मनुष्यो सतत जागते रहो। जो जागता है, उसकी बुद्धि बढ़ती वह तो दीप्त ही रहता है, उसका कुछ खोता थोड़े ही है। यही तो है। जो सोता है, वह धन्य नहीं है। धन्य वही है, जो सदा जागता आध्यात्मिक संपदा की महिमा है। बांटो, बंटती नहीं। दिए चले
जाओ, चुकती नहीं। जीवन की और सभी संपदाएं बांटने से कम जागरह नरा! णिच्चं जागरमाणस्स बढ़ते बुद्धी।
होती चली जाती हैं। इसलिए जीवन की और सभी संपदाएं जो सुवति ण सो धन्नो, जो जग्गति सो सया धन्नो।। आदमी को कंजूस बनाती हैं, कृपण बनाती हैं। सिर्फ
जो जागता है वह धन्य है। मनुष्यो, सतत जागते रहो। जो | आध्यात्मिक संपदा ऐसी संपदा है कि बांटो, बंटती नहीं। एक जागेगा उसकी मेधा बढ़ती है। जो सोता है उसकी मेधा सो जाती दीये से जलाये जाओ हजार दीये, कुछ ऐसा नहीं कि पहले दीये है। जो जागता है उसका भाग्य भी जागता है। जो सोता है उसका | की जिससे ज्योति जलाई थी, अब ज्योति कम हो गई। ज्योति का भाग्य भी सो जाता है। जागरण की पराकाष्ठा ही भगवत्ता है। दान तुम्हें कम नहीं करता। ज्योति का दान एक ज्योतिर्मय संघ इसलिए मैंने कहा, भगवान का अर्थ है : जिसका भाग्य पूरा जाग का निर्माण करता है। गया; जिसने अपने भीतर कोई कोना-किनारा सोया हुआ न ऐसे महावीर ने हजारों दीये जलाये; जिन-संघ का निर्माण छोड़ा, जिसने अंधेरे की कोई जगह न छोड़ी।
हुआ। ऐसे बुद्ध ने हजारों दीये जलाये; बुद्ध-संघ का निर्माण उठ कि खुर्शीद का सामाने-सफर ताजा करें
हुआ। लेकिन फिर धीरे-धीरे जब जीवित पुरुष खो जाता है, नफसे-सोख्त-ए-शाम औ सहर ताजा करें!
वचन शास्त्र में संगृहीत हो जाते हैं, लोग शास्त्रों का तकिया बना उठ कि खुर्शीद का सामाने-सफर ताजा करें
लेते हैं। उठो कि सूरज की यात्रा पर चलें! यह सूरज कोई बाहर का पड़ा था सूना सितार दिल का, हुई अचानक यह जाग तुमसे सूरज नहीं-यह भीतर के जागरण का सूरज है।
जो जिंदगी रोग बन चुकी थी, बन गई है आज राग तुमसे। 'जैसे एक दीप से सैकड़ों दीप जल उठते हैं, और वह स्वयं भी हजारों लोगों ने महावीर के पास ऐसा अनुभव किया। दीप्त रहता है, वैसे ही आचार्य दीपक के समान होते हैं। वे स्वयं जो जिंदगी रोग बन चुकी थी, बन गई है आज राग तुमसे प्रकाशवान रहते हैं और दूसरों को भी प्रकाशित करते हैं।' पड़ा था सूना सितार दिल का, हुई अचानक यह जाग तुमसे। _ 'जह दीवा दीवसयं'-जैसे दीये से दीया जल जाता है, दीप ध्यान रखना, एक बड़ा गहरा सिद्धांत इस सदी में कार्ल से दीप जले, ऐसे किसी जाग्रत पुरुष को खोजो, जिसके पास गुस्ताव जुंग ने खोजा। उसे उसने सिनक्रानिसिटी कहा है। तुम्हारे भीतर भी जागरण की आकांक्षा जगे; जिसके पास तुम्हारे | कठिन है उसका अनुवाद। अर्थ यह है कि अगर एक व्यक्ति के भीतर भी जागने की परम वासना जगे; जिसके पास तुम्हारे भीतर भीतर कोई घटना घटे, एक व्यक्ति की वीणा बजे, तो उसके पास भी संक्रामक हो जाये और तुम भी सोचने लगो, विचारने लगो, जो भी आयेगा, उसकी वीणा पर भी वैसी ही झनक शुरू हो प्रयास करने लगोः 'कैसे नींद को तोड़ें!' किसी जागे हुए का जायेगी। उसे भी याद आ जायेगी किसी सोये हुए राग की। उसे
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