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जिन सूत्र भार
| में कुछ और बिगाड़ नहीं आ जायेगा। वे बिगड़े थे, बिगड़े डालोगे, वे भी लौटेंगे...! इसलिए मैं उस खेत की ओर नजर रहेंगे। लेकिन वह जो सौ में एक भी अगर सुन लेगा, राजी होगा, करता हूं, उस खेत की तरफ, जिस पर इन पच्चीस सौ वर्षों में उठेगा, चलेगा, तो पर्याप्त है। सौ सुननेवालों में अगर एक भी | खेती नहीं हुई। जग जाये, तो सार्थक हो गया श्रम। निन्यानबे की फ्रिक करने की प्रेम शब्द का आध्यात्मिक अर्थ उपयोग नहीं किया गया है। कोई जरूरत नहीं है।
| उसका उपयोग कर लेना जरूरी है। मैं यह नहीं कहता हूं कि सदा महावीर ने अहिंसा शब्द चुना, वह उनकी पसंद थी। उनकी यह सार्थक रहेगा; जल्दी ही इस खेत में से भी उपजाऊपन नष्ट पसंद के बहुत कारण हैं। एक कारण है कि प्रेम और भक्ति के हो जायेगा। तब नये-नये शब्द खोजने होंगे। वह आनेवाले नाम पर चलनेवाला संप्रदाय बिलकुल विकृत हो गया था। अब लोग चिंता करें। अगर प्रेम की ही वे बात करते तो उस संप्रदाय से पृथक, अलग नये शब्द सदा जरूरी रहते हैं, क्योंकि नये शब्दों के साथ खड़े होने की कोई सुविधा न थी। वे जिस क्रांति की बात करना | मनुष्य में नयी चेतना का संचार होता है। और कभी-कभी पराने चाहते थे, वह क्रांति पैदा न होती। उन्हीं शब्दों के उन्हीं | बहुत दिन तक उपयोग न किये गये शब्दों का पुनः उपयोग पारिभाषिक शब्दों का उपयोग करने का परिणाम यह होता, वे भी उपयोगी होता है, क्योंकि वे फिर नये हो गये होते हैं; इतने दिन पंडितों और ब्राह्मणों के उसी समुदाय में खो जाते जिसकी बड़ी | तक पड़े रहे खाली, बिना फसल बोये, फिर क्षमता को अर्जित भीड़ थी। उन्होंने अहिंसा शब्द का उपयोग किया। इस तरह कर लेते हैं। तो प्रेम शब्द ने क्षमता अर्जित कर ली है। उन्होंने एक परिभाषा दी। इस तरह उन्होंने अपने को पृथक | फिर कुछ और बातें हैं। अहिंसा शब्द नकारात्मक है। उसमें किया। इस तरह भीड़ में खोने से अपने को बचाया। उपयोगी था | 'नहीं' पर जोर है। महावीर का जोर 'नहीं' पर था। मेरा जोर उनका उपयोग कर लेना अहिंसा का।
| 'नहीं' पर नहीं है। मेरे लिए आस्तिकता स्वीकार में है। 'हां' लेकिन इन पच्चीस सौ सालों में अहिंसा शब्द को बड़ा मूल्य के भाव में है। 'नहीं' पर जीवन के स्तंभ नहीं रखे जा सकते। मिल गया है। उस मूल्य से फिर वैसी की वैसी स्थिति खड़ी हो | और जिसने 'नहीं' के घर में रहना शुरू किया वह सिकुड़ जाता गई है। अब अहिंसा शब्द का उपयोग करने का अर्थ है: अहिंसा | है। और जैन धर्म अगर सिकड़ गया तो उसका कोई और कारण की कतार में खड़े हए लोगों की भीड़ में खो जाना।
नहीं है; 'नहीं' के घर ने मार डाला। तो जिस कारण से महावीर ने अहिंसा शब्द का उपयोग किया, । बुद्ध ने भी 'नहीं' शब्दों का उपयोग शुरू किया था। पांच सौ उसी कारण से मैं अहिंसा शब्द का उपयोग नहीं कर सकता हूं। साल में बुद्ध का धर्म नष्ट हो गया और तब बौद्ध भिक्षुओं को कारण वही है। मैं प्रेम शब्द का उपयोग करना चाहूंगा। इन एक बात समझ में आ गई कि 'नहीं' शब्दों ने जान ले ली। वे पच्चीस सौ सालों में प्रेम शब्द खो गया, उपयोग में नहीं आया। जो नकारात्मक शब्द हैं—निर्वाण-नहीं हो जाना—किसकी जैसे किसी ने अपने खेत को कुछ वर्षों के लिए बंजर छोड़ दिया आकांक्षा है 'नहीं' होने की? शब्द सुनकर ही लोग चौंक जाते हो, खेती न की हो, तो जिस खेत पर बार-बार खेती की गई है, हैं। तो जब बौद्ध भिक्षु भारत के बाहर गये, बर्मा, लंका, चीन तो उसका उपजाऊपन नष्ट हो जाता है। वह जो खाली पड़ा रहा उन्होंने 'नहीं' शब्दों का त्याग कर दिया। एशिया में बुद्ध-धर्म
खेत है वर्षों तक, उसने फिर उपजाऊ शक्ति को अर्जित कर फैला जब उसने 'हां' शब्दों का उपयोग किया-अकारात्मक, लिया है। तो प्रेम शब्द फिर उपयोगी हो गया है। उस शब्द में विधायक, जीवंत। बौद्ध धर्म विराट धर्म हो गया। बुद्ध के शब्द फिर प्राण डाले जा सकते हैं।
| अगर पकड़े रहते तो जो दशा जैनों की हुई, वही दशा बुद्ध-धर्म पच्चीस सौ साल के अंतराल ने, इस पच्चीस सौ साल में की होती। बुद्ध की मजबूरी थी 'नहीं' शब्दों का उपयोग करने बुद्ध, महावीर और गांधी तक अहिंसा शब्द की बड़ी महिमा की; वही मजबूरी थी जो महावीर की थी। ब्राह्मण परंपरा 'हां' गायी गई है। अहिंसा शब्द पर काफी खेती हो चुकी; अब वहां शब्दों से भरी है। आस्तिक शब्दों से भरी है। इस बड़ी परंपरा से कुछ भी पैदा नहीं होता। अब तो डर यह है कि जितने बीज तुम | अगर अलग खड़े न करो तो यह परंपरा लील जायेगी। इस
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