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तिन-सूत्रों का सार आज के सूत्रों में है-जिन साधना है—इतना डुबा देता है कि कोई बचता ही नहीं, पीछे लकीर भी की मूल भित्ति; जिनत्व का अर्थ।
नहीं छूट जाती है। साधक अपने को जगाता है-इतना जगाता परमात्मा की खोज में दो उपाय हैं। एक उपाय है: है कि जागरण की ज्योति ही रह जाती है, कोई जागनेवाला नहीं उसमें ऐसे तल्लीन हो जाना कि तुम न बचो; उसमें ऐसे लीन हो | बचता। हर हालत में अहंकार खो जाता है—चाहे परिपूर्ण रूप जाना कि लीन होनेवाला बचे ही नहीं-जैसे सागर में नमक की | से तल्लीन होकर खो दो और चाहे परिपूर्ण रूप से जागकर खो डगली डाल दें, खो जाती है, स्वाद फैल जाता है, लेकिन कोई | दो। इन दो अतियों पर परिणाम एक ही होता है। इसलिए भक्त बचता नहीं। दूसरा मार्ग है : खोना जरा भी नहीं; जागना ! इतने | और ज्ञानी, प्रेमी और साधक सभी वहीं पहुंच जाते हैं। मार्ग का जागना कि जागरण ही शेष रह जाये, जागनेवाला न बचे। बड़ा फर्क है, मंजिल का जरा भी फर्क नहीं है।
पहला मार्ग बेहोशी का है, दूसरा मार्ग होश का है, लेकिन राह जुदा, सफर जुदा, रहजनो-रहबर जुदा दोनों के भीतर सार बात एक है कि तुम न बचो। इसलिए तुम्हें | मेरे जुनूने-शौक की मंजिले-बेनिशां है और। रामकृष्ण जैसे उल्लेख महावीर और बुद्ध के जीवन में न मिलेंगे, | महावीर से पूछो तो वे कहेंगेः राह जुदा, सफर जुदा, कि रामकृष्ण परमात्मा का नाम लेते-लेते बेहोश हो गये, कि | | रहजनो-रहबर जुदा! यह मेरी राह अलग, इस राह की यात्रा घंटों बेहोश पड़े रहे। कभी-कभी दिनों होश में न लौटते। और | अलग; इतना ही नहीं, मेरी राह पर लूटनेवाले और पथ-प्रदर्शक जब होश में आते तो फिर रोने लगते और कहते कि मां! यह भी अलग! लुटेरे भी मेरी राह के अलग हैं। स्वभावतः होंगे। कहां मुझे बेहोशी की दुनिया में भेज रही हो? वापिस बुला लो! क्योंकि जहां होश साधना है, वहां लुटेरे अलग होंगे। वहां वही उसी गहन बेहोशी में मुझे वापिस बुला लो! मुझे संसार का होश | लुटेरे बन जायेंगे जो भक्ति के मार्ग पर पथ-प्रदर्शक होते हैं। नहीं चाहिए। मुझे तुम्हारी बेहोशी चाहिए!
| जहां होश को गंवा देना है, मस्ती में डूब जाना है, जहां परमात्मा ऐसा उल्लेख महावीर के जीवन में असंभव है; कल्पना में भी की शराब पी लेनी है-वहां जो सहयोगी है, वह महावीर के नहीं लाया जा सकता; महावीर की जीवन-सरणी में बैठता मार्ग पर लुटेरा हो जायेगा। महावीर के मार्ग पर जो सहयोगी है, नहीं। गिर पड़ना बेहोश होकर, यह तो दूर; महावीर एक पैर भी वह महावीर के मार्ग पर लुटेरा हो जायेगा। महावीर के मार्ग पर नहीं उठाते बेहोशी में; हाथ भी नहीं हिलाते बेहोशी में; आंख | जो सहयोगी है, पथ-प्रदर्शक है, राहबर है, वह भी की पलक भी नहीं झपते बेहोशी में।
पर लुटेरा हो जायेगा। लेकिन इन दोनों विपरीत दिखाई पड़नेवाले मार्गों के बीच में | ध्यान भक्ति के मार्ग पर लटेरा हो जायेगा; वहां प्रार्थना कुछ सेतु हैं। वह सेतु स्मरण रखना। भक्त अपने को डुबा देता | पथ-प्रदर्शक है। महावीर के मार्ग पर प्रार्थना लुटेरा हो जायेगी;
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