________________
र
वासना ढपारशख है
लोग मुझसे कहते हैं कि संसार छोड़ना है। जैसे संसार कहीं दिलवाने की कोई तुम्हारी आकांक्षा है। तुम टाल रहे हो कि झंझट बाहर है! संसार से उनका मतलब है-दुकान, बाजार, पत्नी, मिटाओ, जाओ। और तुम कह रहे हो कि ठीक है मलहम-पट्टी बच्चे-इनको छोड़ना है। संसार भीतर है। संसार तुम्हारे कर दी, अब तुम आशा में जीयो। अभिप्राय में है। संसार तुम्हारी कामना और वासना में है। पूरब में यही शिष्टाचार है, सांत्वना बंधा दो। कोई मर गया, 'हिंसा करने के अध्यवसाय से ही कर्म का बंध होता है। फिर | तुम पहुंच जाते हो कहने कि कोई हर्जा नहीं, आत्मा तो अमर है। कोई जीव मरे या न मरे, जीवों के कर्म-बंध का यही स्वरूप है। तुम्हें पता है! लेकिन तुम कहते हो, पता हो या न हो, अब यह तो
आशा के स्वभाव को समझने की कोशिश करो। अनुभव को कोई दुख में पड़ा है, इसको तो सांत्वना दो! जिताओ, आशा को हराओ। जो तुमने जीवन के अनुभव से यूं तो नहीं कहता कि सचमुच करो इंसाफ जाना है उसका भरोसा करो। जो तुम्हारा मन फैलाव करता है, झूठी भी तसल्ली हो तो जीता ही रहूं में। सपनों के, उनका भरोसा मत करो।
और ऐसी झूठी तसल्ली के धागे पर लोग जीते रहते हैं। यही यूं तो नहीं कहता कि सचमुच करो इंसाफ
तुम्हारे साधु-संन्यासी कर रहे हैं। वे तुम्हें झूठी तसल्ली बंधाए झूठी भी तसल्ली हो तो जीता ही रहूं मैं।
जाते हैं। तुम उनके पास जाओ और तुम कहो कि मन में बड़ी तुम भी झूठी तसल्लियों में जी रहे हो। तुम दूसरों से झूठी | अशांति है, वह कहता है, 'कोई फिक्र न करो। यह राम-राम तसल्ली मांगते हो।
जपना, सब ठीक हो जायेगा।' अब राम-राम जपने से कोई भी पश्चिम से जब लोग पूरब आते हैं तो बड़े हैरान होते हैं। संबंध अशांति का नहीं है। अशांति तुम पैदा कर रहे हो, राम का क्योंकि पूरब के आदमी झूठी तसल्लियां देने में बड़े कुशल हैं। इसमें कुछ हाथ नहीं है। अशांति तुम पैदा किये चले जाओगे, यहां इस मुल्क में अगर तुम किसी के पास जाओ और कहो कि राम-राम भी जपोगे, क्या होगा? थोड़ी और अशाति बढ़ फलां काम करना है, आप करवा देंगे। वह कहता है, बिलकुल जाएगी, बस। उसने तुम्हारे मूल कारण को न पकड़ा। मूल करवा देंगे। पश्चिम में ऐसा नहीं है। अगर वह करवा सकेगा तो कारण पकड़ना झंझट की बात है, मुश्किल बात है, कठिन बात ही कहेगा। फिर भी वह शर्त के साथ कहेगा कि मैं कोशिश है। शायद उसको भी पता न हो, लेकिन तुम्हारी तसल्ली उसने करूंगा। होगा कि नहीं होगा, यह मुश्किल है। मैं अपनी तरफ | बंधा दी। तुम भी प्रसन्न लौटे। तुम भी आनंदित हुए कि चलो। से कोशिश करूंगा। अगर नहीं करवा सकेगा तो स्पष्ट 'नहीं' तुम गए कि आशीर्वाद दे दो कि शांत हो जाये चित्त। कहेगा कि नहीं, यह मुझसे न हो सकेगा, क्षमा करें! पूरब में __ भारत में साधु हैं, जो तैयार बैठे हैं, हाथ तैयार ही रखते हैं वे ऐसा नहीं है। तुम किसी से भी कहो, वह कहता है, हां करवा आशीर्वाद देने को। वे कहते हैं, यह लो आशीर्वाद। न कुछ देंगे! चाहे वह करवा सकता हो, चाहे उसकी क्षमता में हो चाहे लेना है, न कुछ देना है। न उनका कुछ हर्जा हो रहा है और न न हो; लेकिन वह यह कहता है कि क्यों नाहक तुम्हें दुखी तुम्हें कुछ मिल रहा है; लेकिन बात हो गई, तसल्ली बंध गई। करना। जब होगा तब होगा, अभी तो तसल्ली!
तुम अपने घर लौट गए, जैसे के तैसे, जैसे आये थे। थोड़ी और जब पश्चिम से लोग पूरब आते हैं, धंधे और व्यवसाय के | आशा मजबूत लेकर लौट गए कि अब सब ठीक हो जायेगा। लिए, तो वे बड़े हैरान होते हैं। उनको समझ में ही नहीं आता कि अगर तुम ईमानदारी से जीवन का रूपांतरण चाहते हो तो उनके किसकी मानें, किसकी न मानें; क्योंकि सभी 'हां' कहते हैं। पास जाना जो तसल्ली बंधाते न हों; जो तुम्हारे जीवन का निदान 'नहीं तो कोई मुश्किल से कहता है। 'नहीं' तो जैसे सीधा कर के रख देते हों सामने—चाहे चोट भी लगती हो; चाहे अशिष्टाचार है।
तुम्हारा घाव भी छू जाता हो और तुम्हारी मलहम-पट्टी उखड़ तुमने भी कभी खयाल किया? कोई तुम्हारे पास आता है कि जाती हो; चाहे तुम्हारे नासूर से मवाद निकल आती हो। लेकिन नौकरी चाहिए, तुम कहते हो कि हां, कोशिश करेंगे, दिलवा उनके पास जाना जो तसल्ली बंधाने के आदी नहीं हैं; जो तुम्हारे देंगे। ऐसा कहते वक्त तुम क्षणभर को भी सोच नहीं रहे हो कि जीवन के सत्य को वैसा का वैसा रख देते हैं जैसा है। पीड़ा होती
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrar.org