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प्रेम से मुझे प्रेम है
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कि अपने शरीर को ढांकें, छिपाएं; जानवरों की तरह हैं; पशुओं में सम्मिलित रखना मुश्किल हो गया। वह अलग ही टूट गई की तरह हैं। आदमी और जानवर में जो बड़े-बड़े फर्क हैं, उनमें | धारा। एक फर्क यह भी है कि आदमी कपड़े पहनता है। आदमी | यहां तुम सोचो, बुद्ध महावीर के समकालीन थे। बुद्ध को अकेला पशु है जो कपड़े पहनता है। बाकी सभी पशु नग्न हैं। श्रमणों की परंपरा ने अपना चौबीसवां तीर्थंकर स्वीकार नहीं तो महावीर जब नग्न हुए उन्होंने कहा कि संस्कृति नहीं, प्रकृति | किया; महावीर को किया। हिंदुओं ने बुद्ध को अपना दसवां को चुनता हूं; सभ्यता को नहीं, आदिम-स्वभाव को चुनता हूं। | अवतार स्वीकार किया; महावीर के नाम का उल्लेख भी नहीं
और जो भी दांव पर लगती हो इज्जत, पद-प्रतिष्ठा, वह सब किया। क्या मामला है? बुद्ध अभी भी स्वीकार किये जा सकते दांव पर लगा देता हूं। आज से पच्चीस सौ साल पहले वैसी | थे। थोड़े बगावती थे, लेकिन डोर बिलकुल न तोड़ दी थी; फिर हिम्मत बड़ी कठिन थी; आज भी कठिन है। आज भी नग्न खड़े भी बंधे थे। महावीर ने बिलकुल ही डोर तोड़ दी, खूटी उखाड़ होने पर अड़चनें खड़ी हो जायेंगी, तत्क्षण पलिस ले जायेगी, ली; बाहर खड़े हो गए खुले आकाश में। अदालत में मुकदमा चलेगा।
महावीर सभी तरह से मनुष्य को विशाल करना चाहते हैं। दिगंबर जैन मुनि को किसी गांव से गुजरना हो तो पुलिस को नजर को वुसअत नसीब होगी खबर करनी पड़ती है। और जब दिगंबर जैन मुनि, नग्न मुनि हदों से निकलेगा जब तखैय्युल गुजरता है, तो उसके शिष्यों को उसके चारों तरफ घेरा बनाकर हरम भी ऐ शेख! सतहे-बी, सुन चलना पड़ता है ताकि उसकी नग्नता कुछ तो ढंकी रहे।
मकान है, ला-मकां नहीं है। दिगंबर जैन मुनि खोते चले गए हैं, एक दर्जन से ज्यादा नहीं हैं तभी विशालता आत्मा को उपलब्ध होती है। जब कल्पना के अब। क्योंकि बड़ा कठिन मामला है। वह नग्नता ही उपद्रव है। ऊपर से भी सारी जंजीरें हट जाती हैं। जब तुम्हारा सोच-विचार फिर सारे समाज की व्यवस्था को जड़-मूल से इनकार करना, तो मुक्त होता है तभी तुम्हारी आत्मा भी विशाल होती है। समाज भी प्रतिरोध करता है, बदला लेता है, नाराज हो जाता है। नजर को वुसअत नसीब होगी-तभी तुम्हारी दृष्टि विशाल
प्रथम तीर्थंकर का उल्लेख तो ऋग्वेद में है; लेकिन महावीर बनेगी, जब उसके ऊपर किसी तरह के बंधन न रह जाएं-न का उल्लेख किसी हिंदू-ग्रंथ में नहीं है। निश्चित ही महावीर शास्त्र के, न अतीत के, न सदगुरुओं के। अति क्रांतिकारी रहे। इतने क्रांतिकारी रहे कि उनका उल्लेख हरम भी ए शेख! सतहे-बी, सुन करने तक की हिम्मत हिंदू-शास्त्रों ने नहीं की है। इस आदमी का मकान है, ला-मकां नहीं है। नाम लेना भी खतरनाक मालम हआ है।
ये मंदिर, ये मस्जिद, ये पूजागह भी, सन। ये भी संकीर्ण हैं। तो क्रांतिकारियों की जो परंपरा है, उस परंपरा ने अगर महावीर | मकान हैं, ला-मकां नहीं हैं। को चौबीसवां तीर्थंकर स्वीकार किया, स्वाभाविक था यह। | और हमें एक ऐसी जगह चाहिए जहां कोई सीमा न हो,
यह भी समझ लेना जरूरी है कि महावीर के पहले तक | ला-मकां; जहां कोई सीमा न रोकती हो। नजर को वुसअत जैन-धर्म कोई अलग धर्म न था। वह चिंतकों की एक धारा थी, नसीब होगी और तब तेरी दृष्टि विशाल होगी। लेकिन कोई अलग धर्म न था। महावीर के साथ ही चिंतकों की तो महावीर ने अत्यंत विशाल दृष्टि दी है। लेकिन जब अत्यंत धारा सघन हुई; उसने रूप लिया, संगठन बनी, संघ बनी और विशाल दृष्टि होगी, तो सभी की दृष्टियों के विपरीत पड़ हिंदू परंपरा से अलग होकर चलने लगी।
| जायेगी। संकीर्ण दृष्टि के साथी मिल जाएंगे: विशाल दष्टि के पार्श्वनाथ या ऋषभदेव एक अर्थ में हिंदू ही थे-वैसे ही जैसे साथी नहीं मिलते। अब अगर मैं कृष्ण की ही महिमा गाऊं तो जीसस यहूदी थे। महावीर भी जब जिंदा थे तो करीब-करीब हिंदू हिंदू मेरे साथ हो जाएंगे; लेकिन उनकी शर्त है कि फिर महावीर थे। लेकिन महावीर ने जो प्रगाढ़ता से क्रांति को रूप दिया, वह की बात मत उठाना। अगर मैं महावीर के ही गीत गुनगुनाऊं, तो इतना प्रबल हो गया, इतना साफ हो गया कि उसे फिर हिंदू-धारा | जैन मेरे साथ हो जाएंगे; लेकिन उनकी शर्त है, अब कृष्ण को
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