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जिन सूत्र भागः 1
समझौता था। यह थोड़ा भय था। यह इस बात का भय था कि लोकतांत्रिक हिसाब है। लेकिन महावीर का प्रभाव इतना ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि स्त्री और पुरुष साथ-साथ संन्यासी महिमाशाली हुआ कि जिनके वस्त्र थे उनकी प्रतिमाओं से भी हों और साथ-साथ रहें। बुद्ध को भय लगा, इससे तो कहीं ऐसा वस्त्र उतर गए। क्योंकि फिर ऐसा लगने लगा, अगर महावीर न हो जाये कि धर्म नष्ट हो जाये! कहीं स्त्री-पुरुषों का साथ नग्न हैं और पार्श्वनाथ वस्त्र पहने हुए हैं तो पार्श्वनाथ ओछे रहना कामवासना के ज्वार के पैदा होने का कारण न बन जाये! मालूम पड़ेंगे, छोटे मालूम पड़ेंगेः इतना भी त्याग न कर पाये! कहीं स्त्रियां पुरुषों को भ्रष्ट न कर दें। तो वह जो स्त्रियों के प्रति | नग्नता कसौटी हो गई। पुरुषों का पुराना भय है, कहीं न कहीं बुद्ध के मन में उसकी छाया ऐसा सदा हुआ है। जो सर्वाधिक महिमाशाली है वह कसौटी थी। उन्होंने इनकार किया। वे वर्षों तक इनकार करते रहे कि स्त्री बन जाता है। फिर उसके पीछे इतिहास भी बदल जाता है। को मैं संन्यास न दंगा: क्योंकि स्त्री को संन्यास देने से खतरा है। अतीत भी बदल जाता है; क्योंकि अतीत के संबंध में हमारे
महावीर के सामने भी सवाल उठा। वे तत्क्षण संन्यास दे दृष्टिकोण बदल जाते हैं। नग्न खड़े हो जाना बड़ा क्रांतिकारी | दिये। उन्होंने एक बार भी यह सवाल न उठाया कि स्त्री को मामला था, क्योंकि नग्नता सिर्फ नग्नता नहीं है। इसका तुम
संन्यास देने से कोई खतरा तो न होगा! क्रांतिकारी खतरे को अर्थ समझो।। मानता ही नहीं, बल्कि जहां खतरा हो वहां जानकर जाता है। नग्न होने का अर्थ है: समाज का परिपूर्ण अस्वीकार; समाज उन्होंने यह खतरा स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा, जो होगा की धारणाओं की परिपूर्ण उपेक्षा। तुम अगर चौरस्ते पर नग्न ठीक है। फिर बुद्ध ने मजबूरी में, बहुत दवाब डाले जाने पर, खड़े हो जाओ तो उसका अर्थ यह होता है कि तुम दो कौड़ी वर्षों के बाद जब स्त्रियों को दीक्षा भी दी तो उन्होंने तत्क्षण कहा कीमत नहीं देते कि लोग क्या सोचते हैं, कि लोग अच्छा सोचते कि अब मेरा धर्म पांच सौ वर्ष से ज्यादा न जीयेगा; यह मैंने हैं कि बुरा सोचते हैं, कि लोग तुम्हारे संबंध में क्या कहेंगे। हमारे अपने हाथ से ही बीज बो दिया अपने धर्म के नष्ट होने का। और पास शब्द है भाषा में किसी को गाली देनी हो तो हम कहते हैं बुद्ध का धर्म पांच सौ वर्ष के बीच नष्ट भी हो गया भारत से। "नंगा-लुच्चा'-वह महावीर से पैदा हुआ। नग्न वे थे और
और कारण वही सिद्ध हुआ जो बुद्ध ने माना था; जो भय था वह बाल लोंचते थे, इसलिए लुच्चा। पहली दफा महावीर को ही सही साबित हुआ। क्योंकि जब स्त्री-पुरुष पास-पास रहे तो लोगों ने नंगा-लुच्चा कहा; क्योंकि वे नग्न खड़े होते थे और विराग तो दूर हो गया, वैराग्य तो दूर हो गया, राग-रंग शुरू बाल भी काटते न थे। जब बाल बढ़ जाते थे तो हाथ से उनका हुआ। राग-रंग ने नये रास्ते खोज लिये, नयी तर्क की व्यवस्थाएं लोंच करते थे। खोज लीं। तंत्र का जन्म हुआ। बुद्ध-धर्म समाप्त हो गया। तुमने कभी सोचा न होगा कि आखिर नंगे को लच्चा क्यों
लेकिन महावीर का धर्म अब भी जीता है, अब भी कहते हैं! लुच्चे का क्या संबंध है? फिर तो धीरे-धीरे लुच्चा जीता-जागता है। स्त्रियों को समाविष्ट कर लिया, धर्म नष्ट न शब्द अलग भी उपयोग होता है। अब तुम कहते हो, फला हुआ। बड़ा क्रांतिकारी भाव रहा होगा। महावीर नग्न खड़े हो आदमी बड़ा लुच्चा है। लेकिन तुम यह नहीं पूछते कि उसने गए। कोई जैनों में भी परंपरा न थी नग्न होने की। आज तो तुम लोंचा क्या है। महावीर के साथ पैदा हुआ शब्द है-गाली की जाकर देखोगे दिगंबर जैन मंदिरों में तो चौबीस ही जैनों की तरह पैदा हुआ, निश्चित ही समाज बहुत नाराज हुआ होगा, प्रतिमाएं नग्न हैं। वह महावीर ने परिभाषा दे दी। वे तेईस नग्न थे बहुत क्रुद्ध हुआ होगा। इस आदमी ने सारे हिसाब तोड़ दिये। नहीं, महावीर ही नग्न हुए थे। बाकी तेईस तो वस्त्रधारी ही थे। वस्त्र सिर्फ वस्त्र थोड़े ही हैं, समाज की सारी धारणा है। वस्त्रों इसलिए अगर श्वेतांबरों और दिगंबरों के विवाद में निर्णय करना में छिपे हुए समाज का सारा संस्कार, उपचार, शिष्टाचार, हो तो बहुमत श्वेतांबरों के पक्ष में होगा, क्योंकि चौबीस तीर्थंकरों सभ्यता, सब है। नग्न को हम असभ्य कहते हैं। आदिवासी हैं, में तेईस वस्त्रधारी थे, और एक ही निर्वस्त्र था। तो अगर निर्णय नग्न रहते हैं, उनको हम असभ्य कहते हैं, आदिम कहते हैं। ही करना हो तो तेईस की तरफ ध्यान करके करना चाहिए, सीधा | क्यों? क्यों असभ्य ? क्योंकि अभी उन्हें इतनी भी समझ नहीं
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