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प्रेम से मुझे प्रेम है
रसो वै सः। वह जो परमात्मा है, रस उसका स्वभाव है। | का रास्ता मधुशाला का है। वह कहता है, यह होश ही हमारी
रस को मैं भी जीवन का सत्य मानता हूं। और तुम्हारे जीवन में पीड़ा है। रस तभी होता है जब प्रेम होता है। जहां-जहां प्रेम, वहां-वहां तुझ पे कुर्बा मेरे दिल की हर एक बेखबरी रस। जहां-जहां प्रेम खोया, वहां-वहां रस सूखा। रस में डूबो। आ! इसी मंजिले-एहसासे-फरामोश में आ। तन डूबे, मन डूबे, सब डूबे। रस में डूबो! और तब तुम्हारी | हे प्रभु! भक्त कहता है, तुझ पे कुर्बा मेरे दिल की हर एक दृष्टि में एक अलग ही दृश्य दिखाई पड़ना शुरू हो जायेगा। बेखबरी और तो मेरे पास कुछ भी नहीं है, बेहोशी है। यह मेरे 'जमील' अपनी असीरी पे क्यों न हो मगरूर
दिल का पागलपन है, दीवानगी है। यह तुझ पर कुर्बान करता यह फन कम है कि सैय्याद ने पसंद किया!
हूं। यह तुझ पर न्योछावर करता हूं। और तो मेरे पास कुछ भी 'जमील' अपनी असीरी पे क्यों न हो मगरूर! जमील ने कहा | नहीं है। है, क्यों न हम अभिमान करें इस बात का कि परमात्मा ने हमें तझ पे कुर्बा मेरे दिल की हर एक बेखबरी कैद करने योग्य समझा, बांधने योग्य समझा! यह फन कम है आ! इसी मंजिले-एहसासे-फरामोश में आ। कि सैय्याद ने पसंद किया!–कि उसने हमें पसंद किया, कि और मैं तुझे याद भी कर सकू, यह भी मेरी सामर्थ्य नहीं। तू मेरे भेजा, कि बनाया।
विस्मरण के द्वार से ही आ! भक्त तो अपने दुख में से भी सुख का गीत सुन लेता है। आ! इसी मंजिले-एहसासे-फरामोश में आ। मेरी इस बेहोशी अपनी जंजीरों में भी रस पा लेता है। कहता है, परमात्मा ने ही केरास्ते से ही तू आ! बांधा है। छूटने की जल्दी भक्त को नहीं है। भक्त कहता है, तेरे | भक्त का ढंग और। भक्त भी पहुंच जाते हैं। साधक भी पहुंच बंधन हैं—राजी हैं। और ऐसे भक्त छूट जाता है। क्योंकि जिस जाते हैं। महावीर का मार्ग साधक का है। नारद का मार्ग भक्त बंधन को तुमने सौभाग्य समझ लिया, वह बंधन बांधेगा कैसे? का है। लेकिन अगर तुम मुझसे पूछते हो, तो मेरे देखे भक्त के बंधन तभी तक बांधता है जब तक तुम छूटना चाहते हो। तुम्हारे मार्ग से अधिक लोग पहुंच सकते हैं। हां, जिनको भक्ति छूटने की वृत्ति के विपरीत होने के कारण बंधन मालूम होता है। असंभव ही मालूम पड़ती हो, उनको साधक का मार्ग है। वह जब तुम स्वीकार कर लिये, राजी हो गए, तुमने कहा कि मजबूरी है। तुम्हारा प्रेम अगर इतना मर गया है और जड़ हो गया ठीक...।
है कि उसमें से तुम परमात्मा को प्रगट नहीं कर सकते, तो फिर 'जमील' अपनी असीरी पे क्यों न हो मगरूर
छोड़ो। फिर तुम साधक के मार्ग से चलो। यह फख्र कम है कि सैय्याद ने पसंद किया।
लेकिन साधक का मार्ग दोयम है, नंबर दो है। वह उनके लिए यह कोई कम गौरव की बात है कि परमात्मा ने चुना! जो है जिनके भीतर की आत्मा कुछ मुर्दा हो गई है और जिनके भीतर बनाया, जैसा बनाया...। वह हर जगह उसके प्रेम को खोज प्रेम के स्रोत सूख गए हैं, जिनके भीतर गीत-गान नहीं उठता, लेता है।
| जिनके भीतर नृत्य-नाच नहीं उठता, जिनकी बांसुरी खो गई और तुम्हारा जीवन अगर हर जगह प्रेम को खोजने है उनके लिए है। अगर तुम्हारी बांसुरी अभी भी तुम्हारे पास लगे-ऐसी जगह भी जहां खोजना बड़ा मुश्किल है—जिस हो और तुम गुनगुना सको गीत, तो सौभाग्यशाली हो। अगर दिन तुम सब जगह प्रेम के दर्शन करने लगो, उस दिन परमात्मा यह न हो; अगर कहीं सब खो चुके बांसुरी दूर जीवन की यात्रा के दर्शन हो गए।
में; कहीं प्रेम को कुठाराघात हो गया; कहीं सब जड़ हो गया जीसस ने कहा है, परमात्मा प्रेम है। और मैं कहता हूं, प्रेम तुम्हारा हृदय, अब उसमें कोई पुलक नहीं उठती-तो फिर परमात्मा है।
साधक का मार्ग है। साधक का मार्ग उन थोड़े-से लोगों के लिए पर ये रास्ते अलग-अलग हैं। महावीर का रास्ता भक्त का है, जिनके भीतर प्रेम की सब संभावनाएं समाप्त हो गई हैं। रास्ता नहीं है-होश का। भक्त का रास्ता है बेहोशी का। भक्त लेकिन अगर प्रेम की जरा-सी भी संभावना हो और अंकुरण हो
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