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जिन सूत्र भागः
ज़ाहिद हद्दे-होशो-खिरद में रहा 'असीर'
कुछ बंधा है प्रेम से, वहां हमें यह मानकर चलना पड़ेगा कि हम --जो सदा ही बुद्धि की सीमा में ही घिरा रहा, छोड़ने-त्यागने | एक प्रेम के सागर में जी रहे हैं। की सीमा में ही घिरा रहा...
जब अणु की पहली दफा खोज हुई और अणु का विस्फोट नादां ने जिंदगी ही को जिंदा बना दिया।
किया गया, तो रदरफोर्ड ने, जिसने पहली दफा अणु के संबंध में -उस ना-समझ ने अपने जीवन को ही एक कारागृह बना गहरी खोज की, उसको एक सवाल उठा कि अणु के जो परमाणु लिया। छोड़ो-छोड़ो, सिकुड़ते जाओ-धीरे-धीरे तुम पाओगे, | हैं—इलेक्ट्रान, न्यूट्रान, पाजिट्रान-ये आपस में कैसे बंधे हैं? फांसी लग गई अपने ही हाथों। लेकिन, तुम समझ न पाओगे, इनको कौन-सी शक्ति बांधे हुए है ? ये बिखर क्यों नहीं जाते? क्योंकि जितनी तुम्हारी फांसी लगेगी उतने ही लोग तुम्हारे पैरों में तुमने कभी खयाल किया—एक पत्थर पड़ा है, सदियों से पड़ा फूल चढ़ायेंगे। वे कहेंगे, कैसे महात्यागी! तो तुम्हें फांसी में भी है, बिखरता क्यों नहीं? तुम इसे तोड़ दो हथौड़े से, बिखर गया, रस आने लगेगा। क्योंकि फांसी जितनी तुम कसते जाओगे, फिर तुम इसे जोड़ो, फिर रख दो टुकड़ों को पास-पास, मगर | उतना ही तुम्हें सम्मान मिलेगा। जितने ज्यादा उपवास करोगे, । अब न जुड़ेगा। बात क्या हो गई? इतने दिन तक कौन-सी चीज जितना अपने को तोड़ते जाओगे, उतना सम्मान मिलेगा। जितना इसे जोड़े थी? अगर वह चीज इतने दिन तक जोड़े थी, फिर अपने को मिटाओगे, अपना घात करोगे, उतना सम्मान | तुमने टुकड़े पास रख दिये, अब क्यों नहीं जोड़ती? कोई चीज मिलेगा। तो उस मुनि को ज्यादा सम्मान मिलता है जो ज्यादा तोड़ दी तुमने। पत्थर नहीं तोड़ा तुमने कोई और चीज जो सूक्ष्म त्याग करता है। उसको वे लोग कहते हैं, महामनि। लोग सिर | थी, तोड़ दी। पत्थर तो अब भी वही का वही है, उसका वजन भी रखते हैं उसके चरणों में। तो अहंकार मजा लेता है!
वही है, टुकड़े भी उतने के उतने हैं लेकिन पहले जुड़े थे, अब तो जिन्होंने भी निषेध की यात्रा की, उन्होंने सिर्फ अहंकार को | टूट गए। अब तुम लाख उनको पास-पास बिठाओ, उनको भर लिया। उनके जीवन में आत्मा खुली नहीं, खिली नहीं। लाख समझाओ कि अब फिर से जुड़ जाओ, पूजा-प्रार्थना करो,
तो मैं तो प्रेम को ही चुनता हूं। मैं प्रेम के प्रेम में हूं। मैं तो तुमसे यज्ञ-हवन करो, वह सुनेगा नहीं। कोई चीज तमने तोड़ दी. कोई कहूंगा, लाख खराबियां हो इस शब्द में-महावीर से कुछ सीख बहुत सूक्ष्म चीज तोड़ दी। लो। महावीर ने इस शब्द की खराबियों को देखकर अहिंसा रदरफोर्ड सोचने लगा, कौन-सी चीज जोड़े हुए है। बहुत-से चुना, लेकिन जो परिणाम हुए वे और भी बदतर हुए। बीमारी तो सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं। उनमें एक सिद्धांत प्रेम का भी बीमारी, औषधि भी बीमारी बन गई।
है, यह आश्चर्य की बात है। वैज्ञानिक और प्रेम की बात करें! मैं तो तुमसे कहूंगा, प्रेम चुनो। और प्रेम इतना सबल है कि वह लेकिन आश्चर्यचकित होने की जरूरत नहीं है। अगर जीवन अपनी भूलों को पार करने की क्षमता रखता है। वह जिंदा है, तो सब तरफ प्रेम से जुड़ा है, अगर वृक्ष फलों से प्रेम के कारण जुड़े गंदा भी हो जाये तो स्नान कर सकता है। अहिंसा लाश है, गंदी | हैं, अगर वृक्ष फूलों से प्रेम के कारण जुड़े हैं, अगर आदमी न होगी, लेकिन उसकी स्वच्छता का भी क्या मूल्य है? उसकी आदमी से प्रेम के कारण जुड़ा है तो फिर निश्चित ही जीवन की स्वच्छता में जीवन की सुवास नहीं है। उसकी स्वच्छता | इकाइयां भी, ईंटें भी प्रेम से ही जुड़ी होंगी। चाहे तुम उसे क्लिनिकल है।
मैग्नेटिज्म कहो, चाहे तुम उसे इलेक्ट्रिसिटी कहो-यह नाम का मुझे तो प्रेम शब्द में रस है। क्योंकि मेरे देखे, यह सारा जगत | भेद है। लेकिन कोई चुंबकीय शक्ति सारे जीवन को जोड़े हुए प्रेम से आंदोलित है। यहां श्वास-श्वास प्रेम से चल रही है। है। उस चुंबकीय शक्ति को भक्तों ने भगवान कहा है, प्रेम कहा यहां फूल-फूल प्रेम से खिल रहे हैं। और अभी तो वैज्ञानिक भी है, परमात्मा कहा है। महावीर उसे सत्य कहते हैं। सोचने लगे हैं कि जब प्रेम से सारा जगत बंधा हुआ है-स्त्री लेकिन फिर महावीर का 'सत्य' शब्द बड़ा तटस्थ है। उससे पुरुषों से बंधी, पुरुष स्त्रियों से बंधे, मां-बाप बेटों-बच्चों से रसधार नहीं बहती। सत्य बड़ा रूखा-सूखा है, मरुस्थल जैसा बंधे, बेटे-बच्चे मां-बाप से बंधे, मित्र मित्रों से बंधे-जहां सब है। प्रेम मरूद्यान है। बड़ी रसधार बहती है। उपनिषद कहते हैं,
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