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जिन सूत्र भाग: 1
सब पी जाये, कुछ छोड़े न; सब पर कुंडली मारकर बैठ जाये, कुछ दान न करे; जिसके जीवन से प्रेम न उठता हो; जो सब चीजों के लिए कृपणता से इकट्ठा करता चला जाये। ठीक है कि रावण की लंका सोने की थी, रही होगी। सारा सोना उसने इकट्ठा कर लिया होगा सारे संसार से काला रंग राक्षस, शैतान, असुर उसका रंग है।
साधारणतः हममें से अधिक लोग भगवान के साथ यही करते हैं। भगवान हम पर बरस रहा है। वह प्रकाश की भांति है। लेकिन हम उसे पीकर बैठ जाते हैं। हम उसे सिकोड़ लेते हैं। | हम सब तरफ से उस पर कुंडली मार लेते हैं। हम उसे बांटते नहीं। हम उसे लौटने नहीं देते। उसके कारण हम बेरंग हो जाते हैं, काले हो जाते हैं।
बाटो ! जितना तुम बांटोगे उतना तुम्हारे जीवन में रंग आने लगेगा। अगर तुमने एक किरण लौटा दी तो हरा रंग आ जायेगा; अगर दूसरी किरण लौटा दी तो लाल रंग आ जायेगा। अगर तुमने सब लौटा दिया तो तुम शुभ्र हो जाओगे । दुनिया के सारे धर्मशास्त्र शैतान को काला रंगते हैं, राक्षस को काला रंगते हैं | जरथुस्त्र अहरिमन को काला रंगता है। ईसाई डेविल को, मुसलमान शैतान को, सब काले रंगते हैं। वह काला बिलकुल प्रतीक है। वह जैसा भौतिक शास्त्र का अंग है, वैसे ही अध्यात्म-शास्त्र का भी अंग है।
जब भी तुम किसी चीज को पीकर बैठ जाते हो, तुम काले हो जाते हो। तब तुम बीज की भांति हो; सब भीतर बंद है और एक खोल ऊपर से चढ़ी है। जब तुम सब छोड़ देते हो, इसलिए सफेद त्याग का प्रतीक है।
तो महावीर, बुद्ध, राम, मोज़िज़ शुभ्र वस्त्रों की भांति हैं, शुभ्र दीवाल की भांति हैं । लाओत्सु पारदर्शी कांच की भांति है । तो अगर कांच पूरा पारदर्शी हो तो तुम्हें दिखाई ही नहीं पड़ेगा । उसके पार क्या है, वह दिखाई पड़ेगा; कांच दिखाई नहीं पड़ेगा । अगर कांच दिखाई पड़ता है तो उसका मतलब है, थोड़ी अशुद्धि रह गई। तो लाओत्सु अगर तुम्हारे पास भी बैठा रहे तो तुम्हें पता न चलेगा। अगर महावीर तुम्हारे पास बैठें, तो तुम्हारी आंखें "जैनों ने सफेद वस्त्र चुने मुनियों के लिए -त्याग की वजह से चमचमा जायेंगी; शुभ्रता तुम्हें घेर लेगी। अगर रावण तुम्हारे सब छोड़ देता है । सब त्याग कर देता है। पास बैठे तो तुम घबड़ाने लगोगे; वह तुम्हें चूसने लगेगा, खींचने लगेगा। वह तुम्हारी सीता को चुराने में लग जायेगा। वह तुम्हें भी पी जाना चाहेगा। जरूरी नहीं है कि वह तुम्हें भोगे, क्योंकि भोगने के लिए भी थोड़ा त्यागना पड़ता है। वह तो सिर्फ कुंडली मारकर बैठ जायेगा।
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तो एक तरफ शैतान है। फिर जो सब छोड़ देता है; जैसे राम, जैसे महावीर, सब छोड़ देते हैं— शुभ्र हैं । तो राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उनका जीवन बड़े संयम, विवेक, संतुलन, अनुशासन का जीवन है। महावीर का जीवन परम त्याग का जीवन है; सब छोड़ दिया है; सब छोड़ दिया; कुछ भी नहीं रखा है— शुभ्र हो गये हैं!
जैनों के दो पंथ हैं: दिगंबर और श्वेतांबर । महावीर ने वस्त्र तो पहने नहीं, रहे तो वे नग्न ही; लेकिन फिर भी श्वेतांबर दृष्टि में
भी सार है। यह कहना कि वे सफेद वस्त्रों में ढके थे, बिलकुल सार्थक है। जैसे शैतान को काला रंगने में सार्थकता है, वैसे ही महावीर को शुभ्र वस्त्रों में, श्वेतांबर बनाने में भी सार्थकता है। यद्यपि वे नग्न थे, लेकिन उनके जीवन का लक्षण सफेद, शुभ्र, श्वेत वस्त्र हैं— श्वेतांबर हैं । सब उन्होंने छोड़ दिया। यह दूसरा उपाय है।
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अगर परमात्मा को तुम सिकोड़कर बैठ गये, तो तुम कुछ भी हो सकते हो ः पशु, पत्थर, आदमी । परमात्मा तुम्हारे भीतर सिकुड़ा पड़ा रहेगा।
बाटो ! खोलो इन जालों को जो भीतर बंधे हैं! तोड़ो खोल को, अंकुर उठने दो! तुम पाओगे शुभ्र परमात्मा का उदय हुआ।
साधारण विभाजन हैं। फिर एक तीसरी भी स्थिति है। जैसे कि कोई पारदर्शी कांच का टुकड़ा, वह किरणों को लौटाता नहीं है, पीता भी नहीं, पार हो जाने देता है; शुभ्र भी नहीं है, काला भी नहीं है। क्योंकि काला होने के लिए पी जाना जरूरी है। शुभ्र होने के लिए लौटा देना जरूरी है। कांच का टुकड़ा पार हो जाने देता है; पारदर्शी है। सफेद दीवाल है; वह लौटा देती है। काला पत्थर है, वह पी जाता है। कांच है, वह पार हो जाने देता है।
इसलिए मैं... रामायण में जो कथा है कि वह सीता को चुराकर ले गया, फिर उसने अशोक वाटिका में उन्हें रख दिया, उन्हें छुआ भी नहीं। असली कंजूस छूता भी नहीं। धन को छूता भी नहीं; बस उसको रखकर तिजोड़ी में बैठ जाता है। उसने सीता
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