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जिन सूत्र भागः1
को ही तोड़ता चला जाता है।
से प्रेम हो जाए, और सामान न हो तो कैसे प्रेम करे! 'आत्महितैषी पुरुषों ने सभी तरह की जीवहिंसा का परित्याग | लेकिन स्त्रियों के अनुभव से भी यह पता चला कि उनको भी किया है।' उन्होंने किसी भी तरह की हिंसा को अपने जीवन में इसमें रस आया है। चाहे हिम्मत न रही दुबारा इस आदमी के बचाया नहीं।
| पास जाने की, लेकिन इस आदमी को वे स्त्रियां कभी भूल न हिंसा का अर्थ होता दूसरे को दुख देने की आकांक्षा। हिंसा सकीं। तो मनोवैज्ञानिकों को पहली दफा एक सूत्र समझ में आना का अर्थ होता है। दूसरे के दुख में सुख लेने का भाव। हिंसा का शुरू हुआ कि स्त्रियों को स्वयं को पीड़ा देने में कुछ रस मालूम अर्थ है: परपीड़न में रस। जिसको आज आधुनिक मनोविज्ञान होता है; जैसे पुरुषों को दूसरों को पीड़ा देने में कुछ रस मालूम सैडिज़म कहता है-दूसरे को पीड़ा देने में रस-उसको ही होता है। महावीर हिंसा कहते हैं।
फिर एक दूसरा आदमी हुआ : मैसोच। उसके नाम पर दूसरा महावीर की हिंसा का सिद्धांत अति मनोवैज्ञानिक है। दुनिया | शब्द बना : मैसोचिज़म। मैसोचिज़म का अर्थ है: स्वयं को दुख में दो तरह के लोग हैं। मनोवैज्ञानिक उनका विभाजन करते हैं। देने में रस लेना। वह खुद को सताता था। वह भी कोड़े मारता एक-जिनको वे सैडिस्ट कहते हैं, जो दूसरे को सताने में रस था, लेकिन खुद को मारता था। और जब तक वह अपने को लेते हैं।
ठीक से पीटता, मारता और खुद चीखने-चिल्लाने न लगता, एक बड़ा लेखक हुआः सादे। उसके नाम पर सैडिज़म निर्मित तब तक उसकी कामोत्तेजना न जगती थी। तो जो स्त्री उसके प्रेम हुआ। उसका एक ही रस था, दूसरों को सताने में। वह प्रेम भी में पड़ जाती, वह स्त्री को कहता कि पहले मुझे मारो, पीटो, मेरी करता किसी स्त्री को तो द्वार-दरवाजे बंद करके पहले तो उसकी छाती पर नाचो। जैसे काली नाचती है शिव की छाती पर, ऐसा पिटाई करता, कोड़े मारता, लहूलुहान कर देता। वह चिल्लाती | मैसोच कहता कि पहले मेरी छाती पर नाचो, मुझे रौंदो। जब वह | और चीखती, भागती और वह कोड़े मारता। और भागने का | काफी पीटा जाता, और खून बहने लगता और सब तरफ कोड़ों कोई उपाय न था, द्वार-दरवाजे बंद थे। जब तक वह के निशान बन जाते, तब कामोत्तेजना का ज्वार उठता। तब वह चीखती-चिल्लाती न, रोती-भागती न, तब तक उसकी प्रेम कर पाता। ये भी उसके लिए कामोत्तेजना को जगाने का कामोत्तेजना न जागती। ये कमोत्तेजना का उपाय था। जब वह उपाय था। उसके नाम पर मनोवैज्ञानिकों ने दूसरा शब्द बनायाः स्त्री भागने, चीखने-चिल्लाने लगती और लहू बहने लगता, तब | मेसोचिज़म।। उसकी कामोत्तेजना जगती। तब वह उसे प्रेम करता। उसके नाम तो दो तरह के लोग हैं दुनिया में दूसरे के दुख में रस लेनेवाले पर सैडिज़म शब्द निर्मित हुआ। वह जेल में मरा, क्योंकि अनेक और स्वयं के दुख में रस लेनेवाले। स्त्रियों के साथ उसने यही किया।
तुम जिनको त्यागी, महात्मा कहते हो, उनमें से अधिक तो लेकिन एक बड़े आश्चर्य की बात पता चली कि जिन स्त्रियों ने मेसोचिस्ट हैं, बीमार हैं। वास्तविक स्वस्थ आदमी न तो दूसरे भी दि सादे से प्रेम किया, उनको फिर किसी दूसरे का प्रेम कभी न को दुख देने में रस लेता है, न खुद को दुख देने में रस लेता है।
दुबारा हिम्मत न की उसके पास जाने की, दुख में रस नहीं लेता-स्वस्थ आदमी का लक्षण है। दुख में लेकिन फिर सब प्रेम फीके पड़ गए। यह भी थोड़ी हैरानी की | रस लेने का अर्थ हुआः परवर्शन; कुछ विकृति हो गई; कहीं बात हुई। जैसी उत्तेजना उसने जगाई, जैसा तूफान उसने खड़ा | कुछ गड़बड़ हो गई बात। | कर दिया, वैसा फिर कोई भी न कर पाया। दि सादे तो अपना फूल में कोई रस ले, यह समझ में आता है लेकिन काटों में
बैग साथ में लेकर चलता था-कहां कौन मिल जाये, क्या कोई रस लेने लगे...। फूल को कोई अपने हाथों पर रखे, पता! उस बैग में, जैसे डाक्टर लेकर चलता है, उसका सब | आंखों की पलकों से छुआए, समझ में आता है। फूल की माला साज-सामान होता था। कोड़े, कांटे, चुभाने के सामान, सब बनाकर अपने गले में डाल ले, समझ में आता है। सामान लेकर चलता था। कब कहां कोई स्त्री मिल जाए, किसी| लेकिन कांटों को कोई अपने में चुभाने लगे और कांटों का हार
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