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सम्यक ज्ञान मक्ति है
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तुमने कभी खयाल किया! गांव में कोई मर जाता है, फिर जैसे देखा, रामलीला होती है, कोई आदमी राम बन जाता है, उसके खिलाफ कोई भी नहीं बोलता। सभी कहते हैं : 'स्वर्गीय | तो लोग उसके पैर छूते हैं। क्या अंधापन है! जानते हैं हो गये।' पूरा गांव उनके खिलाफ रहा हो भला, और सभी भलीभांति, गांव का छोकरा है। लेकिन उसके पैर छूते हैं। जानते हैं कि अगर नर्क कहीं है तो वे निश्चित पहुंच गये; या | राम-नाम की ऐसी ग्रंथि बंध गई है। नाटक में राम बना है, तो भी अगर कहीं स्वर्ग है और ये पहुंच गये तो नर्क बनाकर पैर छूते हैं, फूल चढ़ाते हैं, शोभा यात्रा निकलती है। अंधापन छोडेंगे—मगर कहते हैं. स्वर्गीय हो गये।
कैसा गहरा है! मुर्दा जब कोई हो जाता है, तो तुम देखते हो, कैसी लोग स्तुति | मेरे पास लोग आते हैं। अब जैसे कि मैं जिन-सूत्र पर बोल करते हैं, उसके गुणगान करते हैं कि बड़े महापुरुष थे, अंधेरा छा रहा हूं, तो जैन आ गये हैं। मैं जो बोल रहा हूं वही बोल रहा हूं; गया, दीया बुझ गया; यह पूर्ति अब कभी हो न सकेगी जो जगह | न मुझे जिन-सूत्र से कुछ लेना है, न शिव-सूत्र से कुछ लेना है। खाली हुई!
मैं शिव-सूत्र में भी यही बोलता हूं, मगर तब जैन नहीं आते: मुल्ला नसरुद्दीन ने एक मित्र को फोन किया। पत्नी फोन पर 'शिव-सूत्र है, अपने को क्या लेना-देना है!' हिंदू आते हैं, वे आयी। मुल्ला ने घबड़ाकर पूछा कि 'कहां हैं, पति कहां हैं?' कहते हैं, 'महाराज! गीता पर फिर कब बोलेंगे?' गीता ही उसने कहा, 'ऐसे क्या घबड़ा रहे हो? क्या मामला है? | बोल रहा हूं। उसी के गीत गा रहा हूं। मगर नहीं, शब्द की पकड़ स्नानगृह में स्नान करते हैं।' मुल्ला ने कहा, 'फिर ठीक। है। बस शब्द की पकड़ है। लकीरों की पकड़ है। तुम्हें अगर मैं क्योंकि गांव में कई लोगों से मैंने उनकी प्रशंसा सुनी है, मैंने हीरा भी दूं और कहूं कंकड़-पत्थर है, तो तुम कहते हो, क्या समझा कि मर गये।'
करेंगे। और मैं तुम्हें कंकड़-पत्थर भी दूं और कहूं हीरा है, तो तुम क्योंकि बिना मरे तो कोई किसी की प्रशंसा करता ही नहीं है। कहते हो, लायें सम्हालकर रख लें। जिंदा की निंदा है, मुर्दे की प्रशंसा है। क्योंकि मुर्दे के साथ तुम तुम शब्दों से जीते हो? शब्द सत्य हैं? शब्दों से थोड़ा अपना समझौता कर लेते हो।
जागो। शब्दों की परंपरा होती है, सत्यों की कोई परंपरा नहीं। जिंदा के साथ समझौता नहीं कर पाते।
और पूछते हो, 'क्या हानि ही हानि हुई, या लाभ भी हुआ?' तुम यह मत सोचना कि महावीर और बुद्ध की तुम जो इतनी दुकानदारी कब मिटेगी तुम्हारी? तुम हानि-लाभ का ही प्रशंसा करते हो, वह कोई धर्म की प्रशंसा है—वह मुर्दा, मृत्यु | हिसाब करते रहोगे? धर्म का कोई संबंध हानि-लाभ से नहीं की प्रशंसा है। जब जीवित थे तो तुम्हीं ने इन पर पत्थर फेंके। है। धर्म का संबंध दोनों के त्याग से है। हानि भी नहीं, लाभ भी तुम जब कहानी पढ़ते हो कि किसी ने महावीर के कानों में खीले नहीं। क्योंकि लाभ के पीछे हानि छिपी है, हानि के पीछे लाभ ठोक दिये, तमने कभी सोचा कि यह तम भी हो सकते हो जिसने छिपा है-वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। खीले ठोके हों? तुमने कभी फिर से सोचा कि अगर महावीर धर्म का संबंध उस परम जागरण से है, जहां तुम कहते हो, आज आ जायें और बाजार में तुम्हें मिल जायें, तो तुम क्या अब न हानि की कोई चिंता है, न लाभ की कोई आकांक्षा है। धर्म व्यवहार करोगे? अगर नंग-धडंग 'ब्लू डायमंड होटल' के | से कोई हानि-लाभ थोड़े ही होता है। धर्म से तो तम हानि-लाभ सामने खड़े हुए मिल जायें, तो तुम क्या व्यवहार करोगे और कोई से मुक्त होते हो। वह चिंताधारा ही गलत है। अगर उस बतानेवाला न हो कि ये महावीर हैं? तो पहला तो काम, तुम | चिंताधारा से चले, तो जो तुम्हारी मर्जी, वही तुम खोज लोगे। पुलिस में इत्तला करोगे। तुम सम्मान करोगे? तुम झुककर पैर अगर तुम्हें हानि खोजनी है तो परंपरा की हानि खोज लोगे। छुओगे? हां, अगर कोई कह दे कि महावीर हैं, भगवान महावीर | अगर तुम्हें लाभ खोजने हैं, तुम लाभ खोज लोगे। आ गये, तो शायद झुक भी जाओ, क्योंकि भगवान महावीर एक आदमी ने एक किताब लिखी है। पश्चिम के मुल्कों में शब्द के साथ तुम्हारा बड़ा लगाव बन गया है। वह तो कोई और तेरह का आंकड़ा बुरा समझा जाता है। तो बड़ी होटलों में तेरहवीं भी खड़ा हो जाये...।
मंजिल ही नहीं होती, क्योंकि वहां कोई ठहरता नहीं तेरहवीं
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