________________
जायेगी। शायद ऊपर-ऊपर से तो सब रौनक हो जायेगी, आयेंगे, पूजा कर लेंगे, दान कर देंगे — कुछ कर लेंगे; लेकिन भीतर-भीतर अंधेरा हो जायेगा।
अभी तो कर लो।
'घाव को छोटा, आग को तनिक...।' छोटी-सी चिनगारी महलों को जला देती है।
' और कसाय को अल्प मान...।' क्रोध है, लोभ है, माया-मोह है— कसाय है। 'कसाय' शब्द महावीर का बड़ा बहुमूल्य है - जिससे तुम कसे हो, जिससे तुम बंधे हो, जो तुम्हारा बंधन है। जैसे हिंदू-शास्त्र में 'पशु' शब्द है। जो पशु का अर्थ है वही जैन - शास्त्रों में कसाय का अर्थ है। पशु का अर्थ होता है : जो पाश में बंधा है। पशु यानी पाश में बंधा बंधन में पड़ा । पशु का अर्थ सिर्फ जानवर नहीं है। पशु का अर्थ है : जो बंधा है, चारों तरफ जिसके जंजीरें हैं। जो बंधा है, वह पशु । जो मुक्त हुआ, वही मनुष्य है। तो सभी मनुष्य दिखाई पड़नेवाले लोग मनुष्य नहीं हैं। काश ! मनुष्यता इतनी सस्ती होती दिखाई पड़ने से मिल जाती।
महावीर साधारण ऋण की बात नहीं कर रहे हैं; वे तो उदाहरण हैं। लेकिन जीवन में हम ऐसे बहुत ऋण लिये हैं। हमारा सारा जीवन ऋण से भरा है। महावीर तो कहते हैं, परमात्मा से भी मत लेना । लेने की आदत ही मत डालना। क्योंकि आदत बढ़ती है। बीज वृक्ष होता है। आज थोड़ा लोगे, कल और थोड़ा ज्यादा लोगे, परसों और थोड़ा ज्यादा लोगे - भिखमंगे हो जाओगे। यहां तो सम्राट भी भिखमंगे हैं; लेते चले जाते हैं।
महावीर कहते हैं, ऋण लेना ही मत। और जब बीज की तरह छोटा अंकुर उठे, भीतर भाव उठे, पहली लहर उठे, तभी रोक | देना | घाव को छोटा मत मानना, क्योंकि छोटे-छोटे घाव बड़े होकर नासूर हो जाते हैं। जो उन्हें प्रथम चरण में रोक देता है, वही रोक पाता है।
महावीर कहते हैं, घाव बड़ा हो जाये, फिर चिकित्सा करने की चिंता में पड़ोगे; बड़ी आसानी से घाव को रोका जा सकता है, जब वह बहुत छोटा है, या जब अभी पैदा ही नहीं हुआ । पैदा होने के पहले ही मार देना ।
क्रोध की लहर उठती है— एक घाव उठा आत्मा में। तुम कहते हो, आज तो कर लें, कल से न करेंगे। अब आज तो जो हो गया, हो जाने दो! क्रोध करके तुम पछताते हो; निर्णय भी लेते हो, कल न करेंगे। लेकिन जब क्रोध उठता है, तब तो तुम कर ही लेते हो। और फिर तुम कहते हो, यह तो छोटा-सा क्रोध है, कोई युद्ध तो खड़ा नहीं किया, किसी की जान तो ली नहीं। दो कड़े शब्द कह दिये तो क्या बिगड़ गया ? और फिर, बिना कड़े शब्द कहे कहीं काम चला है! कहीं संसार चला है! यहां अगर बुद्ध बनकर बैठ गये तो लोग बुद्ध समझेंगे। यहां जोर-जबर्दस्ती की 'दुनिया है। यहां अगर हमला न किया तो दूसरे लोग हमला कर देंगे। यहां अगर किसी ने आंख दमकाई और उसको जवाब न दिया, तो सभी लोग आंख दमकाने लगेंगे। फिर तो जीना मुश्किल हो जायेगा।
तुम बहाने खोज लेते हो। तुम तरकीबें खोज लेते हो। फिर तुम कहते हो, इतना सा तो है, इसमें क्या बिगड़ जायेगा ? कौन महानर्क हुआ जा रहा है, कौन सा महापाप हुआ जा रहा है ! छोटा है, क्षमा मांग लेंगे, प्रार्थना कर लेंगे, गंगा स्नान कर
Jain Education International
अध्यात्म प्रक्रिया है जागरण की
नहीं, जिनके बंधन गिर गये, जिन्होंने अपनी पशुता काट दी, पाश काट डाले, जो मुक्त हुए — वही मनुष्य हैं। जो मन को उपलब्ध हुए, वही मनुष्य हैं। जो मनु बने, वही मनुष्य हैं।
जैनों का शब्द 'कसाय' वही अर्थ रखता है— जो बांध ले, कस दे, जो बांधती चली जाये और तुम सिकुड़ते जाओ और छोटे होते जाओ, और बंधन बोझिल होते चले जायें।
'कसाय' को अल्प मान, विश्वस्त होकर मत बैठ जाना । अल्पता तो धोखा है।
यह तो तरकीब है ‘कसाय' की तुम्हारे भीतर प्रवेश की। यह तो बीमारी का उपाय है तुम्हारे भीतर घर बनाने का । यह तो बीज का ढंग है पृथ्वी के गर्भ में प्रवेश करने का ।
थोड़ा सोचो कि बीज बहुत बड़ा होता, असंभव था वृक्षों का होना ! उतना बड़ा बीज पृथ्वी में प्रवेश कैसे करता ? बीज बड़ा छोटा है, यह वृक्षों की तरकीब है। बड़ा छोटा बीज बनाते हैं। बड़े से बड़ा वृक्ष भी बड़ा छोटा-सा बीज बनाता है। कोई भी रंध्र, कोई भी जरा-सा छेद पाकर घुस जायेगा पृथ्वी में । पृथ्वी को पता भी न चलेगा। लेकिन अगर जितने बड़े वृक्ष हैं, इतने ही बड़े उनके बीज होते, तो वृक्ष खो जाते। कहां से पृथ्वी में प्रवेश होता? इतनी बड़ी रंध्रे, इतने बड़े छिद्र कहां खोजते ?
बीज, वृक्ष कितना ही बड़ा हो, छोटे ही बनाता है। छोटे में
For Private & Personal Use Only
231
www.jainelibrary.org