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RAMA
अध्यात्म प्रक्रिया है जागरण की
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नहीं। अगर खरीदने कभी गये ही नहीं तो खीसे में रुपया था या नहीं; क्योंकि हो कैसे सकती थी? चीज तो प्रगट तब होती है नहीं, बराबर है।
जब तुम देते हो। आदान-प्रदान में धन प्रगट होता है। मुट्ठी में लोभी बड़ा अदभुत आदमी है। वह रुपया तो इकट्ठा करता है, बंद, तो मर जाता है, होता ही नहीं। क्या फर्क पड़ता है कि तुम्हारे लेकिन भोगता नहीं। तो लोभी के पास धन होकर भी लोभी पास एक लाख रुपया तिजोड़ी में था या नहीं था? तिजोड़ी बंद निर्धन ही होता है; क्योंकि धन का तो पता ही तब चलता है...। रही, तुम जीये तिजोड़ी के बाहर, मरे तिजोड़ी के बाहर। लाख रुपया धन थोड़े ही है। जिस क्षण तुम रुपये को खर्च करते हो, रुपया बंद था कि नहीं था बंद, क्या फर्क पड़ता है? कोई भी तो उस क्षण धन बनता है।
फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ सकता था, अगर तुम बांटते। लोभी इसे थोड़ा समझना। तुम्हारे खीसे में एक रुपया पड़ा है। इसमें | | बांटता नहीं। बाहर के धन को ही नहीं, जब बाहर के धन को ही कई चीजें छिपी हैं: चाहो तो एक आदमी रातभर मालिश नहीं बांटता तो भीतर के धन को क्या खाक बांटेगा? जब क्षुद्र करे-इस एक रुपये में छिपा पड़ा है। अब एक आदमी को रुपये नहीं बांट सकता, तो जीवन की महिमा क्या बांटेगा? खीसे में रखकर चलो, बहुत वजन हो जायेगा, भारी पड़ेगा। ठीकरे नहीं बांट सकता, तो हृदय कैसे लुटायेगा? और प्रेम के चाहो तो गिलासभर दूध पी लो, इस रुपये में वह छिपा पड़ा है। लिए तो चाहिए हृदय लुटानेवाला, बांटनेवाला, देनेवाला। चाहो तो जाकर तीन घंटे फिल्म में बैठ जाओ। चाहो तो होटल में प्रेम है बांटने की कला। लोभ है इकट्ठा करने की कला। मगर भोजन कर लो। चाहो तो किसी को दान दे दो, किसी भूखे का | तुम जो इकट्ठा करते हो, वह व्यर्थ है। इसलिए लोभी से ज्यादा पेट भर जाये। हजार संभावनाएं हैं एक रुपये में। यही तो रुपये | दरिद्र कोई भी आदमी नहीं है। देखना, कभी देते वक्त उस पुलक की खूबी है।
| को, उस उमंग को! उस घड़ी को गौर से देखना, जब तुम कुछ रुपया बड़ा अदभुत साधन है! क्योंकि अगर तुम्हें एक ही चीज देते हो! एक पैसा हो कि लाख रुपया हो, इससे कुछ फर्क नहीं पकड़नी हो....तो तुम्हें एक आदमी से अगर मालिश करवानी है पड़ता। वह रुपया न भी हो, इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। तो आदमी रख लो, लेकिन फिर उस आदमी का तुम दूसरा | तुमने किसी का हाथ ही प्रेम से हाथ में ले लिया हो, तुम किसी के उपयोग न कर सकोगे। नाश्ता करना चाहो तो क्या करोगे? | पास ही दो क्षण गहरी सहानुभूति से बैठ गये हो। तुम एक फूल, सिनेमा देखने जाना चाहा तो क्या करोगे? रुपया बड़ी अनूठी जंगली फूल रास्ते के किनारे से तोड़कर किसी को दे दिये
चीज है! मनुष्य की बड़ी गहरी ईजादों में एक ईजाद है रुपया। हो–उस घड़ी जरा जागकर देखना, क्या घटता है! जब तुम | इसमें सब चीजें समाई हैं। लेकिन अभी कोई भी चीज प्रत्यक्ष कछ देते हो, तब तम्हारे भीतर कैसा आविर्भाव होता है। कैसा
नहीं है, सब अप्रत्यक्ष है। अभी कोई भी चीज वास्तविक नहीं है, प्रसाद ! कैसा बरसाव हो जाता है! सिर्फ संभावना है। इसलिए तो अनंत संभावनाएं रुपये में छिपी इसलिए ज्ञानियों ने कहा है, जब तुमसे कोई कुछ लेने को राजी हैं। इसलिए तो लोग रुपये के लिए इतने पागल हैं; क्योंकि हो जाये तो उसका धन्यवाद भी करना। उसे देना तो, साथ में रुपया तिजोड़ी में है तो अनंत संभावनाएं हाथ में हैं।
दक्षिणा भी देना। दक्षिणा यानी धन्यवाद में भी कुछ देना। लेकिन रुपया बिलकुल खाली है, जब तक उसका उपयोग न क्योंकि अगर वह इनकार कर देता तो तुम्हारा धन, धन न हो करो-है ही नहीं रुपया। उसका कोई मतलब नहीं है। तिजोड़ी | पाता। तुमने एक पैसा जाकर किसी गरीब को दे दिया, उस में बंद है तो व्यर्थ है। रुपये की सार्थकता तभी है, जब वह तुम्हारे गरीब ने लेकर तुम्हारे पैसे को पैसा बनाया; उसके पहले वह हाथ से दूसरे हाथ में जाता है। बीच में रुपया धन होता है। देने में पैसा नहीं था। उस गरीब ने उसको धन बनाया। धन्यवाद कौन धन है। भोगने में धन है। रोकने में तो धन मिट्टी हो जाता है। किसका करे?
और यह सारे जीवन के धन के संबंध में सही है। वही चीज पुराने शास्त्र कहते हैं कि तुम उसे धन्यवाद में भी अब कुछ तुम्हारे पास है जो तुम दे देते हो। यह बड़ा विरोधाभास लगेगा। देना, कि तेरी बड़ी कृपा, तू इनकार भी कर सकता था; तू कहता, जो तुम्हारे पास है और तुमने कभी भी न दी वह तुम्हारे पास थी ही नहीं लेते-फिर?
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