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जिन सूत्र भाग
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प्रेम की दुनिया में, जो लेनेवाला है वह भी कुछ दे रहा है। यही है, खूब दिया है। उनके पास खूब था, खूब है। हर रिश्तेदार को तो प्रेम का मजा है! जो लेनेवाला है वह भी कुछ दे रहा है। उन्होंने लखपति बना दिया है। हर मित्र को लखपति बना दिया देनेवाला ही नहीं दे रहा है, लेनेवाला भी दे रहा है। दोनों दे रहे है। जिसके साथ भी उनका संबंध रहा है, वह जल्दी ही लखपति हैं। और कोई घाटे में नहीं है। किसी ने धन दिया, किसी ने हो गया। लेकिन जिनने भी उनसे लिया, वे सब उनसे नाराज हैं। लिया: लेकर उसने उस धन की हंडी को स्वीकारा। अभी तक तो वे मुझसे कहने लगे, कि क्या हो गया। मेरा दुर्भाग्य कैसा हुंडी थी, अब धन हुई। उसने तुम्हें धनी बना दिया। तुम्हारी दया है? मैंने क्या कमी की, मेरा कसर क्या है? को स्वीकार करके तुम्हें दयालु बना दिया। तुम्हारे प्रेम को मैंने कहा, कसर तुम्हारा यह है, कि तुमने सिर्फ दिया और स्वीकार करके तुम्हें प्रेमी बना दिया। तुम्हारे हाथ से जब देने की उनको तुमने देने का कभी मौका नहीं दिया। तुम थोड़ा उनको भी घटना घटी, उस क्षण तुम्हारे हृदय में कोई फूल खिल गया। मौका देते। लेन-देन होता तो ठीक था। तुमने दिया ही दिया। देकर आदमी धन्यभागी होता है।
और तुम अहंकारी हो। और तुम लेने पर राजी नहीं हो। तुम दाता लोभी प्रेम नहीं कर सकता। क्योंकि प्रेम की यात्रा तो बिलकुल बने रहना चाहते हो।। उलटी है; वह बांटने की है और देने की है। लोभी सिर्फ रोकता तो अगर तुम दाता ही रहोगे तो जिसको तुमने दीन बना दिया है। लोभ एक तरह की कब्जियत है, बीमारी है।
देकर, वह अगर नाराज हो तो आश्चर्य क्या? वह अगर तुम्हें लो भी, दो भी-जीवन लेना-देना है।
क्षमा न कर सके तो आश्चर्य क्या? वह तुमसे बदला लेगा। अब एक और बात तुमसे कह देना चाहता हूं: कुछ लोगों को | तुमने उसके अहंकार को बड़ी चोट पहुंचा दी। ऐसी भ्रांति पकड़ जाती है या तो वे कहते हैं कि हम देंगे नहीं; मैंने कहा, कभी उनको भी मौका दो। धन की तुम्हें जरूरत या वे कहते हैं, हम लेंगे नहीं। लोभी हैं: पहले धन को पकड़ते नहीं; लेकिन हजार और चीजों की जरूरत है। जिस मित्र को थे; वे कहते थे कि हम देंगे नहीं। फिर समझ में आया कि यह तुमने लाखों दिये हैं, कभी उससे इतना ही कह दिये कि आज मुझे धन तो सब मिट्टी हुआ जा रहा है, यह तो पकड़ से ही मिट्टी हुआ | जरा कार की जरूरत है, भेज दो। वह कार तुम्हारी ही दी हुई है, जा रहा है, तो वे कहते हैं, हम देंगे, अब लेंगे नहीं। तुम ऐसे लेकिन उसे भी तो थोड़ा मौका दो कि तुम्हारे लिए कुछ कर सके। आदमी को धार्मिक कहते हो। यह आदमी धार्मिक नहीं है। यह पर वे कहने लगे, मुझे जरूरत ही नहीं है। मेरे पास ऐसे ही अधार्मिक आदमी है; क्योंकि यह किसी दूसरे को मौका नहीं देता काफी है। कि उसकी मिट्टी धन हो जाये। यह कैसी बात हुई ? परम 'कभी तुम बीमार पड़ते हो, किसी मित्र को फोन करके कहो धार्मिक तो वह है जो लेने-देने में कुशल है, दोनों में कुशल है। कि आओ, मेरे पास बैठ जाओ; तुम्हारा होना मुझे सुख देगा। यह तो धार्मिक न हुआ, अहंकारी हुआ। यह कहता है, हम तो यह भी तुमने कभी नहीं किया। तुम कुछ तो करो। तुम्हारे बेटे सिर्फ देंगे, हम ले नहीं सकते—मैं और लूं!
की शादी हो तो अपने मित्रों को कहो कि आओ, तुम्हारे बिना एक बहुत बड़े धनी व्यक्ति हैं, मेरे मित्र हैं। एक दफा मेरे साथ शादी न हो सकेगी। कुछ तो करो। तुम बिलकुल पत्थर की तरह यात्रा पर गये तो अपने दिल की बातें खोलने लगे। काफी समय हो। तुम देते तो हो, लेकिन देना भी तुम्हारा अहंकार से भरा है; तक साथ था, तो छिपा न सके; कुछ-कुछ बातें करने लगे। एक क्योंकि लेने के लिए तुम्हारा हाथ कभी नहीं फैलता। इसलिए उन्होंने अपने बड़े दिल की, दुख की बात कही कि 'मैंने अपनी जिसको तुम देते हो, वही तुम पर नाराज है। जिसको तुम देते हो, जिंदगी में अपने सब रिश्तेदारों को खूब दिया, मित्रों को दिया। वही अनुभव कर रहा है कि तुमने उसे नीचे गिराया। तुमने हाथ
और यह सच है, मैं जानता हूं, उन्होंने दिया। लेकिन कैसा मेरा सदा ऊपर रखा; दूसरों के हाथ सदा नीचे रखे।' अभाग्य है कि जिनको भी मैं देता हूं, वे कोई भी मुझसे प्रसन्न मेरे लिए धार्मिक आदमी वह है जो तुम्हें देता भी है और तुमसे नहीं!' और यह भी मैं जानता हूं कि जिनको भी उन्होंने दिया है, | लेता भी है-और लेन-देन बराबर रखता है। कोई क्षुद्र-सी वे सब उनसे नाराज हैं। और वे झूठ नहीं कह रहे हैं; उन्होंने दिया चीज तुमसे ले लेता है। मगर तुम्हें मौका देता है देने का भी।
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