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Soilan
Jodhara be
Sancer
कल्प की अंतिम निष्पत्तिः समर्पण
प्रयोगशाला बनाई गई है, जो परिपूर्ण रूप से साउंड-प्रूफ है, सौ उड़ते पत्ते तुम्हें भ्रम दे जाते हैं कि शायद आ गया। हवा के झोंके प्रतिशत। कोई आवाज, किसी तरह की आवाज भीतर नहीं वृक्षों में सरसराहट करते हैं और तुम्हें लगता है, शायद आ गया! आती। तो वह गया। वह जानना चाहता था कि परम सन्नाटा तुम चौंक-चौंक उठते हो। तुम चौबीस घंटे तने रहते हो कि कैसा होता है। क्योंकि संगीतज्ञ था और परम सन्नाटे से पहचान | शायद अब आये, अब आये, पता नहीं कब आये! और कहीं चाहता था। क्योंकि संगीत भी उसी तरफ ले जाता है। वह भीतर | ऐसा न हो कि वह आये और तैयारी अधूरी हो! तो तुम राह पर गया तो वह बड़ा हैरान हुआ : बिलकुल सन्नाटा था, लेकिन दो खड़े राह देखते रहते हो! वह तुम्हारे घर में बैठा है। वह तुम्हारे आवाजें आ रही थीं। वह साफ-साफ सुन सका। उसने, जो होने से पहले तुम्हारे घर में बैठा है। मेजबान के पहले मेहमान आदमी उसे दिखा रहा था प्रयोगशाला, उससे पूछा कि तुम तो आ गया है। घर आओ! तुम उसे भीतर बैठा पाओगे। कहते हो कि यह सौ प्रतिशत साउंड-प्रूफ है, ध्वनि किसी तरह बोधिधर्म जब ज्ञान को उपलब्ध हुआ तो कहते हैं, वह बड़े जोर की यहां नहीं आ सकती; लेकिन मैं दो आवाजें सुन रहा हूं। वह से खिलखिलाकर हंसा। उसके आसपास और भी साधक थे। जो साथ था, हंसने लगा। उसने कहा, वे दो आवाजें आपके| उन्होंने पूछा, 'क्या हुआ?' उसने कहा, 'हद्द हो गई! मजाक भीतर हैं; वे बाहर से नहीं आ रहीं। एक आवाज है तुम्हारे हृदय की भी एक सीमा होती है। जिसकी हम तलाश करते थे, उसे घर की। इतने जोर से धक-धक हो रही थी कि उसे याद भी न रहा में बैठा पाया। जिसे हम खोजने निकले थे, वह खोजनेवाले में ही कि यह हृदय की आवाज हो सकती है। और दूसरी आवाज है | छिपा था। खूब मजाक हो गई।' फिर बोधिधर्म कहते हैं, तुम्हारे खून की गति की; रगों में जो खून दौड़ रहा है, उसका | जिंदगी भर हंसता ही रहा। जब भी कोई परमात्मा की बात कलकल-नाद। ये आवाजें बाहर से नहीं आ रही हैं।
करता, वह हंसने लगता। वह कहता, यह बात ही मत छेड़ो। लेकिन बाहर की आवाजें जब बिलकल बंद थीं, तब ये सुनाई यह बड़े मजाक की बात है। यह बड़ा गहरा व्यंग्य है। पड़ीं। हो तो यह तुम्हें भी रही हैं; उसको भी हो रही थीं, रोज चूकोगे इसलिए नहीं कि वह दूर है—चूक रहे हो इसलिए कि चौबीस घंटे चल रही हैं। लेकिन इतना शोरगुल है कि उसमें ये वह बहुत-बहुत पास है, पास से भी पास है। लौटो! पहले घर धीमी-धीमी आवाजें खो जाती हैं। हृदय की धड़कन, खून की में तलाश कर लें, फिर बाहर निकलें। क्योंकि बाहर तो बड़ा गति, ये भी तुमसे बाहर हैं। एक और आवाज है जहां हृदय की विस्तार है। चांद-तारों तक कहां खोजते रहोगे? घर को तो धड़कन भी बंद हो जाती है और खून की गति भी बंद हो जाती है, । पहले खोज लो। वहां न मिले तो फिर बाहर जाना। लेकिन तब सुनी जाती है। उसको हमने ओंकार कहा है, अनाहत-नाद जिसने भी घर में खोजा है, उसे पा ही लिया है। इसका अपवाद कहा है, प्रणव कहा है।
कभी भी नहीं हआ है। मैं सुन रहा हूं तेरे दिल की धड़कनें पैहम है तेरा दिल मुतजस्सिस कहीं जरूर मेरा।
तीसरा प्रश्न: आप मुझे बहुत-बहत अच्छे लगते हैं। मझे -और इससे मुझे ऐसा लगता है कि मैं ही तुझे नहीं खोज आपके प्रेम में रोने के अतिरिक्त कुछ नहीं सूझता। कैसे कहूं रहा, तेरा दिल भी मेरी तलाश कर रहा है—चूंकि तेरी आवाज मैं उस प्रेम को! और आश्चर्य है कि मैं अकसर आपके प्रति अपने हृदय में सुनता हूं। तुम्हारे भीतर उसी ने रूप धरा है। उसी अनाप-शनाप भी बकता हूं; कभी-कभी गाली भी देता हूं। ने तुम्हारे जीवन में रंग भरा है। जिसकी तुम तलाश कर रहे हो, यह क्या है? वह तुम्हारे घर में आकर बैठा है। तुम दरवाजे पर आंख लगाये अतिथि की राह देख रहे हो-और अतिथि कभी घर के बाहर मैं एक बार मुल्ला नसरुद्दीन के घर मेहमान था। वह अपने गया नहीं। तुम बाहर बैठे हो, आंगन में खड़े हो, राहगीरों को बेटे को समझा रहा था, डरा रहा था; क्योंकि बेटा भद्दी गालियां देख रहे हो कि कब आयेगा मेहमान, वह प्यारा कब आयेगा! | पास-पड़ोस से सीखकर आ जाता था। तो उसने एक तख्ती पर हर राहगीर की आवाज में तुम्हें भनक आती है, शायद आ गया! | लिखकर कमरे में बेटे के टांग दिया था, कि अगर तूने
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