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जिन सूत्र भाग: 1
है, पंक्ति है, रेखा है।
जब कोई व्यक्ति तुमसे कुछ पूछता है, तब तुम दो तरह का व्यवहार कर सकते हो या तो इरछे-तिरछे जाओ, गली-कूचों से घूमो, सीधे न जाओ, सीधी बात न करो, चालबाजी चलो; कुछ कहना चाहते हो, कुछ कहो; कुछ बताना चाहते हो, कुछ बताओ ।
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कहते हैं, मुल्ला नसरुद्दीन बचपन से ही उलटी खोपड़ी था उलटी खोपड़ी यानी उससे जो भी कहो, वह उससे उलटा करेगा | तो मां-बाप समझ गये थे। क्या करोगे, अब उलटी खोपड़ी है...। तो उसको वे वही कहते जो वे चाहते थे कि वह न करे । और जो वे चाहते कि वह करे, उससे उलटा कहते। जैसे अगर उनको चाहिए कि वह चुप बैठे तो वे कहते, 'बेटा! जरा शोरगुल कर ।' तो वह चुप बैठ जाता। समझ गये एक दफे गणित, तो वे वैसे ही चलते।
एक दिन बाप बेटे के साथ लौट रहा था, नदी पार कर रहे थे । गधे पर शक्कर के बोरे लादे हुए थे। बीच नदी में बाप ने देखा कि बोरे बाईं तरफ झुके जा रहे हैं। नसरुद्दीन के गधे पर जो बोरे
बाईं तरफ झुके जा रहे हैं। तब वह चाहता था कि बेटा उन्हें दाईं तरफ थोड़ा सरकाये। लेकिन वैसा कहो कि दाईं तरफ सरकाओ तो तो वह कभी सरकायेगा नहीं। तो उसने कहा, 'बेटा, बोरों को जरा बाईं तरफ सरका।' बाईं तरफ वे खुद ही सरक रहे थे। मगर उस दिन चकित होकर बाप को देखना पड़ा कि बेटे ने उनको बाईं तरफ ही सरका दिया । सब बोरे नदी में गिर गये। बाप ने कहा, 'यह तेरा व्यवहार आज कुछ संगत नहीं!' उसने कहा, 'अट्ठारह साल का हो गया; अब मैं भी समझने लगा तरकीब । अब तो तुम जो कहोगे, उसके उलटा न करूंगा; अब तो तुम जो चाहते हो, उसके उलटा करूंगा।'
दो बिंदुओं के बीच जो सीधी रेखा है, वही ऋजुता है । जो कहना है, जो करना है, जो चाहना है - वही कहो। जो कहते हो वही हो जाओ : ऋजुता का अर्थ है । नहीं तो उलटा होता है। तुम जाते हो किसी के पास, तुम कहते हो...। तुम हंस रहे हो इस बात पर, लेकिन अगर खोजोगे तो इस उलटी खोपड़ी को हर खोपड़ी में छिपा हुआ पाओगे। तुम किसी के पास जाते हो, तुम कहते हो कि आप के चरण की धूल हूं, मैं तो कुछ भी नहीं! तुम चाहते यह हो कि वह कहे, 'अरे आप और चरण की धूल ! आप बड़े महापुरुष हैं।' अब समझो कि वह दूसरा आदमी कहे कि बिलकुल ठीक कह रहे हैं आप, चरण की धूल तो हैं ही, इसमें कहने का क्या है ! तो आप नाराज हो जायेंगे कि हद्द हो गई; इस आदमी को शिष्टाचार भी नहीं आता !
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तुम जरा खयाल करना, तुम्हारी जिंदगी में यह उलटी खोपड़ी काफी समायी हुई है। तुम चाहते कुछ और हो, कहते कुछ और हो । यह धोखा फैला चला जाता है
महावीर कहते हैं, 'ऋजुता से माया को. ।' वह जो कपट है, तिरछापन है, उसको ऋजुता से जीत लो। क्योंकि जितने तुम कपट से भरते जाओगे, उतनी जीवन में उलझन होगी; उतना तुम्हारा जीवन पांखों में कट जायेगा ।
सरल व्यक्ति शांत होता है। देखा तुमने ! जब भी तुम झूठ बोलते हो, तभी अशांति होती है। क्योंकि फिर याद रखना पड़ता है झूठ को कि किससे क्या बोले । जो आदमी झूठ ही बोलता रहता है सबसे, उसका जरा हिसाब तो समझो। एक बात तो माननी पड़ेगी, उसकी स्मृति की दाद देनी पड़ेगी। याददाश्त तो देखो! याद रखना पड़ता है। सत्य को याद रखने की कोई भी जरूरत नहीं है । जो व्यक्ति सचाई से जीता है, उसे याददाश्त की जरूरत ही नहीं है; क्योंकि सच हमेशा वही का वही है। लेकिन
लेकिन बाप भी आखिर नसरुद्दीन का बाप ! उसने भी तरकीब तुमने एक से कुछ कहा, दूसरे से कुछ कहा, तीसरे से कुछ निकाल ली। अब बात और भी तिरछी हो गई।
कहा— फिर हिसाब रखना पड़ता है, पहले से क्या कहा, दूसरे से क्या कहा, तीसरे से क्या कहा ।
अगर बाप को चाहिए कि बोरे दाएं तरफ सरकाये जाएं, तो पहले तो वह कहता था कि बाएं तरफ सरकाओ; अब अगर दाएं तरफ ही सरकवाना हो तो कहना पड़ता है कि दाएं तरफ सरकाओ। क्योंकि बेटा सोचेगा, यह बाएं तरफ सरकवाना चाहता है, इसलिए दाएं तरफ सरकवायेगा। अब और तिरछी हो गई बात। गणित और उलझ गया।
मुल्ला नसरुद्दीन दो स्त्रियों के प्रेम में था । बहुत कम लोग हैं जो एक स्त्री के प्रेम में हों । द्वैत हमारा सभी जगह होता है। तो एक स्त्री से कहता है कि तुझसे सुंदर इस जगत में कोई भी नहीं; दूसरी से भी यही कहता है कि तुझसे सुंदर इस जगत में कोई नहीं। दोनों बातें झूठ थीं। कम से कम एक तो झूठ थी ही। एक
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