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JRAILER
अध्यात्म प्रक्रिया है जागरण की
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LEARNER
हुआ। वह भी अमरीका गया, वहां से बिगड़कर आ गया। वह अलग है। महावीर जब कहते हैं, क्षमा करो, तो वे इतना ही कह भी ईसाई हो गया। और मैं धर्मगुरु हैं। कम से कम मेरा लड़का | रहे हैं: समझो कि तुम हो कौन गलती और सही का निर्णय तो होना ही नहीं चाहिए।'
करनेवाले? अपेक्षा मत करो और क्षमा आ जायेगी। तो उन दोनों ने कहा, अब क्या करें? उन्होंने कहा, हम क्षमा क्रोध के विपरीत नहीं है क्षमा क्रोध का अभाव है। परमात्मा से प्रार्थना करें, और क्या कर सकते हैं। उन दोनों ने इसलिए क्षमा करनी नहीं पड़ती; अपेक्षा के गिरते ही हो जाती प्रार्थना की जाकर सिनागाग में, कि हे प्रभु! यह क्या दिखला रहे है। हो? मेरा लड़का...मैं प्राचीन परंपरा से यहूदी हूं, मेरा लड़का | 'क्षमा से क्रोध का हनन करें, नम्रता से मान को जीतें...।' ईसाई हो गया। दूसरे ने कहा, मैं धर्मगुरु हूं। तुम्हारा प्रतिनिधि हूँ | नम्रता का क्या अर्थ है?-अपनी स्थिति को जानना। यह इस पृथ्वी पर। कम से कम मेरा तो कुछ खयाल रखते! मेरा कोई साधना नहीं है, सिर्फ अपने तथ्य को पहचानना ः क्या है लड़का भी ईसाई हो गया।
मेरी स्थिति? सांसों में अटका हूं। सांस बंद हो गई, समाप्त हो और कहते हैं, ऊपर से आवाज आई कि 'तुम बकवास क्या जाऊंगा। स्थिति क्या है? आज हूं, कल नहीं हो जाऊंगा। कर रहे हो? मेरी तो सोचो। मेरा लड़का ईसा मसीह मैंने भेजा अभी जमीन पर चल रहा हूं, कल जमीन मेरे ऊपर होगी। अभी था, वह भी...।'
सबके सिर पर बैठने की कोशिश की है, कल इन्हीं के चरण मेरे अपनी-अपनी अपेक्षाएं हैं। ‘और मैं ईश्वर हूं। तुम तो ऊपर पड़ेंगे। धर्मगुरु ही हो।'
नम्रता का अर्थ है: अपनी वास्तविक स्थिति को जानना कि जहां अपेक्षा है, वहां क्रोध है। क्षमा का अर्थ है : तुमने अपेक्षा | हमारा होना ही क्या है? अहंकार किस बलबूते पर? अपने को छोड़ दी। तुम हो कौन? माना, बेटा तुमसे पैदा हुआ है, लेकिन | 'मैं' कहना भी किस बलबूते पर? एक तरंग है, आई-गई! तुम हो कौन? तुम एक रास्ते थे जिससे बेटा आया। तुमने जगह | 'नम्रता से मान को जीतें, ऋजुता से माया को...।' दी आने की। तुमने बेटा बनाया थोड़े ही है, बनानेवाला कोई __ ऋजुता का अर्थ है : सरलता, प्रामाणिकता, सीधा-सादापन।
और है। तुम तो केवल माध्यम थे, निमित्त थे। तुम निर्णायक तुम्हारे साधु भी तिरछे हैं, वे भी ऋजु नहीं हैं। ऋजुता का तो अर्थ थोड़े ही हो।
है : बच्चे जैसा भोला-भालापन। साधु तो तुम्हारे बहुत अऋजु जो हो जाये, अपेक्षा-शून्य व्यक्ति स्वीकार कर लेता है। उसी हैं, बहुत उलटे हैं। ऋजु नहीं हैं, इरछे-तिरछे हैं, बड़े जटिल हैं। स्वीकार में क्षमा है।
एक-एक बात को गणित से कर रहे हैं। अगर उपवास रखा है तो अब इसे समझना।
हिसाब भी रखा है साथ में कि उपवास किया है। इस साल साधारणतः धर्मगुरु तुम्हें समझाते हैं कुछ ऐसी बात समझाते कितने उपवास किये, वह भी हिसाब है। यह परमात्मा के सामने हैं जिससे लगता है क्षमा क्रोध के उलटी है। वे ऐसा समझाते हैं | पूरे खाते-बही लेकर मौजूद होंगे। इनकी जिंदगी में सरलता नहीं कि तुम क्रोध मत करो, क्षमा कर दो इस आदमी को; इसने पाप है। इनकी जिंदगी में बड़ा गणित है। अगर क्रोध छोड़ा है, किया, क्रोध मत करो, क्षमा कर दो! लेकिन मानते वे भी हैं कि माया-मोह छोड़ा है, तो स्वर्ग पाने की आकांक्षा में छोड़ा है; इसने पाप किया; नहीं तो क्षमा क्या खाक करोगे? जब इसने | लेकिन कुछ पाने की आकांक्षा है। यह छोड़ना सीधा, साफ, कुछ गलती ही नहीं की तो क्षमा क्या करना है? क्षमा तो गलत सरल नहीं है। हो गया, तभी की जाती है। तो फिर क्रोध और क्षमा में एक बात ऋजुता बड़ा बहुमूल्य शब्द है-सीधी लकीर की तरह। दो तो समान रही कि इसने गलती की है। कोई क्रोध करता है गलती | बिंदुओं के बीच जो निकटतम दूरी है, निकटतम दूरी है वह पर, कोई क्षमा करता है गलती पर; लेकिन गलती दोनों स्वीकार लकीर है। निकटतम! अगर जरा लंबा किया तो इरछा-तिरछा कर लेते हैं।
| हो जायेगा। दो व्यक्तियों के बीच जो निकटतम दूरी है, वह मेरी क्षमा का अर्थ और महावीर की क्षमा का अर्थ बिलकुल ऋजुता है। दो बिंदुओं के बीच जो निकटतम दूरी है, वह लकीर
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