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जिन सूत्र भाग: 1
ही रहे।
और एक बार जब इंद्रियां तुम्हारे वश में आ जाती हैं, तो तुम्हारे जीवन में एक प्रसाद पैदा होता है, एक सौंदर्य पैदा होता है— मालिक का सौंदर्य, सम्राट का सौंदर्य । तभी तो हमने फकीरों को पूजा और सम्राटों की फिक्र छोड़ दी। कौन जानता है आज, महावीर के समय में कौन-कौन सम्राट थे ? प्रसेनजित को कौन जानता है? बिंबिसार को कौन जानता है? अगर हम उनका नाम भी जानते हैं तो इसीलिए कि महावीर के जीवन में कहीं-कहीं उनका उल्लेख है। कौन फिक्र करता है उनकी ? चूंकि बिंबिसार महावीर से मिलने आया था, इसलिए उसकी भी याद है; कि प्रसेनजित नमस्कार करने आया था, इसलिए उसकी भी याद है । जो नहीं आए, उनके तो नाम भी खो गए। क्या हुआ ? फकीर इतने मूल्यवान कैसे हो गए? यह नंगा आदमी, जिसके पास कुछ भी न था — जरूर इसके पास कुछ रहा होगा कि सम्राट फीके हो गए। एक दुर्धर्ष बल था । इसने चुनौती स्वीकार की थी। यह हारा नहीं, इसने अपने पुरुषत्व को सिद्ध किया था। इसने अपनी मालकियत की घोषणा कर दी थी। कुछ भी हो जाए, इसने एक बात जारी रखी कि मालिक मैं हूं। होश मालिक है। और होश के अनुसार सब चलना चाहिए। यह बिलकुल ठीक गणित है जीवन का।
अमीरे- दो जहां बन जा, असीरे-खारो- खस कब तक ? नई सूरत से तरतीबे-बिनाए-आशियां कर ले। - दो दुनियाओं के तुम मालिक बन सकते हो। अमीरे-दो जहां बन जा, असीरे-खारो-खस कब तक ? .- यह कांटों में, झाड़ियों में कब तक उलझे रहना ? नई सूरत से तरतीबे-बिनाए-आशियां कर ले। लेकिन फिर तुम्हें एक नई दृष्टि और एक नई शैली खोजनी होगी- अपने घर को बनाने की। नई सूरत से तरतीबे - बिनाए - आशियां कर ले- फिर तुम्हें अपना नीड़ कुछ और ढंग से बनाना होगा। अभी तुमने जो बनाया है, वह गलत है। इसमें गुलाम मालिक हो गया है, मालिक गुलाम हो गया है। इसमें नौकर सिंहासन पर बैठ गए हैं, सम्राट सोया है। उसे पता ही नहीं कि क्या हो रहा है। सम्राट को जगाना होगा।
सम्राट यानी तुम्हारा विवेक। जैसे ही विवेक जगता है उसके साथ-साथ वैराग्य की व्यवस्था आती है। विवेक सो जाता है,
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उसके साथ ही साथ राग का अंधापन आता है। राग से मत लड़ो विवेक को जगाओ। जैसे-जैसे विवेक जगेगा - असली लड़ाई वही है, विवेक को जगाने की।
मुल्ला नसरुद्दीन चोरों से डरता है। नए मकान, नए पड़ोस में रहने गया, तो एक कुत्ता खरीद लाया – उसने कहा बड़े से बड़ा कुत्ता जो मिल सकता था, मजबूत से मजबूत। दुकानदार से पूछा कि 'यह काम आएगा ?' उसने कहा, 'काम से ज्यादा... देखते हो इसको! सम्हालकर रहना । यह खतरनाक है ।' लेकिन जिस दिन कुत्ता खरीदकर लाया, उसी रात चोरी हो गई। बड़ा परेशान हुआ। वापिस भागा हुआ दुकानदार के पास पहुंचा कि यह क्या मामला है। उसने कहा कि इसमें क्या मामला है। यह कुत्ता इतना बड़ा है, इसको जगाने के लिए एक छोटा कुत्ता भी चाहिए। यह सोया रहा, इसको चोर - वोर... यह कोई छोटा-मोटा कुत्ता है! एक छोटा कुत्ता और खरीदो ! वह घबड़ाहट में चीखेगा, चिल्लाएगा तो यह उठेगा; नहीं तो यह उठनेवाला भी नहीं है।
वह तुम्हारे भीतर का जो मालिक है, कितने जन्मों से घर्राटे ले रहा है, सो रहा है! साधना कुछ भी नहीं है, छोटे-छोटे उपाय हैं जिनसे वह सोया हुआ मालिक जगने लगे। इस भांति अगर तुम साधना को देखोगे तो बड़े नए अर्थ खुलेंगे।
महावीर ने महीनों तक उपवास किए हैं। वह कुछ भी नहीं, वह छोटा कुत्ता खरीदना है। उपवास में जब तुम्हें भूख लगेगी, और तुम शरीर की न सुनोगे और शरीर कहेगा, भूख लगी, भूख लगी, भूख लगी और तुम शरीर की न सुनोगे, तो भूख धीरे-धीरे शरीर से उतरकर मन पर आएगी। फिर भी तुम न सुनोगे। मन चीखेगा, चिल्लाएगा, रोएगा, गिड़गिड़ाएगा, हजार उपाय करेगा; समझाएगा कि मर जाओगे; ऐसे भूखे रहे तो क्या होगा तुम्हारा, यह शरीर जीर्ण-शीर्ण हुआ जाता है— तब भी तुम न सुनोगे तो भूख आत्मा तक पहुंच जाएगी। और जब भूख आत्मा तक पहुंचती है तो आत्मा जगती है। तुम शरीर को ही तृप्त कर देते हो, भूख मन तक ही नहीं पहुंच पाती; आत्मा तक पहुंचने का क्या सवाल है ? यह तो चुभाना है तीर का — उस सीमा तक जहां तुम्हारा असली मालिक सोया है।
तो महावीर खड़े ही खड़े साधना करते थे, बैठते नहीं थे, लेटते नहीं थे। क्योंकि वैसे ही नींद गहरी है और अब बैठकर और
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