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जिन सूत्र भागः1
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जो अपने से आती है, तम्हारे आने के कारण आती है. वही छाया। जिनके लिए कोई नाम नहीं, जिनकी कोई अभिव्यक्ति नहीं हो है। मस्ती छाया है।
| सकती। बस इशारे, बस इशारे, इंगित। “एक ओर से निवृत्ति और दूसरी ओर से प्रवृत्ति करना चाहिए। तो महावीर कहते हैं, 'एक ओर से निवृत्ति, दूसरी ओर से असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति।' छाया को बहुत लोगों | प्रवृत्ति करना चाहिए।' यह बड़ा अनूठा सूत्र है। लोग हैं, जो ने धर्म समझ लिया है। वे छाया को लाने की कोशिश में लगे हैं। कहते हैं, प्रवृत्ति करनी चाहिए। चार्वाक हैं, कहते हैं, प्रवृत्ति मूल की फिक्र ही भूल गई है। कोई उपवास कर रहा है और करो, प्रवृत्ति ही सब कुछ है, निवृत्ति की बकवास में मत पड़ना। खयाल ही भूल गया है कि उपवास छाया है, विवेक मूल है। मौत आएगी, सब खो जाएगा, कुछ भी न बचेगा। भोग लो। अगर विवेक को साधा तो उपवास घटेगा। घटता है। आज जो है उसे भोग लो। कुछ भी छोड़ो मत; क्योंकि जिसने सधते-सधते विवेक के एक दिन ऐसी घड़ी आती है कि शरीर की | छोड़ा वह व्यर्थ गया, उसने व्यर्थ समय गंवाया, तो चार्वाक याद ही भूल जाती है। ऐसी महाघड़ी आती है, इतना आनंद कहते हैं कि घी भी पीना पड़े उधार लेकर तो पी लो। ऋणं भीतर होता है कि कौन शरीर की याद करता है!
घृत्वा...! कोई फिक्र नहीं, ले लो ऋण से, क्योंकि कौन चुकाता तुमने कभी खयाल किया, शरीर की याद दुख में ही आती है! है! कौन चुकाने के लिए बच जाता है। मौत सबको मिटा देती दुख के कारण ही आती है। पैर में कांटा गड़े तो पैर का पता है; न कोई लेनेवाला है, न कोई देनेवाला है-सब चलता है। सिर में दर्द हो तो सिर का पता चलता है। सिरदर्द | हिसाब-किताब खतम हो जाता है। सब हिसाब-किताब यहीं गया तो सिर भी गया। जब शरीर पूरा स्वस्थ होता है तो पता ही की बातचीत है। न कोई कभी लौटता; इसलिए न कोई पुण्य है, नहीं चलता। और जब भीतर महाआनंद की घटना घटती है, न कोई पाप। वे कहते हैं, प्रवृत्ति। जब आत्मा स्वस्थ होती है-जरा उसकी कल्पना तो करो! उसे फिर दूसरी तरफ उनके विपरीत लोग हैं। वे कहते हैं, त्याग! कहना ही मुश्किल है। तो शरीर की याद भूल जाती है। न भूख त्याग करो। भोगो मत। फंस जाओगे। नर्क जाओगे। छोड़ो, का पता चलता है, न प्यास का पता चलता है-ऐसा रम जाता क्योंकि छोड़ने का मूल्य है परमात्मा की नजरों में। वे प्रवृत्ति के है चित्त, ऐसा ठहर जाता है। समय रुक जाता है। क्षेत्र भूल | दुश्मन हैं। तो भोगी हैं चार्वाक, फिर त्यागी हैं। जाता है।
अब यह बड़े मजे की बात है कि अगर जैन मुनियों को आज मयाने-कल्ब-ओ-नजर एक मकाम है उसका
समझा जाए तो वे महावीर के अनुयायी सिद्ध न होंगे। वे चार्वाक मुकाम? मरहला? जो भी कुछ है नाम उसका
के दुश्मन सिद्ध होते हैं, लेकिन महावीर के अनुयायी सिद्ध नहीं जमाले ताबिशेरू गर्मिए-खिराम नहीं
होते। वे चार्वाक के विपरीत हैं, यह सच है; लेकिन महावीर के हज़ार ऐसी अदाएं हैं जिनका नाम नहीं।
साथ नहीं है, यह भी सच है। वे कहते हैं, छोड़ो, छोड़ो, छोड़ना -वह एक ऐसी अदा है जिसका कोई नाम नहीं। ही... । एक कहता है, भोगो, भोगो, भोगना ही...। ध्यान भी एक पड़ाव है, वह भी अंत नहीं।
महावीर बड़े संतुलित हैं। वे कहते हैं, 'एक ओर से निवृत्ति, मयाने-कल्ब-ओ-नजर एक मुकाम है उसका
दूसरी ओर से प्रवृत्ति करना चाहिए।' असंयम से निवृत्ति और - इन दोनों आंखों के बीच में एक पड़ाव है ध्यान का। संयम में प्रवृत्ति करनी चाहिए, वे कहते हैं, भोगो-संयम को मुकाम ? मरहला? जो भी कुछ है नाम उसका
भोगो! छोड़ो-असंयम को छोड़ो! भोगो प्रकाश को, छोड़ो -कोई भी नाम दो, पड़ाव कहो, मुकाम कहो।
अंधकार को। भोगो आत्मा को, छोड़ो शरीर को। भोगो विवेक जमाले ताबिशेरू गर्मिए-खिराम नहीं
को, वैराग्य को, बोध को, बुद्धत्व को! त्यागो मूर्छा को, मिथ्या -लेकिन उसे प्रगट करने का उपाय नहीं है।
दृष्टि को, असम्यकत्व को। छोड़ो। हज़ार ऐसी अदाएं हैं, जिनका नाम नहीं।
लेकिन ध्यान रहे, महावीर कहते हैं, निवृत्ति-प्रवृत्ति दोनों दो जिंदगी में ऐसी हजार अदाएं हैं, जिनके लिए कोई शब्द नहीं, पंख की भांति हैं। पक्षी उड़ न पाएगा एक पंख से।
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