________________
तुम पढ़ो, न कुछ प्रारंभ का पता चले, न कुछ अंत का पता चले। जिंदगी है कि बेताल्लुक - सा
एक टुकड़ा किसी कहानी का ।
-अप्रासांगिक, लोग कहे जा रहे हैं। लोग बोले जा रहे हैं। लोग होश में नहीं हैं। तुम समय मत गंवाना। तुम हर घड़ी को अपना होश साधने में लगाना ।
एक और मित्र ने पूछा है कि जब भी आपके पास आते हैं तो कुछ लोग हैं, वे कहते हैं, 'वहां जाने से क्या फायदा? क्या मिलेगा वहां ? वहां कुछ भी नहीं है। सत्य साईंबाबा के पास जाओ, अगर महिमा देखनी है।'
वे भी ठीक कहते हैं। यहां कुछ भी नहीं है। यहां मेरा सारा शिक्षण ही ना कुछ होने के लिए है। वे बिलकुल ठीक कहते हैं। यहां तुम्हें देने का कोई सवाल ही नहीं है; तुम्हारे पास जो-जो होने की भ्रांति है, उसे भी खंडित करना है, तोड़ना है, मिटाना है; तुम्हें भी शून्य की तरफ ले आना है। इतना शून्य हो जाए तुम्हारे भीतर कि कहनेवाला भी कोई न बचे, देखनेवाला भी कोई न बचे तो ही समाधि फलित होगी।
वे बिलकुल ठीक कहते हैं। महिमा देखनी हो तो कहीं और जाना चाहिए। मैं कोई मदारी नहीं हूं। और तुम्हारी किन्हीं वासनाओं को तृप्त करने में मेरी कोई उत्सुकता नहीं है। तुम मुझे महिमावान समझो, ऐसी भी मेरी कोई आकांक्षा नहीं है। तुम्हारी आंखों को मैं दर्पण नहीं बनाना चाहता, जिसमें मैं अपनी तस्वीर देखूं । मैंने अपने को देख लिया है, अब किसी दर्पण की मुझे कोई जरूरत नहीं है।
तो तुम जब मेरे पास आते हो तो यह जानकर ही आना कि खतरे में जा रहे हो। मरने जा रहे हो। क्योंकि जीवन का गहनतम राज मरने की कला में छिपा है। :
प्राचीन शास्त्र कहते हैं : गुरु मृत्यु है । वे बिलकुल ठीक कहते हैं। कठोपनिषद में पिता ने अपने बेटे को यम के पास भेज |दिया - वह गुरु के पास भेजा है। मृत्यु के पास भेजा। क्योंकि जब तक तुम मिटोगे न, तब तक तुम वह न हो सकोगे जो तुम्हें होना चाहिए। यह तुम जो अभी हो गए हो, यह जो गलत ढांचा तुम्हारे चारों तरफ इकट्ठा हो गया है, यह जो तुम समझते हो अभी मैं हूं - यह तुम्हारा वास्तविक होना नहीं है, यह तुम्हारा स्वभाव नहीं, यह तुम्हारा स्वरूप नहीं ।
Jain Education International
जिंदगी नाम है रवानी का
तो लोग ठीक कहते हैं। अगर महिमा देखनी हो, कहीं और जाना चाहिए। अगर महिमा वगैरह देखने से ऊब चुके हो, वैराग्य जगा है, देख ली कि जिंदगी बेकार है, अब और खेल-तमाशा देखने की आकांक्षा नहीं रही है, अब सब खिलौनों से ऊब गए हो, तो मेरे पास आना। उस आखिरी घड़ी में ही मेरे पास आने का कुछ सार है।
तो पहले तो तुम भटक लो। तुम सब के पास हो आओ। तुम सब जगह देख लो। अगर कहीं सत्य मिल जाए तो बहुत अच्छा। अगर न मिले तो फिर मेरे पास आना ।
लोग ठीक ही कहते हैं। लोगों से नाराज होने की कोई जरूरत नहीं है।
क्या मैकदों में है कि मदारिस में वो नहीं
अलबत्ता एक वां दिले- बेमुद्दआ न था ।
बड़ा मधुर वचन है। तथाकथित ज्ञानियों के स्कूलों में कौन-सी चीज की कमी है ? कुछ ऐसी चीज की कमी है जो कि मधुशाला में भी है, लेकिन ज्ञानियों के स्कूलों में नहीं है। क्या मैकदों में है कि मदारिस में वो नहीं !
— मदरसे में जो नहीं है, वह मधुशाला में है। वह क्या है ? अलबत्ता एक वां दिले- बेमुद्दआ न था ।
- निष्काम हृदय, आकांक्षा से रहित हृदय, वासना से शून्य हृदय, तत्वज्ञानियों के मदरसों में भी नहीं है। वहां भी लोग वासना से ही जाते हैं। ईश्वर को भी खोजने जाते हैं ऐश्वर्य की तलाश में। स्वर्ग को भी मांगते हैं सुख की आकांक्षा में। भगवान कभी भजते हैं भय के कारण। बेमुद्दआ न था ! अभी उनके मन की फलाकांक्षा समाप्त नहीं हुई । फलाकांक्षा समाप्त हो, तो ही धर्म से तुम्हारा संबंध जुड़ता है। फलाकांक्षा समाप्त हो, कुछ पाने जैसा न लगे, तो ही परमात्मा पाया जाता है। परमात्मा भी पाने जैसा न लगे, तो ही परमात्मा पाया जाता है। जब तुम परमात्मा को भी चाहने की उत्सुकता में नहीं हो; तुम कहते हो, सब चाह व्यर्थ हो गई; देख लीं सब चाहतें और सभी चाहतें व्यर्थ पायीं; चाह मात्र व्यर्थ हो गयी, अचाह पैदा हुई - बस उसी अचाह में परमात्मा उपलब्ध होता है।
यहां जो महिमा है वह शून्य की है। यहां जो महिमा है वह मृत्यु की है, महामृत्यु की है। और जो मैं तुम्हें सिखा रहा हूं वह बहुत गहरे अर्थों में आत्मघात है- तुम कैसे अपने को मिटा लो, पोंछ
For Private & Personal Use Only
215
www.jainelibrary.org