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| बाधा डालती हो - तो महावीर कहते हैं, छोड़ो यह फिक्र, तुम्हारे लिए भी मार्ग है। जिस दिन तुम बने उसी दिन तुम्हारा मार्ग भी तुम्हारे साथ निर्मित हो गया है। तुम अपना मार्ग अपने साथ लाये हो। ऐसा कोई भी नहीं है जो परमात्मा से चूके। हां, अगर तुम्हारी मर्जी ही चूकने की हो तो परमात्मा बाधा नहीं डाल सकता। जो चूकना चाहता है वही चूकता है। जिसको पहुंचना है वह पहुंच जाता है मैंने सुना है, . एक शराबी बैठा था राह के किनारे और एक | आदमी ने कार रोकी और उसने कहा कि मुझे स्टेशन जाना है, कहां से जाऊं। रास्ता भूल गया हूं। अजनबी हूं यहां ।
शराबी ने झकझोर कर अपने को जरा सजग किया। और उसने कहा, ऐसा करो, पहले बायें जाओ –दो फर्लांग । फिर चौरस्ता पड़ेगा। फिर तुम उससे दायें मुड़ जाना-दो फर्लांग। फिर उसने कहा कि नहीं-नहीं, यह तो गलत हो गया। तुम यहां से | दायें जाओ । चार फर्लांग के बाद मस्जिद पड़ेगी। बस मस्जिद के पास से तुम बायें मुड़ जाना। उसने कहा कि नहीं-नहीं, यह फिर गलत हो गया। अब तो वह अजनबी भी थोड़ा मुश्किल में पड़ा कि यह मामला क्या है। उसने फिर कहा कि तुम ऐसा करो कि जहां से तुम आये हो उसी तरफ लौट जाओ। आठ फर्लांग के बाद नदी पड़ेगी, पुल आयेगा । उसने कहा, कि नहीं- नहीं फिर गलत हो गया।
मेरे एक मित्र हैं, बड़े धनी हैं; लेकिन चलते हमेशा पैसेंजर गाड़ी से एक दफा मुझे उनके साथ चलना पड़ा। तीन दिन लग गये पहुंचने में जहां एक घंटे में पहुंच सकते थे।
मैंने कहा कि मामला क्या है। वे कहने लगे कि मुझे पसंद ही नहीं कुछ और। उनके साथ चला तो मुझे भी समझ में आया बात तो वे भी ठीक कहते हैं। पैसेंजर गाड़ी का चलना, हर स्टेशन पर ठहरना । और उनको, वे काफी यात्रा करते रहे हैं तो हर स्टेशन पर उनकी पहचान है । कहां के भजिये अच्छे हैं, कहां की गुजिया अच्छी है, कहां का दूध, कहां की चाय, कहां की चाय केसर मिली है - वह सारा हिंदुस्तान का उनको हिसाब है। वे कहते यह भी कोई चलना कि बैठे हवाई जहाज में, यह कोई यात्रा है। इधर बैठे, उधर उतर गये! यह कोई बात हुई ? चलने का मजा ही न रहा।
अपनी-अपनी मौज है। बैलगाड़ी का भी मजा है। हवाई जहाज का भी मजा है। संकल्प से भी पहुंचते हैं लोग, समर्पण से भी पहुंचते हैं लोग।
जैसा उस शराबी ने कहा था, यहां से पहुंचने का कोई उपाय नहीं है— मैं भी एक शराबी हूं, मैं तुमसे कहता हूं, यहां से पहुंचने के सब उपाय हैं। और जो भी रास्ते हैं सब उसी की तरफ जाते हैं। तुम बायें चलना चाहते हो तो बायें से पहुंचने का उपाय है। तुम दायें चलना चाहते हो तो दायें से पहुंचने का उपाय है।
उस ड्राइवर ने कहा, 'महानुभाव ! मैं किसी और से पूछ तुम लौटना चाहते हो पीछे तो लौटकर पहुंचने का उपाय है। न चलना चाहो तो खड़े-खड़े पहुंच जाने का उपाय है।
लूंगा।' उसने कहा कि तुम किसी और से ही पूछ लो तो अच्छा, क्योंकि जहां तक मैं समझता हूं, यहां से स्टेशन पहुंचने का कोई उपाय ही नहीं है।
जो जैसा है वहीं से उपाय है। जो जहां है वहीं से उपाय है। निराश मत होना । संकल्प सधे, संकल्प; न सधे, चिंता मत करना । साधनों की बहुत फिक्र मत करना, साध्य को स्मरण रखना। राह की कौन चिंता करता है, वाहन की कौन फिक्र करता है, बैलगाड़ी से पहुंचे कि हवाई जहाज से पहुंचे - पहुंच गये। हवाई जहाज के भी मजे हैं, बैलगाड़ी के भी मजे हैं। हवाई जहाज में समय बच जाता है, लेकिन बैलगाड़ी में जो सौंदर्य का, दोनों तरफ के रास्तों का अनुभव होता है, वह नहीं हो पाता। बैलगाड़ी में थोड़ा समय लगता है, लेकिन दोनों तरफ पृथ्वी के सुहावने दृश्य उभरते हैं।
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सम्यक ज्ञान मुक्ति है
तीसरा प्रश्न: क्या कारण है कि महावीर का 'जिन' मात्र जैन बनकर रह गया ?
सदा ही ऐसा होता है। महावीर के ही अनुयायी के साथ ऐसा हुआ, नहीं; सभी के साथ ऐसा होता है। ऐसा ही होगा। प्रकृति का नियम है। जब महावीर जीवित होते हैं तब जिनत्व होता है; जब वे जा चुके होते हैं तब 'जैन' का प्रादुर्भाव होता है।
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जैन का अर्थ है जो जिन तो नहीं हुआ, जो जिन होना भी नहीं चाहता; लेकिन परंपरा से, संस्कार से, जैन घर में पैदा हुआ है। यह संस्कार उधार हैं; स्वेच्छा से वरण नहीं किये गये। और जो धर्म स्वेच्छा से वरण नहीं किया गया है, वह केवल बौद्धिक है,
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