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सम्यक ज्ञान मक्ति है
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को। पूर्णिमा चुनते तो कुछ हिसाब-किताब समझ में आता। | होते हो कि तुम्हारे भीतर केवल गत्यात्मकता होती है, कोई और अमावस की रात! लेकिन ठीक चुनी। ऐसा ही गहन स्वभाव नहीं होता, कोई थिर, जड़ वस्तु नहीं होती, सब प्रवाह होता है, है। गहन अंधकार, शांत, असीम! प्रकाश में तो थोड़ी उत्तेजना | जब तुम गंगा होते हो—तब मंजिल वहीं मिल गई। है। इसलिए तो प्रकाश जलता हो कमरे में तो सोना मुश्किल हो तुम्हारा होना, अहंकार, एक जड़ वस्तु है, पत्थर की तरह है। जाता है। आंखें उत्तेजित रहती हैं। इसलिए तो दिन में नींद | इसे पिघला लो। इसे जिंदगी की गर्मी में पिघल जाने दो। तुम मुश्किल होती है। रात नींद के लिए है। दीये भी बुझा देते हैं। मिटो तो ही तुम्हारा शून्य प्रगट हो सकेगा। महावीर उस शून्य को सब उत्तेजना खो जाती है।
आत्मा कहते हैं, क्योंकि वह तुम्हारा स्वभाव है। कभी तुमने खयाल किया, प्रकाश को जलाओ तो है, बुझाओ ध्यान रखना, दृष्टि की सारी बात है। तो मिट जाता है। अंधेरा सदा है, शाश्वत है। अंधेरा सत्य के साहिल भी एक लय है अगर कोई सुन सके संबंध में बड़ी गहरी खबर देता है। और अंधेरे में बड़ी गहन उमड़े हुए सकूत से तूफान बन सके। शांति है। तुम्हें डर लगता है, यह दूसरी बात है। ध्यान में सभी दृष्टि की बात है। तूफान शांति बन सकता है, शांति तूफान
लगता है, समाधि में सभी को डर लगता है। तुम्हें डर बन सकती है। तुम्हारी दृष्टि की बात है। तुम अगर शांति से लगता है, इस कारण तुम दीये को पकड़ लो, यह दूसरी बात है। तूफान को देखो तो तूफान भी एक अदभुत लयबद्धता है। और लेकिन महावीर तो कहते हैं, जो अभय को उपलब्ध हुआ, वही अगर तुम अशांति से शांति को भी देखो, तो शांति भी खो जाती उस गहन आत्मभाव में प्रवेश करता है। वह जो भीतर का शून्य | है और केवल एक बेचैनी और एक उन्माद रह जाता है। है, वहां तो सब ये चिराग, ये दीये, ये हिसाब-किताब, ये तर्क, यह जो जिंदगी का प्रवाह है, इसे तुम दुश्मन की तरह मत ये प्रमाण, ये शास्त्र, ये परंपराएं, सब छोड़कर जाना पड़ता है। देखो, और इससे लड़ो मत। लड़ने से तुम्हारा अहंकार और जिसकी हिम्मत हो अंधेरे में जाने की. वही आये। जिसकी मजबत होता चला जायेगा। इसके साथ बहो। इसे होने दो। इसे हिम्मत हो जीते-जी मृत्यु में प्रवेश की, वही आये। क्योंकि स्वीकार करो। इसके सत्य को स्वीकार करो और अपने सत्य को समाधि जीते-जी मृत्यु का स्वेच्छा से वरण है। इसीलिए तो हम स्वीकार करो। और जब दोनों सत्य मिलते हैं-तुम्हारे भीतर का साधु की कब्र को भी समाधि कहते हैं। सभी की कब्र को समाधि | सत्य, प्रवाहमान; और तुम्हारे बाहर का सत्य, प्रवाहमान—जब नहीं कहते, लेकिन जिसने अपने भीतर समाधि अनुभव कर ली इन दोनों प्रवाहों का मिलन होता है, उस मिलन का नाम ही हो, उसकी मृत्यु को भी हम समाधि कहते हैं। दोनों एक हैं। समाधि है। उस आलिंगन का नाम ही समाधि है।
ये जो चार पर्ते मैंने तुम्हें बताईं, जब ये मर जाती हैं, तब तुम और इस प्रश्न का दूसरा हिस्सा है : 'और क्या क्रिया का शून्य में प्रवेश करते हो। तुम वहीं पहुंच जाते हो जहां तुम जन्म समय से कोई संबंध नहीं है?' के पहले थे।
जब तुम परिपूर्ण क्रिया में होते हो, समय मिट जाता है। जब और यह पहुंचना प्रक्रिया है। यह पहुंचना संज्ञा नहीं है। तुम किसी भी क्रिया में पूरे लीन होते हो, समय मिट जाता है। जिंदगानी है फकत गर्मि-ए-रफ्तार का नाम
एक चित्रकार चित्र बना रहा है; जब वह पूरा-पूरा डूबा होता है मंजिलें साथ लिये राह पे चलते रहना।
तो समय मिट जाता है। नहीं कि घड़ी ठहर जाती है, घड़ी चलती मंजिल कहीं ऐसी दूर नहीं है कि तुम उस तरफ जा रहे हो। रहेगी; घड़ी का समय कोई असली समय थोड़े ही है। लेकिन जिंदगानी है फकत गर्मि-ए-रफ्तार का नाम
उस चित्रकार के लिए सब ठहर गया। जब कोई गीतकार गीत मंजिलें साथ लिए राह पे चलते रहना।
गाता है, और सिर्फ प्रदर्शन नहीं करता, वस्तुतः गाता है, और मंजिल तम्हारे साथ ही है, तुम्हारे चलने में है, तुम्हारी गति में ऐसे ओंठ ही नहीं हिलाता, हृदय से प्रवेश हो जाता है, तो समय है। मंजिल गंतव्य नहीं है, तुम्हारी गति की प्रखरता का नाम है । ठहर जाता है। जब कोई नर्तक नाचता है और नाच ही हो जाता तुम्हारी गति की तीव्रता, त्वरा का नाम है। जब तुम इतने गतिमान है, तो समय ठहर जाता है। जहां भी क्रिया परिपूर्ण है, वहीं समय
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