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जिन सूत्र भाग : 1
आत्मिक नहीं है। यह सभी के साथ होगा। यह स्वाभाविक है। तो मैंने कहा, तुम एक काम करो। तुम एक तीन दिन नियम
एक डाक्टर ने नौकर को आदेश दे रखा था कि कोई काम उनसे रखो कि नमस्कार न करोगे हनुमान जी को। बोले कि 'अगर पूछे बगैर न करे। एक दिन वे दवाइयों की डोज़ देख रहे थे कि नाराज हो गये...तो?' नौकर आकर बोला, 'सर! चाय में कितनी चीनी दूं?' "वह मेरा जुम्मा। मैं निपट लंगा। तीन दिन में कर लूंगा 'दो या तीन चम्मच भर', डाक्टर ने कहा।
| तुम्हारी तरफ से नमस्कार। लेकिन तुम तीन दिन...।' नौकर थोड़ी देर बाद फिर आया और बोला, 'सर! सब्जी में उन्होंने कहा कि बड़ा मुश्किल होगा। मैंने कहा, तुम कोशिश नमक कितना देना है?'
तो करो। तीन दिन संभव न हो पाया। वे शाम को उसी दिन 'दो या तीन चम्मच भर', थोड़ा नाराज होते डाक्टर बोला। आये। उन्होंने कहा, मुश्किल है। वह तो याद ही नहीं रहती, फिर थोड़ी देर में लौटकर नौकर आया और उसने कहा कि एकदम से हाथ झुक जाता है। सर, चावल कितना बनेगा? 'कितनी बार कहा', डाक्टर | अब यह पूजा हुई? यह प्रार्थना हुई? यह तो एक मजबूरी हो चीखा, 'दो या तीन चम्मच भर।'
गई, एक बेहोशी हो गई। यह तो एक आदत हो गई; जैसे चावल दो या तीन चम्मच भर! लेकिन धीरे-धीरे लकीरें बन सिगरेट पीनेवाले को सिगरेट की तलफ लगती है, हाथ खीसे में जाती हैं। उत्तर निर्णीत हो जाते हैं। बहुत बार जो बात तुमने कही | | चला जाता है, पैकेट बाहर निकल आता है, सिगरेट ठोंकने | है, तम उसे कहने के लिए धीरे-धीरे अवश हो जाते हो। बहुत | लगता है पेकेट पर। एक यांत्रिक प्रक्रिया हो गई।
बार जिस मंदिर के सामने तुम झुके हो, तुम झुक जाते हो मूर्छा जब तुम धर्म को बिना स्वेच्छा के स्वीकार कर लेते हो, में, झुकना सच नहीं होता। तुम्हें पक्का भी नहीं होता। | आदतवश, संस्कारवश, परंपरावश, तब तुम एक खतरे में पड़
मेरे एक मित्र हैं। मेरे साथ घूमने जाते थे। हनुमान के भक्त रहे हो, क्योंकि धर्म तो तभी धर्म होता है जब तुम स्वेच्छा से, | हैं। अब हनुमान के भक्त की बड़ी दिक्कत है, क्योंकि जितने सावचेत, सावधानी से स्वीकार करो। धर्म तो तभी धर्म होता है हनुमान के मंदिर, मूर्ति इधर-उधर सब जगह हैं...। जहां जाएं, जब तुम्हें जगाये, सुलाये न।। वहीं उनको...। तो उनको जगह-जगह नमस्कार...।
तो तुम दोहरा सकते हो। जैन दोहरा रहा है। 'जिन' होना हो और हनुमान के साथ खतरा है कि नाराज न हो जायें। एक तो जीना पड़ेगा; दोहराने से काम न होगा। महावीर के वचन और झंझट! तो मैंने उनसे कहा कि यह तुम क्या करते हो। | याद कर लेने से कुछ भी न होगा। जीना पड़ेगा। उन्हें फिर से दिनभर ? तुमको कोई काम दूसरा नहीं सूझता? चलो तो | खोजना पड़ेगा कि जीवन की सचाई उनमें है या नहीं। तुम्हें मुसीबत। रिक्शा रोककर उतरते हैं, पहले नमस्कार। हनुमान प्रमाण बनना पड़ेगा शास्त्र का। तुम्हें खबर देनी पड़ेगी अपने जी नाराज न हो जायें!
खुद के अन्वेषण से कि ठीक है, मेरा अन्वेषण भी मुझे वहीं ले मैंने कहा, 'और जहां तक मैं देखता हूं, न तो तुम्हारे नमस्कार आता है जहां महावीर का अन्वेषण ले गया; मैं भी तालमेल में कोई रस है। मैं देखता हूं, एक तरह की फजीहत, एक तरह की पाता हूं; उन्होंने जो कहा, ठीक कहा है; यह मेरा अनुभव भी परेशानी! तुम झिझियाये से, खिझियाये से नमस्कार करते हो।' कहता है-तब तो तुम 'जिन' हो पाओगे।
बोले, 'बात तो ठीक है क्योंकि बचपन से यह आदत मेरे। लेकिन अगर तुम दोहराते रहे, तो दोहराते रह सकते हो। तुम पिताजी ने डाल दी है। वे भी यही करते थे। वे भी खिझियाए जैन बने-बने सड़ जाओगे। रहते थे। क्योंकि गांव क्या है, जहां देखो वहीं हनुमान जी बैठे तुम कहीं पहुंच न पाओगे। हैं। इस झाड़ के नीचे बैठे हैं, उस झाड़ के नीचे बैठे हैं। फिर शास्त्रों से हम जो अर्थ लेते हैं, उस अर्थ के लिए भी बड़ी हनुमानजी के बैठने में दिक्कत नहीं लगती। कहीं भी पत्थर रख साक्षी भाव-दशा चाहिए, तो ही अर्थ का फूल तुम्हारे भीतर दो, लाल रंग से रंग दो। झंझट खड़ी हो गई। अब ये हनुमान जी खिलेगा। शब्द तो मिल जाते हैं शास्त्र से, अर्थ कहां से हैं, अब अगर न इनको नमस्कार करो तो नाराज हो जायेंगे। लाओगे? अर्थ तो तुम्हें डालना होगा।
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