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सम्यक ज्ञान मुक्ति है
देखते हो, उसका अर्थ ही क्या हुआ? उसका अर्थ हुआ कि कहता हूं, वासना को जानो, तो मैं यही कह रहा हूं कि वासना से तुमने उस आदमी या उस स्त्री को कुरूप करना चाहा। जब भी मुक्त होने का एक ही उपाय है : उसे जान लो। जिसे हम जान तुम किसी को वासना से देखते हो, उसका अर्थ हआ कि तुमने लेते हैं, उसी से मुक्ति हो जाती है। किसी का साधन की तरह उपयोग करना चाहा; तुम किसी को सत्य बड़ा क्रांतिकारी है। जान लेने के अतिरिक्त और कोई भोगना चाहते हो। और प्रत्येक व्यक्ति साध्य है, साधन नहीं है। रूपांतरण नहीं है। तुम किसी को चूसना चाहते हो? तुम किसी को अपने हित में उपयोग करना चाहते हो? तुम किसी के व्यक्तित्व को वस्तु की
आज इतना ही। तरह पद-दलित करना चाहते हो?
वस्तुओं का उपयोग होता है, व्यक्तियों का नहीं। लेकिन जब तुम वासना से किसी को देखते हो, व्यक्ति खो जाता है, वस्तु हो जाती है। इसलिए वासना की आंख को कोई पसंद नहीं करता। जब वासना खो जाती है तो सौंदर्य का अनुभव होता है। और जब सौंदर्य का अनुभव होता है, तो तम्हारे भीतर प्रेम का आविर्भाव होता है।
प्रेम उस घड़ी का नाम है, जब तुम्हें सब जगह परमात्मा और उसका सौंदर्य दिखाई पड़ने लगता है। तब तुम्हारे भीतर जो ऊर्जा उठती है, जो अहर्निश गीत उठता है-वही प्रेम है। अभी तो तुमने जिसे प्रेम कहा है, उसका प्रेम से कोई दर का भी संबंध नहीं है। वह प्रेम की प्रतिध्वनि भी नहीं है। वह प्रेम की प्रतिछाया भी नहीं है। वह प्रेम का विकृत रूप भी नहीं है। वह प्रेम से बिलकुल उलटा है।
इसलिए तो तुम्हारे प्रेम को घणा बनने में देर कहां लगती है। अभी प्रेम था, अभी घृणा हो गई। एक क्षण पहले जो मित्र था, क्षणभर बाद दुश्मन हो गया। क्षणभर पहले जिसके लिए मरते थे, क्षणभर बाद उसको मारने को तैयार हो गये।
तुम्हारा प्रेम प्रेम है? घृणा का ही बदला हुआ रूप मालूम पड़ता है। प्रेम सिर्फ तुम्हारी बातचीत है। प्रेम तो उनका अनुभव है जिनकी आंख से वासना गिर गई; जिन्हें सौंदर्य दिखाई पड़ा; जिसे सब तरफ उसके नृत्य का अनुभव हुआ; जिसे सब तरफ परमात्मा की पगध्वनि सुनाई पड़ने लगी। फिर प्रेम का आविर्भाव होता है। प्रेम यानी प्रार्थना। प्रेम यानी पूजा। प्रेम यानी अहोभाव, धन्यता, कृतज्ञता।
नहीं, अभी तुम्हें प्रेम का अनुभव नहीं हुआ। अभी तो तुमने वासना को भी नहीं जाना, प्रार्थना को तुम जानोगे कैसे? वासना को जानो, ताकि वासना से मुक्त हो जाओ। जब मैं निरंतर तुमसे
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