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सम्यक ज्ञान मुक्ति है
फिर कोई अड़चन नहीं रह जाती है। फिर तुम उनकी मूर्ति बनाकर उसे संन्यास दे दें।' उनका भाव मैं समझता हूं। उनका प्रेम मैं पूजो। फिर तुम्हें जो करना हो महावीर के साथ, बेशक करो। समझता हूं। मगर उनके भाव और प्रेम से थोड़े ही संसार चलता
दिगंबर हैं, नग्न मूर्ति की पूजा करते हैं। उनकी मौज! श्वेतांबर है। उनकी भाव की बात बड़ी शुद्ध है। उनका भाव यह है कि हैं, नग्न मूर्ति की पूजा नहीं करते। उनकी मौज! दिगंबर उनका बच्चा पैदा होते से ही संन्यासी हो। ठीक है, शुभ है। आंख-बंद महावीर की पूजा करते हैं-उनकी मौज। अब लेकिन बेटे से तो पूछो! वह जो अभी पैदा ही नहीं हुआ है, उसे
वीर कुछ कह नहीं सकते कि जरा ठहरो, मुझे आंख खोलनी जुआरी बनना है कि शराबी बनना है, कि संन्यासी बनना है, कि है। वे फौरन रोक देंगे कि बंद करो बकवास, आंख बंद रखो! हिंदू बनना है कि मुसलमान बनना है-उससे तो पूछो! लेकिन नियम से चलो! दिगंबर बंद आंख की पूजा करते हैं; श्वेतांबर उससे अभी पूछने का कोई उपाय नहीं है। खुली आंख की पूजा करते हैं। कुछ मंदिर हैं, जो दोनों के हैं। तो तो जैसे जैन घर में पैदा होने से कोई जैन हो जाता है. मेरे आधा दिन दिगंबर पूजा करते हैं, आधा दिन श्वेतांबर पूजा करते संन्यासी के घर में पैदा होने से कोई संन्यासी हो जायेगा। लेकिन हैं। अब बड़ी मुश्किल है, पत्थर की मूर्तियां हैं। वैसा कुछ दूसरी पीढ़ी मुर्दा होगी। शायद दूसरी पीढ़ी में भी थोड़ा आसान भी नहीं है कि आंख खोल दो, लगा दो। तो झूठी आंख घिसटता-लंगड़ता हुआ धर्म रह जाये, क्योंकि उसने पहली पीढ़ी चिपका देते हैं। जब सुबह दिगंबर पूजा करेंगे, तो वे खाली मूर्ति के दर्शन किये होंगे; कम से कम पहली पीढ़ी के पास रही होगी; की पूजा कर जाते हैं। जब श्वेतांबरों की घड़ी आती है बारह बजे उस हवा में पली होगी। लेकिन तीसरी पीढ़ी? वह तो और दूर के बाद, तो वे आकर नकली आंख, खुली आंख चिपका देते हैं; हो जायेगी। चौथी पीढ़ी और...। कपड़े पहना देते हैं। पूजा शुरू हो जाती है। महावीर न तो कह फिर पच्चीस सौ साल हो गये महावीर को हुए, अब तो सब सकते कि ये कपड़े मुझे पसंद नहीं, न कह सकते कि मझे नग्न | मुर्दे हैं। अब तो जैन के नाम से जो है वह मुर्दा है। वह उतना ही रहना है, न कह सकते हैं कि मुझे ठंडी लग रही है, अभी नग्न मत मुर्दा है जैसे मुहम्मद का मुसलमान मुर्दा है और ईसा का ईसाई करो, कि अभी बहुत गर्मी है, कुछ कह नहीं सकते। अब तुम्हारे मुर्दा है। यह स्वाभाविक है। इसे टाला नहीं जा सकता। जैसे हाथ के खिलौने हैं। तुम्हारे महावीर, तुम्हारे बुद्ध, तुम्हारे कृष्ण, | व्यक्ति पैदा होते हैं, जवान होते हैं, मर जाते हैं ऐसे ही धर्म तुम्हारे हाथ के खिलौने हैं। असली महावीर, असली कृष्ण और पैदा होते हैं, जवान होते हैं, बढ़े होते हैं और मर जाते हैं। इस बुद्ध जलते हुए अंगारे थे। उनको हाथ में रखने के लिए बड़ी संसार में जो भी चीज जन्मती है, वह मरती भी है। वह जो हिम्मत चाहिए थी। जो दग्ध होने को राजी थे वे उनके पास आये परमधर्म है, जो कभी पैदा नहीं होता, कभी नहीं मरता, उसका तो थे। कमजोर तो उनसे दूर भागे थे। कमजोर तो उनके दुश्मन थे। कोई नाम नहीं है—न हिंदू, न जैन, न मुसलमान, न ईसाई। लेकिन पीछे...।
उसकी हम बात नहीं कर रहे। लेकिन जैन, हिंदू, मुसलमान, मेरे पास संन्यासी आते हैं। कोई पिता आता है, कोई मां आती ईसाई जिस धर्म का नाम है, यह कभी पैदा हुआ, कभी मरेगा। है। वह कहते हैं, हमारे बेटे को भी संन्यास दे दें। उनका भाव मैं | ये जो चार पर्ते हैं तुम्हारे ऊपर, ये सब संज्ञा की तरह हैं। तुमने समझता हूं। उन्हें जो सुख मिला है, उन्हें जो शांति मिली है, वे जिसे जैन धर्म कहा है, वह संज्ञा है। मैं जिसे जैन धर्म कह रहा चाहते हैं उनके बेटे को भी मिल जाये। लेकिन उन्होंने तो मुझे हूं, वह क्रिया है। तुम जिसे जैन धर्म कह रहे हो, वह तुम्हारी चुना है, बेटे को वे ले आये हैं। बेटे ने मुझे नहीं चुना है। बेटे ने पैदाइश, तुम्हारे जन्म, तुम्हारे संयोग की घटना है। मैं जिसे जैन स्वेच्छा से मुझे नहीं चुना है, बाप के साथ चला आया है। बाप | धर्म कह रहा हूं, वह तुम्हारा आविष्कार है, तुम्हारी खोज है। कहता है, संन्यास तेरा भी करवाना है, तो वह कहता है, ठीक फिर-फिर तुम्हें खोजना होगा। मेरा जो जैन धर्म है, वह हिंदू धर्म है। लेकिन यह संन्यासी और ढंग का संन्यासी होगा। यह तो के विपरीत नहीं है। मेरा जो जैन धर्म है, वह इस्लाम के विपरीत मजबूरी का संन्यासी होगा।
नहीं है। मेरा जो जैन धर्म है, वह सभी धर्मों का सार है। वहां ऐसी स्त्रियां मेरे पास आती हैं, वे कहती हैं, 'गर्भ में बच्चा है, | बाइबिल और कुरान और गीता और धम्मपद और जिन-सूत्र,
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