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जिन सूत्र भाग: 1
मिला है!' महावीर ठीक उलटी बात कह रहे हैं कि सत्य के बिना कहीं तपश्चर्या हुई है। दोनों दुश्मन मालूम पड़ते हैं। यह जैन मुनि महावीर के पीछे चलता हुआ मालूम नहीं पड़ता। यह तो उलटा ही काम कर रहा है। यह तो कारण को पकड़कर कार्य को लाना चाहता है, जो कि संभव नहीं है। कार्य से कारण आता है। तुम चलते हो, तुम्हारी छाया तुम्हारे पीछे चलती है। महावीर कहते हैं, तुम चलोगे, तुम्हारी छाया तुम्हारे पीछे चलेगी। जैन मुनि कहता है, छाया का पीछा करो, कहीं ऐसा न हो कि छाया यहां-वहां चली जाए !
अब तुम अड़चन में पड़ जाओगे, अगर तुमने छाया का पीछा किया तो तुम तो उलटी यात्रा पर लग गए। यह तो छाया तुम्हारी आत्मा हो गई, तुम छाया हो गए।
महावीर कहते हैं, सत्य में तप, संयम और शेष समस्त गुणों का वास हो जाता है। वे नाम भी नहीं गिनाते । गिनाने की कोई जरूरत नहीं है । कह दिया सागर, तो सभी नदियां आ गईं। आ ही जाती हैं देर- अबेर । नदी-नदी का कहां-कहां पीछा करोगे ? सागर को ही पकड़ लो। जब सागर ही मिलता हो तो नदियों के पीछे क्यों भटकते हो ?
लेकिन अगर जैन मुनि ऐसी बात कहे, तो उसका खुद का क्या हो ! क्योंकि वह भी नदियों के पीछे भटक रहा है।
इसे समझो।
भागे । दिन-रातें ऐसे गुजर जाती हैं जैसे आईं और गईं, पता ही न
चला ।
तो जरा सोचो, जिस दिन भीतर का प्यारा, भीतर का प्रियतम मिल जाए, जब उसके पास सरकने लगोगे तो कहां याद आएगी भूख की, कहां याद आएगी प्यास की !
महावीर कहते उपवास के कारण अनशन हो जाता है। जैन मुनि कहता है, अनशन करो तो आत्मा के पास जाओगे।
अब बड़ा मुश्किल है मामला। अनशन करनेवाला और भी शरीर के पास हो जाता है। भूखे मरोगे तो शरीर की ही याद आएगी। नहीं तो करके देख लो । उपवास करके देख लो। जिसको जैन मुनि उपवास कहते हैं, मैं तो अनशन कहता हूं। अनशन करके देख लो | जिस दिन खाना न खाओगे, उस दिन खानेही खाने की याद आएगी। उस दिन रास्ते पर गुजरोगे तो न तो कपड़े की दुकानें दिखाई पड़ेंगी, न जूतों की दुकानें; बस रेस्तरां, होटल, उन्हीं - उन्हीं के बोर्ड एकदम पढ़ोगे और दिल में बड़ी तरंगें उठेंगी। रसगुल्ले उठेंगे! रसमलाई फैलेगी ! संदेशों के संदेश आएंगे।
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भूखा आदमी भोजन का ही सोच सकता है।
इसलिए जैन जब उपवास करते हैं पर्युषण के दिनों में, तो मंदिर ज्यादा समय, क्योंकि घर तो बहुत ज्यादा याद आती है । मंदिर में किसी तरह भुलाए रखते हैं; शोरगुल मचाए रखते हैं ! और फिर वहां और भी उन्हीं जैसे भूखे बैठे हैं, उनको देखकर भी ऐसा लगता है : 'कोई अकेले ही थोड़े ही हैं ! अपन ही थोड़े ही परेशान हो रहे हैं, और भी सब हो रहे हैं!'
जैनों का शब्द है: 'उपवास'। बड़ा प्यारा शब्द है! उपवास शब्द का अर्थ होता है : अपने अंतर्तम में वास । उप+वास : अपने पास होना; अपने निकट होना। इसका खाने न खाने से कुछ भी संबंध नहीं । तुम जिसे उपवास कहते हो, वह अनशन है, उपवास नहीं। फर्क क्या है ? महावीर कहते हैं, जब तुम अपने पास हो जाओगे तो उन घड़ियों में भोजन भूल जाता है, क्योंकि शरीर भूल जाता है। जब कोई अपने पास होता है, आत्मा के पास होता है। जब आत्मा का सत्संग चलता है, जब उस रस में कोई डूबता है— कहां याद रहती है भूख-प्यास की ! तुमने कभी खयाल नहीं किया ! कोई मित्र घर आ जाए वर्षों का बिछड़ा हुआ, भूख याद पड़ती है? प्यास पता चलती है ? घंटों बीत जाते हैं, बैठे हैं, चर्चा कर रहे हैं, न भूख है न प्यास है।
तुम्हारा प्रेमी मिल जाए, तुम्हारी प्रेयसी मिल जाए – भूख, प्यास भूल जाती है। घड़ियां ऐसे बीतने लगती हैं जैसे पल
और एक-दूसरे की हिम्मत बंधाए रखते हैं। बैंड-बाजा बजाए रखते हैं। घर आए तो भोजन की याद आती है। वहां भी भोजन की ही याद आती है। तुम जिस चीज के साथ जबर्दस्ती करोगे, उसका कांटा चुभेगा ।
महावीर कहते हैं, उपवास हो जाए–अनशन अपने से हो जाता है।
जैन मुनि कहते हैं, अनशन करो तो उपवास होगा। यही पूरी की पूरी उलट- बांसी चल रही है, उलटी धारा बह रही है।
'समुद्र जैसे सभी नदियों का आश्रय है, ऐसे ही सत्य सभी धर्मों का आश्रय है। कदाचित सोने और चांदी के कैलाश के समान असंख्य पर्वत हो जाएं तो भी लोभी पुरुष को उनसे कुछ
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