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तुम मिटो तो मिलन हो
लेकिन तुम जिसे आभूषण कहते हो, वह आभूषण नहीं। और | कब तक जानती रहोगी 'तरु'? रखो! तुमने जिसे अभी समझा है तुम हो, वह तुम नहीं-उसकी तो जानने-जानने में कब तक समय गंवाओगी? कहीं ऐसा न हो हत्या ही करनी पड़ेगी-बेमुरौअत! उस पर कोई दया नहीं की कि जानने की बात जानने की ही रह जाए! होने की बनाओ! जब जा सकती! उसे तो मिटाना होगा। वही तो तुम्हारे पावों को कोई बात ऐसी लगती हो कि दिल में रख लेने की है, तो सोचो जकड़े है।
मत। सोचने में क्षण न खोओ, रख ही लो! 'सांस लेती हूं तो यह महसूस होता है मुझे,
एक बारी धक से होकर दिल की फिर निकली न सांस जानती हूं दिल में रखने के ही काबिल आप हैं।
किस शिकार अन्दाज का यह तीरे-बेआवाज है! गम नहीं है लाख तूफानों से टकराना पड़े
फिर जब कोई चीज हृदय में जाती हो, तो जाने दो तीर की मैं हूं वह किश्ती कि जिस किश्ती के साहिल आप हैं।' तरह। सोचो मत! सोचने में ही तीर इधर-उधर हो जाएगा। और
तूफान से टकराने में गम कैसा? क्योंकि तूफान से टकराकर | हर बात के पकने का क्षण होता है, ऋतु होती है। जो अभी हो ही कोई किनारे को उपलब्ध होता है। किनारे के आसपास ही सकता है, अभी हो सकता है; कल न हो पाए। और जो अभी न तूफान है, तूफानों के आसपास ही किनारा है। और अगर ठीक हो सका, ताजा-ताजा न हो सका, वह कल कैसे हो पाएगा? से कहें तो तूफान में ही छिपा किनारा है।
बासा हो जाएगा। तो जो दिल में रख लेने जैसा लगे उसे रखो! मेरे डूब जाने का बाइस तो पूछो
अगर जगह न हो तो दिल को बाहर करो! जगह बनाओ! किनारे से टकरा गया था सफीना।
मेरे पास होने का एक ही अर्थ है, कि तुम मिटने की कला नाव किनारे से टकराकर डूब गई, यह कारण है डूब जाने का! | सीखो। नहीं कि तुम्हारे दिल में रहने का मेरा कोई इरादा है; यह मेरे डूब जाने का बाइस तो पूछो!
तो केवल बीच का उपाय है। यह तो केवल बहाना है। यह तो मैं किनारे से टकरा गया था सफीना!
तुम्हें फुसला रहा हूं। यह तो मैं यह कह रहा हूं कि चलो इस वह किनारा ही क्या जो तम्हारी नाव को न तोड दे। वह किनारा | बहाने से सही. इस निमित्त सही. तम अपना दिल तो छोडो. ही क्या जो तुम्हें तुम्हारी नाव से मुक्त न कर दे! नाव नदी के अपना दिल तो तोड़ो! मेरे लिए ही सही, जगह तो बनाओ! लिए है। किनारा तो तुम्हें नाव से छुड़ा ही देगा, नाव को तोड़ ही जगह बनते ही मैं वहां नहीं बैलूंगा। जगह हो जाए तो उसी जगह देगा। वह मंजिल ही क्या जिसको पाकर रास्ता खो न जाए, मिट | में तो परमात्मा विराजमान होता है। कबीर ने कहा है : न जाए! जिससे चल चुके वह मिट जाना चाहिए, अन्यथा उस गुरु गोविंद दोइ खड़े, काके लागूं पांव। पर लौट जाने की संभावना बनी रहती है।
| किसके पैर पकडूं! दोनों साथ ही खड़े हैं, किसके पहले चरण तो जितना-जितना तुम बढ़ते जाओगे उतना-उतना मैं तुम्हारी छुऊं। कहीं कोई अपमान न हो जाए, कोई अनादर न हो जाए। नाव को तोड़ता जाऊंगा। जब देखूगा किनारा करीब है तो नाव कहीं शिष्टाचार का कोई भंग न हो जाए। बिलकुल तोड़ देनी चाहिए। नहीं तो डर है कि तुम फिर | गुरु गोविंद दोइ खड़े, काके लागू पांव। वासनाओं की नाव में सवार हो जाओ।
बड़ी मुश्किल में पड़ गए होंगे। ऐसा होता नहीं। जब गुरु होता और ध्यान रखना, जो नाव उस किनारे से इस किनारे तक ले है तो गोविंद नहीं होता; जब गोविंद होता है तो गुरु नहीं होता। आयी है, वही नाव इस किनारे से उस किनारे ले जा सकती है। कभी ऐसा भी होता है, जब दोनों साथ खड़े होते हैं। एक बार नाव तो वही होगी, सिर्फ दिशा बदलती है। जो सीढ़ी तुम्हें ऊपर होता है ऐसा। पहले गुरु को जगह देते हैं। धीरे-धीरे गुरु हृदय ले जाती है, वही सीढ़ी तुम्हें नीचे भी ले जा सकती है। इसलिए में बैठता जाता है, बैठता जाता है, फिर एक दिन गुरु हट जाता समझदार ऊपर पहुंचकर सीढ़ी तोड़ देते हैं।
है-उस दिन गोविंद। इधर गुरु जाने को होता है, उधर गोविंद 'सांस लेती हूं तो यह महसूस होता है मुझे
आने को होता है। एक घड़ी में ऐसी बात होती है जब गुरु जा रहा जानती हूं दिल में रखने के ही काबिल आप हैं।
होता है, गोविंद आ रहा होता है तब दोनों साथ खड़े होते हैं।
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