________________
जिन सूत्र भाग 1
उसका उपयोग करो।
| जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसका उपयोग न हो। पाप का और ध्यान रखना
भी उपयोग है, क्योंकि उसी से पुण्य की सुवास उठती है। विचार हर प्रदीप की पृष्ठभूमि में
का भी उपयोग है, अन्यथा निर्विचार कैसे हो पाओगे? संसार अंधकार अनिवार्य है।
की जरूरत है, अन्यथा सत्य को कैसे खोजोगे? भटकना भी बिना सघनता क्षुद्र विरलता
जरूरी है, अन्यथा पहुंचोगे कैसे? एक बार तुम्हारे जीवन में कर सकती विस्तार नहीं
सृजनात्मक भाव आ जाये और हर चीज का सृजनात्मक मूल्य मिले बिना परिवेश शून्य का
आ जाये, तो तुम पाओगे, संब चीज का तुमने उपयोग करना सज पाता आकार नहीं।
शुरू कर दिया। हर प्रदीप की पृष्ठभूमि में
कड़ा-कर्कट भी फेंकने जैसा नहीं है: उसका भी उपयोग हो अंधकार अनिवार्य है।
सकता है। लेकिन तुम्हें सदियों से इस तरह की बातें सिखायी गई अंधकार तुम्हारा दुश्मन भी नहीं है। जरा प्रदीप जला लो, फिर | हैं—यह गलत, यह गलत, यह गलत; गलत और सही को तो अंधकार भी सुख देगा। अंधकार की मखमली चादर प्रकाश विपरीत, दुश्मन की तरह खड़ा किया गया है; राम और रावण को और हजार गुना प्रज्वलित कर देती है। इसलिये तो दिन में | को लड़ाया गया है; भगवान और शैतान को खंडित करके तारे नहीं दिखाई पड़ते हैं तो अपनी ही जगह; कहीं चले नहीं अलग कर दिया गया है; पाप और पुण्य, दिन और रात गये हैं; दिन में कुछ सो नहीं गये हैं, कहीं खो नहीं गये हैं, अपनी दुश्मन—इस दुश्मनी के भाव से तुम्हारी परेशानी हो रही है। जगह हैं। पूरा आकाश तारों से भरा है, वैसा ही जैसा रात में, मैं तुमसे कहता हूं, दिन और रात दुश्मन नहीं हैं, एक ही खेल लेकिन तारे दिखाई नहीं पड़ते, उनको पृष्ठभूमि चाहिए अंधकार | के हिस्से हैं। राम और रावण दुश्मन नहीं हैं; अन्यथा राम-कथा की। जब अंधकार घेर लेता है, तब तारे चमक आते हैं। न बनेगी। अमावस की रात जैसे चमकते हैं वैसे कभी नहीं चमकते। । तुमने रामलीला में देखा! पर्दे पर धनुष-बाण लिये खड़े हैं,
तो जीवन को सृजनात्मक दृष्टि से देखो। यहां कुछ बुरा है, लड़ रहे हैं, और पर्दे के पीछे राम और रावण बैठकर गपशप कर ऐसा कहकर लडो मत। जो बरा है उसे पष्ठभमि बना लो और रहे हैं, चाय पी रहे हैं। जिंदगी के पर्दे के पीछे भी मैंने ऐसा ही जो शुभ है उसका दीया जलाओ और तब तुम पाओगे, अशुभ देखा है। वहां जो सामने नाटक करते दिखायी पड़ रहे थे दुश्मनी ने भी शुभ को साथ दिया, अंधेरे ने भी दीये को ज्योतिर्मय किया। का, पीछे गले लगकर बैठे हैं। होना भी ऐसा ही चाहिए; नहीं तो
तब विचार भी ध्यान की पृष्ठभूमि बन जाते हैं। तब पाप भी जीवन खंड-खंड होकर छितर जाता। पुण्य की पृष्ठभूमि बन जाते हैं। और तब संसार भी परमात्मा की किसने सम्हाला है? ये जिंदगी की सारी ईंटें किस सीमेंट से | खोज का उपाय हो जाता है। तब शरीर भी आत्मा का मंदिर हो | जुड़ी हैं? ये शुभ और अशुभ साथ-साथ कैसे खड़े हैं? साधु जाता है।
| और असाधु कैसे साथ-साथ जुड़े हैं? संयुक्त हैं। और एक मेरा पूरा दृष्टिकोण अनिंदा का है। किसी भी चीज की निंदा का | बार तुम्हें यह समझ में आ जाये तो तनाव कम हो जायेगा। तब
ही अर्थ होता है कि तुम उसका उपयोग करना न जान पाये; | तुम पाओगे कि अगर कुछ अड़चन हो रही है, तो मेरै तुम समझ न पाये कि इसका क्या करें। तुमने जिसे मार्ग का समझ-बूझ में कुछ कमी है। पत्थर समझा, वह प्रतिमा भी बन सकती थी। तुमने जिसे मार्ग| मैंने सुना है, एक महिला को सितार सीखने की धुन सवार का पत्थर समझा, वह मार्ग की सीढ़ी भी बन सकती थी। तुम हुई। तो पहले ही दिन चाहती थी कि मेघ-मल्हार हो जाये। पत्थर मानकर बैठ गये और रोने लगे। मैं कहता हं, सीढ़ी | पहले दिन चाहती थी कि पशु-पक्षी आ जायें। बार-बार जाकर समझो, चढ़ो! मैं कहता हूं, अनगढ़ पत्थर देखकर नाराज मत | खिड़की पर देख आती थी, अभी तक नहीं आये। न कोई भीड़ होओ, जरा छैनी उठाओ, गढ़ो!
जड़ी। उलटे पति जो घर में बैठा था वह निकलकर बाहर चला
126
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org