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र में आग लगी हो तो बाहर जाने के दो ही उपाय हैं: सपना भी नहीं देख सकते हो। प्रकाश से तुम्हारी कोई पहचान या तो बाहर आग नहीं है, ऐसा दिखाई पड़े; या घर नहीं हुई। तो तुम सुनोगे, सुन लोगे-लेकिन इससे तुम्हारे
की आग जीवन-घाती है, ऐसा दिखाई पड़े। जीवन में रूपांतरण न होगा। तुम कहोगे, 'क्या भरोसा, प्रकाश या तो बाहर सुख है, आनंद है, जीवन है, ऐसी प्रतीति हो, तो | होता भी है ?' व्यक्ति घर के बाहर भागे; और या घर की पीड़ा, घर के भीतर तुमसे मैं फूलों की बात करूं, फूलों की कथा कहूं; लेकिन लगी आग जलाने लगे, अनुभव में आये, जगाये, तो व्यक्ति फूल तुमने देखे ही न हों और तुम्हारे नासापुटों में कभी गंध ने बाहर भागे।
आवास न किया हो, तो क्या उपाय है? तुम कैसे आकर्षित दुनिया में दो ही तरह के धर्म हैं। एक-जो परमात्मा के आनंद होओगे? तम सन लोगे बात, लेकिन तम्हारे हृदय को छ न का वर्णन करते हैं; उस परम दशा के सुख की महिमा गाते हैं; पायेगी; तुम्हारे प्राणों में इससे क्रांति का जन्म न होगा। शायद समाधि का सौरभ, उस सौरभ के गीत गुनगुनाते हैं। और दूसरे तुम पंडित हो जाओ, लेकिन प्रज्ञावान न हो सकोगे। शायद तुम धर्म हैं-जो तुम्हारी जीवन-दशा की अग्नि, दुख, पीड़ा, छाती | भी सुन-सुनकर यही बात औरों से करने लगो। शायद शब्द में चुभे कांटों का विचार करते हैं।
तुम्हें कंठस्थ हो जायें, शास्त्र तुम्हारी स्मृति में प्रविष्ट हो जायें; महावीर का धर्म दूसरे प्रकार का धर्म है; इसलिए दुख की लेकिन तुम दौड़ोगे नहीं घर के बाहर। तुम कहोगे, हाथ की बार-बार चर्चा होगी। पतंजलि का धर्म पहले प्रकार का धर्म है; आधी को भी छोड़कर सपने की परी के लिए दौड़ना ठीक नहीं इसलिए परमात्मा के प्रसाद, समाधि के आनंद, ध्यान के है; ये बातें सपनीली हैं, अव्यवहारिक हैं, कल्पना-जाल हैं। हर्षोन्माद की बार-बार चर्चा होगी। लेकिन दोनों का लक्ष्य एक भीतर तो तुम यही जानते रहोगे। तुम्हारा शब्द-ज्ञान बढ़ता है कि तुम घर के बाहर आ जाओ। और यदि गौर से देखो तो जायेगा, अज्ञान मिटेगा नहीं। तुम धर्म के काव्य में डूब जाओगे; महावीर की पकड़ ज्यादा वैज्ञानिक, ज्यादा तर्क-युक्त, ज्यादा लेकिन धर्म तुम्हारे जीवन का तथ्य न बनेगा। तब तुम एक | व्यवहारिक है। क्योंकि जिस परमात्मा की हम चर्चा कर रहे हैं। दुविधा में भी पड़ोगे। क्योंकि जो सुख तुम्हारे शब्दों में छा उसे देखा नहीं। चर्चा में बहुत बल हो नहीं सकता। तुम कभी घर जायेगा और प्राणों को आंदोलित न करेगा, वह तुम्हें दो हिस्सों में के बाहर आये नहीं।
तोड़ देगा : जीवन में तो दख होगा, जिह्वा पर सुख की बातें मैं तुमसे कहता हूं, 'घर के बाहर बड़ा प्रकाश है, क्यों अंधेरे में | होंगी; प्राणों में तो कांटे छिदे होंगे, स्मृति में कल्पना के फूल पड़े हो?' लेकिन तुमने अंधेरे के सिवा कभी कुछ जाना नहीं। तैरेंगे। तुम दो हिस्सों में खंडित हो जाओगे। प्रकाश की तुम कल्पना भी नहीं कर सकते हो। प्रकाश का सारी मनुष्य जाति खंडित हो गई है। क्योंकि एक तरफ
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