________________
जिन सूत्र भागः1
कोई और नहीं है तुम्हारे ऊपर जो तुम्हें भटका रहा है। तुमने | सारी जुम्मेवारी परमात्मा की है और फिर मनुष्य परतंत्र है। भटकना चाहा है, इसलिए भटक रहे हो।
मनुष्य की स्वतंत्रता की परिपूर्ण घोषणा महावीर ने की है। इससे उत्तरदायित्व गहन है, गंभीर है। लेकिन साथ ही इसी | बड़ी घोषणा मनुष्य की स्वतंत्रता की न पहले कभी हुई, न बाद में उत्तरदायित्व में छिपी हुई सूरज की किरण भी है, सुबह भी है। कभी हुई। कहा कि मनुष्य सब के ऊपर है। कहा, मनुष्य से इसी उत्तरदायित्व में स्वतंत्रता का बीज भी है। क्योंकि अगर मैं ऊपर कोई भी नहीं। बड़ी स्वतंत्रता, बड़ा दायित्व! एक-एक ही अपने दुखों का कारण हूं तो बात खतम हो गई। तो जिस दिन कदम सम्हालकर रखने की बात है फिर ! क्योंकि अगर परमात्मा मैं निर्णय करूंगा, उसी दिन दुख समाप्त हो जायेंगे। जिस दिन मैं | है तो हम चले जा सकते हैं, उसकी प्रार्थना करते हुए, वह हाथ पैदा न करूंगा और, उसी दिन विलुप्त हो जायेंगे। अगर मैंने ही पकड़े रहेगा; उसकी जुम्मेवारी है! इस जीवन-जन्म के फैलाव को स्वीकार किया है, अपने ही हाथों महावीर ने मनुष्य को एक अर्थ में अनाथ कर दिया, क्योंकि से निर्मित किया है, तो जिस दिन मेरा सहारा छुट जायेगा उसी कोई नाथ न रहा ऊपर। जैसे किसी बच्चे के मां-बाप छीन दिन यह धारा खंडित हो जायेगी।
लिए। लेकिन तुमने देखा! जैसे ही तुम्हारे ऊपर से कल्पना के 'मोह जन्म-मरण का मूल है, और जन्म-मरण को दुख का। जाल हट जायें, कोई नहीं ऊपर, तुम अकेले हो-वैसे ही तुम मूल कहा है।'
सम्हलकर चलने लगते हो। तुमने कभी बच्चे को मां के साथ सब कछ अदीब! इश्क ने जी से भला दिया
चलते और अकेले चलते देखा? जाना कहां है और आये थे कहां से हम!
मैं एक घर में मेहमान था। एक छोटा बच्चा खेल रहा था, वह मोह की तंद्रा में सब भूल जाता है : कहां से आये, कहां जा रहे | गिर पड़ा। उसने चारों तरफ उठकर देखा। मां उसकी पास न हैं, कौन हैं!
थी, वह बाजार गई थी। उसने मेरी तरफ भी देखा, फिर सोचा हैं कुछ खराबियां मेरी तामीर में जरूर
कि पता नहीं...। मैंने उसकी तरफ देखा ही नहीं; जैसे वह सौ मर्तबा बनाकर मिटाया गया हूं मैं।
गिरा, फिर मैंने कहा, अब देखना ठीक नहीं। मैं दूसरी तरफ ही भक्ति-मार्ग के लोग कहेंगे, परमात्मा तुम्हें बनाता है, मिटाता देखता रहा। वह उठ आया। वह अपने खेल में फिर लग गया। है, क्योंकि कुछ खराबियां हैं तुम्हारी तामीर में। जैसे कोई आधा घंटे बाद जब उसकी मां आई, दरवाजे पर देखकर एकदम चित्रकार चित्र को बनाता है, फिर-फिर बनाता है; कोई मर्तिकार| चीखकर रोने लगा। मैंने उससे पछा कि देख, बेईमानी कर रहा है मूर्ति बनाता है, फिर-फिर बनाता है, क्योंकि मूर्ति बन नहीं पाती, तू! आधा घंटा पहले गिरा था। उसने कहा, उससे क्या होता पूरी नहीं बन पाती।
है? कोई यहां था ही नहीं, तो रोने से फायदा क्या! और आप हैं कुछ खराबियां मेरी तामीर में जरूर!
दूसरी तरफ देख रहे थे; आप देख ही नहीं रहे थे इस तरफ। -मेरे होने में ही कुछ खराबी है।
फायदा क्या! सौ मर्तबा बनाकर मिटाया गया हूं मैं।
पीड़ा के कारण नहीं रो रहा है; मां आ गई है इसलिए रो रहा -और इसीलिए तो इतने जन्म, इतनी मृत्युएं, इतनी बार | है! बनना, इतनी बार मिटना...।
महावीर ने ऊपर से सारा छत्र हटा लिया। कहा, कोई परमात्मा लेकिन महावीर कहते हैं, कोई बना और मिटा नहीं रहा है। नहीं है। आदमी को अकेला छोड़ दिया। अब तो तुम्हें अपने पैर क्योंकि अगर परमात्मा तुम्हें बना रहा है और फिर भी तुम में अपने ही हाथ सम्हालने हैं। इससे बड़े होश की संभावना पैदा खराबी रह जाती है, तो खराबी परमात्मा में है, तुम में नहीं। एक हुई। इससे बड़ी जागरूकता की संभावना पैदा हुई। जैसे कि तुम मूर्तिकार मूर्ति बनाता है और मूर्ति नहीं बन पाती, तो खराबी मूर्ति कभी पहाड़ के कगार पर चलते हो, तो कितने सम्हलकर चलते में थोड़े ही है, मूर्तिकार में है। फिर बनाता है, फिर भी कमी रह हो। अंधेरी रात में चलते हो अकेले, कितने सम्हलकर चलते जाती है, तो फिर भी खराबी मूर्तिकार में है। अगर परमात्मा है तो हो! कितने चौकने कितने सावधान! कितने सावचेत!
302
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org