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जिन सूत्र भाग: 1
गये, तो पुजारी ने कहा, 'भाइयो और बहनो! इससे पूर्व कि मैं भगवान से प्रार्थना करूं, आपसे एक प्रश्न पूछता हूं कि आप लोगों के छाते कहां हैं?' भगवान से प्रार्थना करने इकट्ठे हुए हैं कि वर्षा हो — होगी वर्षा – छाते कहां हैं ? लेकिन जो लोग चले ये हैं प्रार्थना करने, वे भी जानते हैं कि कहीं ऐसे वर्षा होती है ! फिर भी चले आये हैं! छाते नहीं लाये हैं! छाता लाये होते तो पता चलता कि श्रद्धा है।
तुम मंदिर तो चले जाते हो – छाता ले जाते हो ? मस्जिद तो कहा कि भरोसे न भरोसे का सवाल ही नहीं है। हो आते हो – छाता ले जाते हो ?
आदमी बड़ा बेईमान है ! प्रार्थना भी कर लेता है, भीतर-भीतर
तुम्हें पहले से पता है कि कहीं कुछ होना है! लेकिन कर लो, जानता भी रहता है कि कहीं कुछ होना है ! यह स्वाभाविक है; हर्ज भी क्या है, शायद हो ही जाये !
मुल्ला नसरुद्दीन के साथ मैं एक मकान में ठहरा हुआ था । किसी ने बता दिया उसको कि इस मकान में भूत-प्रेत का वास है। तो वह आया भागा हुआ, उसने जल्दी से सामान बांधा। उसने कहा, 'आप रुकना हो रुको, मैं चला ! मैं होटल ठहर जाऊंगा, धर्मशाला, कहीं भी, स्टेशन पर सो जाऊंगा।' 'मामला क्या है ?'
क्योंकि जिसकी तुम प्रार्थना कर रहे हो, उससे परिचय ही नहीं है; प्रेम की बातें कर रहे हो, मुलाकात हुई ही नहीं। किसी अजानी स्त्री से कैसे प्रेम करोगे? अपरिचित पुरुष को कैसे प्रेम करोगे ? जिसका नाम नहीं सुना, गांव का पता नहीं, जिसकी कभी छवि नहीं देखी, जिसका कभी कोई पत्र भी नहीं मिला, जिसका तुम्हें पता ही नहीं है कि जो है भी या नहीं— उसे तुम प्रेम कैसे करोगे ?
मैंने कहा,
उसने कहा, 'किसी ने कहा है कि इस मकान में भूत-प्रेत का वास है।' लेकिन मैंने कहा, 'नसरुद्दीन! तुम तो सदा से कहते रहे कि तुम भूत-प्रेत में भरोसा नहीं करते!' उसने कहा कि निश्चित, 'मैं भूत-प्रेत में कभी भरोसा नहीं करता । ' तो फिर मैंने कहा, 'फिर क्यों डरे जा रहे हो ?' उसने कहा, 'पर क्या पता, मेरा भरोसा गलत हो ! मैं गलत भी तो हो सकता हूं! झंझट कौन ले! रात हम स्टेशन पर सो लेंगे।'
ऐसे अंध-विश्वास में भरोसा करता होगा !
उसने कहा, यह तो साफ ही है कि मैं और अंध-विश्वास में भरोसा ! कभी नहीं। मेरा कोई भरोसा नहीं है। मैं यह नहीं मानता कि इस नाल से कुछ होनेवाला है। फिर क्यों लटकाये हो ?
उसने कहा कि लेकिन जिसने मुझे यह दिया है, उसने कहा कि चाहे तुम भरोसा करो या न करो, फायदा तो होता ही है। उसने
एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक जर्मनी में – अभी-अभी उसकी मृत्यु हुई वह अपनी टेबल के पीछे घोड़े के पैर में लगाए जानेवाला नाल लटकाये हुए था। जर्मनी में ऐसा खयाल है कि अगर घोड़े के पैर का नाल लटका दो तो परमात्मा से जो भी आशीर्वाद बरसते हैं, वे नाल में अटक जाते हैं, तुम उनके मालिक हो जाते हो। कोई चीज रोकने को चाहिए न ! तो नाल जो है, प्याली का काम करता है। एक अमरीकन उस वैज्ञानिक को मिलने गया था। वह बड़ा हैरान हुआ । उसने कहा कि तुम जैसा महावैज्ञानिक, नोबेल प्राइज़, पुरस्कार विजेता और तुम यह घोड़े का नाल लगाये हुए हो। तुम्हें शर्म नहीं आती? यह तो मैं भरोसा ही नहीं कर सकता कि तुम जैसा बुद्धिमान आदमी और
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तो महावीर प्रार्थना की बात नहीं करते। वे कहते हैं, कोई ऐसे रास्ते मत खोजो । जीवन सीधा साफ है । और सचाई यह है कि जिंदगी में दुख है । इस दुख से ही जूझना है, भागना नहीं, पलायन नहीं। इस दुख की चुनौती स्वीकार करनी है।
'राग और द्वेष के बीज मूल कारण हैं। कर्म मोह से उत्पन्न होता है। यह जन्म-मरण का मूल है। और जन्म-मरण को दुख का मूल कहा गया है। '
एक-एक शब्द को समझने की कोशिश करें। यह पहला सूत्र: 'राग और द्वेष कर्म के बीज हैं। कर्म मोह से उत्पन्न होता है । और मोह जन्म-मरण का मूल है। और जन्म-मरण को दुख का मूल कहा गया है।'
यह निदान है। यह चिकित्सक की भाषा है। यहां कोशिश चल रही है कि मूल कारण को पकड़ लें। राग और द्वेष : कोई मेरा है, कोई मेरा नहीं है ! राग और द्वेष : चाहता हूं कोई बचे, और चाहता हूं कोई नष्ट हो जाये; कहता हूं यह अच्छा है, और कहता हूं यह बुरा है; चुनाव – जो अच्छा है वह हो, जो बुरा है वह न हो।
महावीर कहते हैं, जब तक चुनाव है; जब तक तुम कहते हो,
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