________________
बोध--गहन बोध-मुक्ति है।
‘बेटे, तुम्हें बुरे लोगों से बचना चाहिए।' उस लड़के ने कहा, है। रस्सी में सांप दिख गया, क्योंकि तुम्हारे भीतर सांप का भय 'अजी मैंने तो माली से बचने की बहुत कोशिश की, पर उसने पड़ा हुआ है। मुझे पकड़ ही लिया।
| तुम थोड़ा सोचो, ऐसा कोई आदमी जिसने सांप कभी देखा ही दरोगा कह रहा है, बुरे सत्संग से बचो, ताकि चोरी न सीखो। न हो, या सुना ही न हो, क्या वह आदमी भी इस रस्सी में सांप लड़का सुन रहा है कि यह माली बुरा आदमी है; मैं तो भागने की देख सकेगा? कैसे देखेगा? असंभव! कोशिश कर ही रहा था; इससे बचने की कोशिश कर ही रहा एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग कर रहा था। वह अपने विद्यार्थियों था, फिर भी इसने पकड़ लिया।
को ले गया काशी के मंदिर में, विश्वनाथ के मंदिर में। शंकर जी तुम अपनी वासना के आधार से सुनते हो। इसलिए अपने सुने की पिंडी के पास वह अपना हैट रख आया और दरवाजे पर हुए पर बहुत भरोसा मत करना। बहुत गौर से सुनना। सुन भी उसने खड़े होकर शिष्यों को पूछा कि क्या है, शंकर जी की पिंडी लो तो भी पुनः पुनः विचार करना, यही कहा गया था। तुमने कहीं के पास क्या रखा है ? कुछ मिश्रित तो नहीं कर लिया है, तुमने कहीं कुछ जोड़ तो नहीं। उन सब ने गौर से देखा और सब ने कहा कि शंकर जी का लिया, तुमने कहीं कुछ घटा तो नहीं दिया है! एक शब्द भी घटा घंटा। क्योंकि हैट और शंकर जी का संबंध ही नहीं जुड़ता। तो देने से बड़ा फर्क पड़ जाता है। एक शब्द भी जोड़ लेने से बड़ा वह जो हैट था, घंटे जैसा दिखायी पड़ने लगा। फर्क पड़ जाता है। जरा-सा जोर एक शब्द पर ज्यादा दे दो, बड़ा तुमने कभी देखा, आकाश में बादल बनते हैं! तुम जो देखना फर्क पड़ जाता है।
चाहते हो, देख लेते हो। कभी-कभी वर्षा की बूंदें दीवालों पर 'और मिथ्यात्व से भरा हुआ व्यक्ति, उसकी दृष्टि विपरीत हो चित्र अंकित कर जाती हैं, तुम जो देखना चाहते हो देख लेते हो। जाती है।'
वहां कुछ भी नहीं है। कभी-कभी चेहरा दिखायी पड़ता है। 'मिथ्यात्व' महावीर का विशेष शब्द है। जैसे 'माया' शंकर दीवाल पर पानी की रेखाएं बह गयी हैं। वहां कुछ भी नहीं है। का, ऐसे 'मिथ्यात्व' महावीर का। मिथ्यात्व बड़ा बहुमूल्य लेकिन तुम आरोपित कर लेते हो। शब्द है। इसका अर्थ समझना चाहिए। मिथ्यात्व का अर्थ है: मिथ्यात्व का अर्थ है : जो नहीं है वह तुमने देख लिया; और जैसा है, उसको वैसा न देखना। जैसा है, उसको वैसा देख जो था उससे तुम चूक गये। जब तुम उसे देख लोगे जो नहीं है तो लेना-सम्यकत्व। जैसा है, उसको वैसा न उससे तुम चूक ही जाओगे जो है। देखना-मिथ्यात्व। कछ को कुछ देख लेना...।
| दृष्टि को साधना है। दृष्टि को निर्मल करना है। और अंधेरे में चल रहे हो, दर से दिखता है कि कोई चोर खड़ा है। धीरे-धीरे दृष्टि के साथ जल्दी निष्कर्ष नहीं लेने हैं। निष्कर्ष करने पास आते हो तो पाते हो कि बिजली का खंभा है। तो वह जो चोर में थोड़ा धैर्य करो। सुनो, देखो, जल्दी निष्कर्ष मत लो। मेरे पास दिखायी पड़ गया था-'मिथ्यात्व'। नहीं कि चोर वहां था, तुम आए हो, सुनते हो। इधर तुम सुन रहे हो, साथ-साथ तुम तुम्हें दिखायी पड़ गया था।
निष्कर्ष भी लेते जाते हो। रस्सी पड़ी है। अंधेरे में गुजर रहे हो, घबड़ाकर छलांग लगा | तुम में से कई हैं जो सिर हिलाते हैं। वे कहते हैं, बिलकुल जाते हो, लगता है सांप है। रोशनी लाते हो, देखते होः कोई ठीक। उनके भीतर मेल खा रही है बात। वे जो मानते रहे हैं सांप नहीं, रस्सी पड़ी है। रस्सी सांप जैसी दिखायी कैसे पड़ उससे मेल खा रही है। कोई सिर हिलाता है कि नहीं। वह उसे गयी? तुम्हारे भीतर के भय ने लगता है सांप निर्मित कर लिया। पता भी नहीं कि वह सिर हिला रहा है; मुझे दिखाई पड़ता है कि रस्सी मिलती-जुलती है सांप से थोड़ी: सांप जैसी लहरें लिये वह कह रहा है कि नहीं। यह बात जंचती नहीं। पड़ी है। उस मिलते-जुलतेपन के कारण तुम्हारे भीतर के भय का इतनी जल्दी मत करो, पहले मुझे सिर्फ सुन लो। सिर्फ शुद्ध तूफान उठ गया, आंधी उठ गयी। और तुम्हारे भय ने सांप देख सुनना काफी है। फिर सुनने के बाद, समझने के बाद फिर लिया। इतना ही समझो कि तुम्हारे भीतर सांप का भय पड़ा हुआ तालमेल बिठा लेना। अभी तुमने अगर साथ ही साथ दो
61
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |